अपनी बात-अपनों से : •शुचि ‘भवि’
●मैं भी अब पॉज़िटिव हूँ.
-शुचि ‘भवि’
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
बड़ी मुश्किल से तो नींद आती थी अब।दिन भर मानो आँखों की नमी सूखती ही नहीं थी ।क्यों भला? अरे करोना कोरोना कोरुना जो भी नाम दे दें आप इसे हमने तो रोना ही कह के इसे पुकारा है।यह हिरण्यकशिपु भी है और ब्रह्मराक्षस भी। इस को-रोना के रोने के कारण नींद कैसे आती भला।अचानक से ये कहीं भी कभी भी प्रकट हो रहा आजकल। आप घर के भीतर रहें तो भी डरे डरे कि कहीं ये दबे पाँव किसी से चिपक आ मत जाए और अगर कल जिससे मिले, बैठे,हँसे थे आज पता चले कि उसी के साथ फँसे भी हैं तो और भी डरें।वो तो पाजिटिव हो गया आपको निपट नेगेटिव बना गया।आती हुई साँस भी मानो अंदर ही से अब चिल्लाने लगीं हो- 99 हूँ कि नहीं देख कहीं 95 से कम तो नहीं हो गयी मेरी ऑक्सीजन, ऑक्सिमीटर की रीडिंग देख जल्दी।और साहब साँस के चिल्लाते ही दिल भी धौंकनी बन जाता है और धक-धक-धक करता मानो , कानों को धकेलने लगता है।बेचारे आप,नेगेटिव होते हुए भी जब कुछ अधिक ही नेगेटिव हो जाते हैं तब तो थर्मामीटर भी 99.2 दिखाने में गर्व महसूस करने लगता है।बस फिर क्या आपकी नेगेटिविटी ने पूरा विश्वास आपको दिलाने में देर थोड़े ही करनी है कि भइये आप भी तो अब हो ही गए, पॉजिटिव।रात एक बजे तक ख़ूब खोजबीन की आपने अपनी पाजिटिविटी की, ख़ूब नेगेटिव ख़बरें पढ़ीं,देखीं,गुनी और फिर अपनी एक राय बुनी।निष्कर्ष ये निकाला गया कि कोरोना अब तो कलियुग का हिरण्यकशिपु है जो चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है कि मैं अब तो
न जल में मरूँगा , न थल में मरूँगा, न आकाश में मरूँगा , न पाताल में मरूँगा,न अंदर मरूँगा , न बाहर मरूँगा,न मनुष्य से मरूँगा , न पशु से मरूँगा,न दैत्यों से मरूँगा , न देवगणों से मरूँगा,न दिन में मरूँगा , न रात में मरूँगा,न अस्त्र से मरूँगा , न शस्त्र से मरूँगा,मरूँगा तो सिर्फ़ वहीं जहाँ लोगों में निडरता होगी। कोरोना रूपी रोने का यह खुलासा कि उसकी अमरता, निडरता के आगे फेल है आपको बहुत पसंद आती है।बस कुछ यूँ ही थोड़े से पॉज़िटिव आप भी न जाने कैसे हो जाते हैं और कब नयन भर नींद लेने के लिए सो जाते हैं आपको पता ही नहीं चलता।
अरे उठो, उठो भी,उठो उठो, कि आवाज़ से आप हड़बड़ा के जब उठते हैं तो सामने यमराज को देख सहमते हैं, सँभलते हैं और यमराज के आग्रह पर कि, चलो हमारे साथ हम तुम्हें लेने आये हैं और कोई अंतिम इच्छा हो तो कहो,ज़रूर पूरी होगी, पूछने पर, बड़ी हिम्मत से एक साँस में बोल जाते हैं अपनी इच्छा कि हमारी अंतिम यात्रा में बस दो हज़ार की भीड़ हो और भीड़ में से अधिकतम लोग हमें कन्धा दें और कोई भी कोरोना पॉज़िटिव न हो उनमें।यमराज का तथास्तु,सुनकर तो आप अपने बिस्तर पर ही ऐसे उछलने लगते हैं जैसे कोई फुटबॉल ही हो मगर यमराज तो तथास्तु बोलकर सहम जाते हैं।अरे ये क्या माँग लिया तुमने।अब कैसे ले जाएँ तुम्हें इस कोरोना काल में।कलियुग में भी तुम जैसा कोई समझदार मिल जाएगा हमने सोचा ही नहीं था।यमराज ने लाल-लाल आँखों से आपको ऐसे देखा कि मानो अब भस्म ही कर देगा मगर वचन के कारण आपको ज़िंदा छोड़ कर गायब हो गया। सुब्ह जागने पर आप भी निडरता से कोरोना से आँख मिलाकर कहते मिले “देख मैं भी अब पॉज़िटिव हूँ”।
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