छत्तीसगढ़ी कथा
•चिंकी अऊ पिंकी
•डॉ. बलदाऊ राम साहू
मुनिया के अँगना मा एकठन जाम के पेड़ हे। जाम साल मा दू बखत तो फरथे। जब जाम हर फरथे तब कईठन जीव मन के उहाँ बासा हो जाय। कौनो मन तो कचलोइहा ला कुरत-कुतर के खाय, तब कौनो जब जाम हर बने गेदराय धरथे तब खाय। सब के अपन-अपन पसंद अउ अपन-अपन सुवाद हे। सुवाद अनुसार जाम हर सब के खाई हो गे राहय।
उही पेड़ मा एकठन चिटरा घलो रहिथे। नाम हे ओकर पिंकी। पिंकी अड़बड़ चंचल अउ अड़बड़ चतुरी रहिस। दिनभर ओहर चीं-चीं करत ये डार ले ओ डार आवत-जावत राहय। बाकी जीव मन हर जब जाम के झर जाय, तब अपन दूसर बासा बना लेवे, फेर पिंकी हर ओ जाम पेड़ ल छोड़ के कहिच्च नइ जाय। जब तक जाम फरे रहाय, तब तक जाम खा के अपन गुजारा करय अउ जब जाम झर जाये, तब खाल्हे उतर के येती-ओती घूमत राहय। जब-जब पिंकी हर खाल्हे आय तब मुनिया हर ओला थोर-थोर कुछू न कुछू दे देवय। अइसे कहिबे तब पिंकी अउ मुनिया के बीच मा दोस्ती हो गे रहिस।
मुनिया के एक झन सहेली हे, नाम हे चिंकी। चिंकी रोज मुनिया के घर खेले बर आय। जब चिंकी घर आय, तब पिंकी घलो जाम ले उतर के आ जाय अउ उनकर आजू-बाजू घूमत राहय। जब कभू चिंकी हर पिंकी ल धरे बर हाथ लमाय, तब ओहर फट ले जाम के पेड़ मा चढ़ जाय।
जब चिंकी अपन घर ले आय तब कुछू न कुछू खाई-खजाना ले के आय अउ मुनिया संग बाँट के खाय। आज ओ हर अपन घर ले सेब ले के आय रहिस। चिंकी ल सेब गजब पसंद राहय। जइसे चिंकी अइस पिंकी घलो पेड़ ले उतर के आगे। अउ उनकर पाछू-पाछू घूमे लागिस। जब चिंकी अउ मुनिया सेब खाय लागिन तब पिंकी ल एक छोटकुन टुकड़ा दे दिस। पिंकी ओला जल्द-जल्दी खाय लागिस। जब ओकर सेब उरक गे तब ओहर चीं-चीं करे लागिस। मुनिया समझ गे कि ये हर अउ माँगत हे। चिंकी सेब के एक टुकड़ा ओकर तरफ अउ फेंक दिस। फेर पिंकी ओ ले बर नइ आइस। चिंकी ओला कहिस-‘‘ले ले।‘‘ पिंकी टुकुर-टुकुर देखत रही गे फेर सेब ले बर नइ आइस। तब मुनिया हर कहिस-‘‘ले ले।‘‘ अउ सेब के एक टुकड़ा ओर तरफ फेंक दिस। पिंकी झट सेब के टुकडा़ मुँह मा दबाइस अउ जाम के पेड़ मा चढ़ गे।
धीरे-धीरे मुनिया के संगे-संग पिंकी के दोस्ती चिंकी ले होय लागिस। अब न चिंकी पिंकी ल पकड़ना चाहे न पिंकी चिंक ल डर्राय। पिंकी चिंकी ले ये पाय के डर्राय कि चिंकी ओला पकड़े बर चाहे। सबो परानी ल अपन जीव के डर रथे। जब तक काकरो उप्पर बिस्वास नइ होही तब तक कइसे दोस्ती होही।
एक दिन के बात आय। चिंकी के संगे-संग ओकर घर के पाले बिलई पूसी घलो आगे। पूसी ल तो देख के पिंकी तो एकदम घबरा गे। पूसी के लाल-लाल आँखी ल देख के ओकर मन डर हमा गे। अउ डर के मारे ओ हर पेड़ ले नइ उतरिसं। चिंकी बार-बार काहय आ जा, आ जा फेर ओहर अउ डर के उप्पर डंगाल मा चढ़ गे। मुनिया के बलाय मा घलो नइ आइस। ओला घेरी-बेरी सेब ल देखा के काहय, आ जा, आ जा फेर ओहर नइ उतरिस। मुनिया काहय उप्पर झन जा, गिर जाबे, फेर ओकर बात ल एको नइ सुने अउ उप्पर जावत जाय। अचानक पिंकी उप्पर ले गिर गे। मुनिया अउ चिंकी तो घबरा गे। पूसी जइसे झपटे बर दौड़ लगाइस। चिंकी जोर से चिल्लाई, पूसी। पूसी आवाज पाकर रूक गई। चिंकी झप ले जा के ओल उठा लिस। पिंकी दरद के मारे चीं-चीं कर के रोवत राहय। चिंकी के पीरा ल देख के मुनिया अउ चिंकी ओला डाक्टर के पास ले गे। डाक्टर हर मरहम पट्टी कर के दवई दे दिस, तेकर ले पिंकी के पीरा कुछ कम हो गे। फेर अब जब तक पिंकी बने नइ होही तब तक ओ हर पेड़ मा नइ चढ़ सकय। मुनिया अब ओकर बर सीढ़ी के खाल्हे रहे के इस्थान बन दिस। जुन्ना-पुराना कपड़ा लान के ओकर बिस्तरा बना दिस अउ समे-समे मा ओ दार, चाँउर अउ छोट-छोट फल के टुकड़ा रोज देवय। चिंकी तको ओकर बर कुछू न कुछू लाय। अब तो पिंकी कुछ दूर चले बर धर लिस। चिंकी के संग ओकर अब दोस्ती गहरा होगे। अब जब चिंकी आथे पिंकी ल अपन गोदी मा उठा लेथे। पिंकी खुश हो जाथे। धीरे-धीरे जब पिंकी ठीक होगे तब ओ हर पेड़ मा चढ़े बर धर लिस। जब ओहर पेड़ मा राहय अउ चिंकी आय तब झप ले उतर के चिंकी के उप्पर चढ़़ जाय। अब तो पूसी संग पिंकी के दोस्ती हो गे हे। चिंकी,पिंकी, मुनिया अउ पूसी अब एके संग खेले-कूदे।
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