■लघुकथा : •अंशुमन राय ‘राजा’.
●आँगन क्या है
-अंशुमन राय ‘राजा’
[ प्रयागराज-उत्तरप्रदेश ]
आँगन What is आँगन ? यह आँगन क्या होता है ? गुड्डू ने पूछा.
गुड्डू की दादी, कावेरी ने खिड़की से बाहर देखा और सोचा-सही बात है इस शहर में अब चारों तरफ सिर्फ ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएँ ही नज़र आते हैं. आजकल न पहले जैसे घर बचे हैं और न ही ‘आँगन’.
कावेरी दादी को अपने पुराने दिन याद आ गए, जब वह अपने ससुराल में एक सँयुक्त परिवार में रहती थी. वह बड़ा सा आँगन,आँगन के बीचों-बीच अमरूद का पेड़,चारों तरफ बरामदा और बरामदे के साथ लगे कमरे.
आँगन परिवार के लिए सिर्फ एक घर के बीचों-बीच एक खुली जगह भर नहीं थी,परंतु उससे कहीं ज्यादा थी. आँगन था,घर की महिलाओं के एकत्र होने का स्थान. आँगन होता था कपड़ों, अचार एवं मीरचों के सूखने का स्थान. आँगन था घर की महिलाओं का पर्दा-प्रथा के चलन के बीच,मुक्त हवा और रोशनी के बीच पनपने देने का स्थान.
कावेरी दादी को याद आ रहा है कि किस तरह बच्चे आँगन में धमा-चौकड़ी मचाते थे और वह चिल्लाकर उन्हें डांट कर कहती थी, ‘देखकर!देखकर! अचार की शीशी गिर जाएगी,हल्दी की डलिया पलट जाएगी’. ‘दादी!दादी!क्या सोच रही हो ? बताओ न क्या होता है ‘आँगन’.
‘आँगन! एक मिनट अभी बताती हूँ’. कावेरी दादी ने अपने पुरानी अलमारी से एक चित्र निकाला और कहा-यह है आँगन’. गुड्डू चौंक गया. ‘अरे यह तो हमारे Compound जैसा है’.
बेटा! ठीक ही कह रहे हो. पहले एक घर के लिए आँगन होता था, अब पूरे 150 मकान के लिए एक ‘आँगन’ होता है. कावेरी दादी ने लंबी सांस लेकर कही.
[ साभार लेखक अंशुमन राय’राजा’ की प्रथम संकलन पुस्तक ‘दुस्साहस’ से. लेखक संपर्क- 90765 00207. ]
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