■रचना आसपास : •अर्चना शर्मा.
3 years ago
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●पुरुष.
-अर्चना शर्मा.
[ बरेली, उत्तरप्रदेश. ]
अनगिनत त्याग करता जाता,
कठिनाई में बढ़ता जाता,
आंसू की धाराएं चुपचाप पिए ,
ये अधिकार भी उससे छीन जाता।
अपनी खुशियां भूल चुका ,
कर्तव्यों के पथ पर जलता जाता,
हमको अमृत देने की खातिर,
वसुधा के विष पीता जाता।
परिणीता की सिंदूर रेख,
बच्चों का प्यारा पापा ,
क्या इतनी सी दुनिया है उसकी?
निजता का अधिकार क्यूं उससे छीना जाता ?
सबके लिए सुमन चुने,
सबकी झोली भरता जाता ,
कभी नेत्र बंद कर देखो ,
अपनों की खातिर वह मुरझा जाता ।
तुम बिन जीवन शून्य रहा ,
अर्थ तुम्हीं से है पाता ,
घर की तुलसी यदि स्त्री है,
पुरुष भूमि है जिस पर वह पौधा लहराता ।
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