■दो लघुकथाएं : •महेश राजा.
[ 1] दायित्व बोध
हर रोज की तरह सुबह की सैर के बाद राज अपनी मनपसंद जगह हनुमान मंदिर पर बैठा हुआ था।
रीमा का फोन आया।वह गाँव गयी हुयी थी।कल लौटेगी।
रीमा एक पढ़ी लिखी,शानदार आफिस में एक्जीक्यूटिव थी।अच्छे परिवार से थी।सब कुछ ठीक था,पर कहीं कुछ छूट गया था।
रीमा कह रही थी।गाँव आयी हूँ जरूरी काम से।इस बहाने माँ से मिलना हो गया।अवि भी साथ है,नानी से मिल कर खुश है।
रीमा ने बताया अगले माह चाचा ससुर के घर पर शादी है।चाचा नहीं रहे तो सब कुछ इन्हें और मुझे करना है।इन्होंने सारा भार मुझ पर डाल दिया है।समय कम है।रुपयों की परवाह नहीं।पर,मेरे पास सीमित साधन है,कार भी न ही तो सबको कह दिया है खर्च करते जाओ बिल मुझे दे दो।
यहाँ यह बताना लाजिमी होगा।रीमा ने ससुराल को पूरी तरह से अपना लिया है।सास जी,ससुराल साईड के उन्नीस बच्चे साथ ही अवि।सबकी पूरी जिम्मेदारी एक कुशल सारथी की तरह निभाई है।अभी पता चला कि भतीजी दो बरस पोस्ट ग्रेजुएशन के लिये उसके पास आकर रहेगी।
यह बताते हुए उसका स्वर भीगा लगा।
राज मुझे जिम्मेदारी वहन से कोई परहेज नहीं।रूपयों की भी चिंता नहीं।मुझे वाहवाही भी नहीं चाहिये।परंतु छोटी छोटी बातों पर आलोचना, निंदा यह सब मुझे भीतर तक तकलीफ़ देती है।अब ऊब गयी हूँ।जी चाहता है सब छोड़कर कहीं चली जाऊं।पर,फिर अवि…..।
बापा जी ने इनके साथ ब्याहते समय कहा था कि ससुराल को अपना लेना पूरा दायित्व निभाना।बस…..आज तक दायित्व बोध ही तो निभा रही हूँ।
बहुत तकलीफ़ होती है।
राज को भी रोना आ गया।उसने कहा,रीमा तुम्हें हिम्मत रखनी हे,अपने लिये,अवि के लिये।हम सब के लिये……। प्लीज अपना ख्याल रखना।।
[ 2] सावधानी जरूरी
आज का आखरी टीकाकरण केस भी निपट गया था।रिपोर्ट भी तैयार हो गयी थी।शकुनजी ने हाथ चटखाये।शाम होने को थी सुदूर गाँव में ज्यादा देर रूकना सुरक्षित न था।
उन्होंने अपनी बैग समेटी।चेहरे पर मास्क लगाया और स्कूटी स्टार्ट की।
शकुनजी स्वास्थय विभाग से संबंधित थी।साथ ही समाज सेविका भी।बहुत मेहनती थी।सभी उन्हें दीदी कह कर पुकारते।वे हर किसी की मदद करने को हर समय तैयार रहती।
जैसे ही वे एन.एम.डी.सी. कालोनी पहुंची, देखा सामने से दो महिलाएं गपशप करती टहल रही थी।उन्होंने स्कूटी रोक कर पूछा,-“आप लोग,इस समय.इस तरह…?
एक महिला ने जवाब दिया,-“दिन भर घर में रह कर बोर हो रही थी,तो ताजा हवा खाने सैर पर निकल पड़ी।”
शकुन जी ने कहा,-“वह सब तो ठीक है मैड़म .पर बिना मास्क या दुपट्टा बाँधे…?जानते नहीं हालात कितने खराब है।”
दूसरी बोली-“पर,यहाँ तो कोई समस्या नहीं है।तो फिर मास्क क्यों?”
शकुन जी ने उन्हें समझाया,-“मैडम ये कीटाणु बता कर नहीं आते।ईश्वर न करे,कब, किसको संक्रमित कर दें।इसलिए सावधानी जरूरी है।कहते है न..सावधानी हटी..दुर्घटना घटी।”
फिर उन्हों ने अपनी बैग से दो मास्क निकाल कर दिये।
दोनों ने तुरंत वे मास्क लगाये।अपने घर जाने लगी।
शकुनजी ने उन्हें विदा करते हुए संदेश दिया-“घर पर रहिये.सुरक्षित रहिये।”
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