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  • ■लघुकथा : •सुधा वर्मा.

■लघुकथा : •सुधा वर्मा.

4 years ago
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●कचरे का डिब्बा
-सुधा वर्मा
[ रायपुर-छत्तीसगढ़ ]

आँगन बाड़ी में बच्चे खेल रहे थे। मैं अचानक ही वहां देखने पहुँच गई। मैने सब बच्चों को चाकलेट दिया। उसके बाद एक एक केला दिया। बच्चे खेल रहे थे तो बच्चों ने तुरंत ही खाना शुरु कर.दिया। चाकलेट की झिल्ली और केले का छिलका जमीन पर ही फेक रहे थे। मै उनको हटा कर केले का छिलका उठा कर किनारे रखने लगी। मैनें बच्चों से कहा कि ” बेटा इसे कचरे के डिब्बे में डालो” वे लोग मुझे ऐसे देखने लगे जैसे मैने कोई नया नाम ले लिया है, वे जानते नहीं है। कार्यकर्ता ने कहा कि सब ऐसे ही फेक देते है बाद में मै जाड़ू लगा कर बाहर फेक देती हूं। मैने इधर उधर देखा कि कुछ दिख जाये। मुझे एक पुट्ठे का चौकोर डिब्बा दिखा। मैं उसे उठा कर लाई और वहां रखे मोम कलर से चारो तरफ हँसते हुये चेहरे बनाई। उसे कक्षा के एक कोने में रख दी। सभी बच्चों से बोली कि सब लोग एक एक चाकलेट की झिल्ली और एक एक केले का छिल्का उठा कर इस कचरे के डिब्बे पर डालो। बच्चे बहुत ही उत्साह से उठा कर डालने लगे। सब बच्चे बैठ गये। मैने डिब्बे को उठा कर उसमें बने चेहरे को दिखा कर पूछा ” यह क्या कर रहा है?
बच्चों ने कहा “हँस रहा है।”
मैने पूछा ” क्यों हँस रहा है।”
बच्चे चुप रहे तो मैने कहा ” तुमने इस पर कचरा डाला है इस कारण, यह कचरा डालने से खुश होता है।”
बच्चे ताली बजाने लगे। मैनें पूछा ” अब कचरा कहाँ डालोगे ?”
बच्चों ने कहा ” कचरे के डिब्बे में।”

●लेखिका संपर्क-
●94063 51566

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