■लघुकथा : •दीप्ति श्रीवास्तव.
●उसकी गुमटी
-दीप्ति श्रीवास्तव
झाड़ के नीचे बढ़े हुए बाल और दाढ़ी लिए गुमसुम उदास बैठा कभी मोबाइल खोलता फिर स्क्रोल कर कोई एप देखता । ठंडी आह भर बंद कर देता ।
उसकी चाय की गुमटी में हमेशा भीड़ -भाड़ रहती । कालेज छात्र- छात्राओं का जमावड़ा होता । सबकी पोल-पट्टी का बही खाता उसके पास मुंह जबानी रहता । जिसका साक्षी यह पेड़ था , जिसने न जाने कितने पतझड़ देखें और पुनः जीवंत हो उठा । एक फुल चाय की कितनी कटिंग चाय बनता दोस्तों के लिए उसे भी याद न रहता माप से ज्यादा ही डालता । सबकुछ यादों का पुलिंदा बन कर रह गया । तिस पर यह मोबाइल का एप उसे रह-रहकर जला रहा ।
आज विश्व चाय दिवस जो है।
सालभर से ऊपर हो चला कालेज बंद तो गुमटी पर कौन आता.. । अपनी बेरोजगारी का किस्सा किसकी चाय संग सुड़कता । कोई न कोई तो चाहिए चाय के रंग की मिठास में दूध बनने के लिए ।
मुए कोरोना… ने उसकी चाय बेरंग कर दी । ऐसा पतझड़ भी होता है जिसमें न जाने कब नई पत्तियां आयेंगी । जीवन में बसंत ला बेरोजगारी हटायेंगी । उसके आशा का दीपक इस पेड़ के नीचे बैठने से हौसला अफजाई करता ,मत घबरा जल्दी ही तेरी गुमटी पर रौनक होगी । चाय की चुस्की लगाते हुए कहकहें गुंजायमान होंगे ।
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