






होली पर विशेष- महेश राजा
●लघुकथा- इस बार होली में लक्ष्मी आगमन
-महेश राजा
[ महासमुंद-छत्तीसगढ़ ]
चारों तरफ ढोल व नगाड़ों की आवाज गूंज रही थी।
उसका मन कहीं नहीं लग रहा था।मन भीतर से बहुत बैचेन था।पास के कमरे से पिताजी के खांसने की आवाज आ रही थी।
जब भी होली का त्यौहार आता,घर मे खामोशी छा जाती।होली के दिन ही माताजी का देहांत हुआ था।
तबसे इस घर में होली नहीं मनायी गयी थी।
यूं सबका मन होता कि होली मनाये,परन्तु पिताजी की खामोश निगाहें देखकर कोई भी साहस न करता।
बाहर होली जलने को थी।सभी आनंद से नाच रहे थे।
वह अपने कमरे के बरामदे मे चहलकदमी कर रहा था।
बाजु के कमरे से पत्नी के कराहने की आवाज आ रही थी।वे पूरे दिनों से थी।दाई ने बताया था,रात तक बच्चा हो जायेगा।
धीरे धीरे बाहर शोर बढने लगा।दस बजने वाले थे।तभी बाहर के कमरे से बेबी के रोने की आवाज आयी।उसका मन हल्का हो गया ।पिताजी भी दौडे दौडे बाहर आये।
दाई ने कमरे से निकल कर पिताजी को कहा,बधाई हो दादा जी घर मे लक्ष्मी आयी है।
इतना सुनना था कि पिताजी की आंखे चमक उठी।पांच सौ रूपये का नोट दाई मां को दिया।
वह पिताजी के चरणों मे गिर गया।
पिताजी ने उसे खूब आशीष दिये।
अब वह कुछ देर सोने की सोच रहा था।कल रंग है।वैसे भी आफिस नहीं जाना।
तभी पिताजी नये कुरता पाजामा पहने हाथ मे गुलाल लिये आये।बोले,तू बाप बन गया है रे….फिर भी सोया पडा है।चल आज होली की शुरुआत तेरे कमरे से ही करते है।
पूरे घर मे हर्षोल्लास छा गया।वह पत्नी के कमरे मे गया।वह थकी मुस्कान से उसे देख रही थी।पास ही नन्ही परी सोयी पडी थी।
सब होलिका पूजन की तैयारी करने लगे।
सभी खुश थे कि बरसों बाद इस घर मे होली खेली जायेगी।
पिताजी कमरे मे अम्मा की तस्वीर को देख कर आंसू पोंछ रहे थे।
मुहल्ले से होली जल गयी थी।उसकी लपटे उपर तक जा रही थी।
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chhattisgarhaaspaas
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