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■ब्रह्मकुमारीज़ संस्था : अस्थिर-अशांत दुनिया में स्थिर-शांत होना.
♀ चंडीगढ़[पंजाब] में ब्रह्मकुमारीज़ संस्था द्वारा टैगोर थियेटर में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें विश्व विख्यात मोटिवेशनल स्पीकर ब्रह्माकुमारी शिवानी बहन में मुख्य वक्ता रहीं.
♀ मुख्य अतिथि बनवारीलाल पुरोहित [राज्यपाल].
♀ विशेष उपस्थिति : ब्रह्मकुमारी अनीता दीदी.
♀ ब्रह्माकुमारी उत्तरा दीदी[ डायरेक्टर राजयोगिनी पंजाब ज़ोन].
♀ मंच संचालन : ब्रह्माकुमारी कविता दीदी.
■चंडीगढ़[पंजाब]-
राज्यपाल श्री बनवारीलाल पुरोहित ने समाज के प्रति संस्था की सेवाओं की सराहना करते हुए कहा कीब्रह्माकुमारी संस्था महिलाओं द्वारा संचालित ऐसी सशक्त संस्था है जिसका पूरे विश्व में कोई दूसरा विकल्प नहीं| उन्होंने कहा की इस संस्था के साथ उनका रिश्ता बहुत ही पुराना है और भारत में तकरीबन हर जगह जहाँ उन्होंने काम किया, वे इस संस्था के साथ जुड़े रहे | जैसे सनातन धर्म पूरे विश्व के कल्याण की बात करता है, वैसे ही विश्व कल्याण के हेतु ये धर्म ध्वज इस संस्था की बहिनों ने उठा रखा है | उन्होंने कहा की आज हम यहाँ ज्ञान के लिए ही इकट्ठा हुए हैं क्योंकि ज्ञान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है जो अपने को भीतर से मज़बूत करने के लिए ज़रूरी है | इसमें “अस्थिर जगत में स्थिरता” पर आयोजित यह सेमिनार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा ।
महामहिम बनवारीलाल पुरोहित जी ने बड़े ही विश्वास से कहा की जिस किसी की भी परमात्मा पर श्रद्धा है, उसे संस्था की बहिनों पर ज़रूर गर्व होगा जो पवित्रता की जीती जागती मिसाल हैं | उन्होंने सादगी भरा जीवन जिसमें इच्छाएं सीमित हों और बिना लालच के कमाए हुए धन से परिवार को पालने की बात कही | ज़िन्दगी में किसी से भी दग़ा नहीं करना क्योंकि दग़ा किसी का सगा नहीं होता और वो ऊर्जा लौट कर आती है | हमारे पास प्रेम और करुणा से भरा संवेदनशील मन होना चाहिए और इस बात का उदाहरण उन्होंने गौतम बुद्ध और स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से भी दिया | उन्होंने कहा की भारत का भविष्य बहुत उज्जवल है और जैसा काम हमारी ब्रह्माकुमारी बहिनें कर रही हैं, वह दिन दूर नहीं की बहुत जल्दी भारत विश्वगुरु हो जायेगा | बस हमें परमात्मा में विश्वास, सत्कर्म और विचारों में करुणा रखनी है|
जो पहली कम्युनिकेशन हमसे दूसरे को जाती है वो हमारी वाइब्रेशंस या हमारे आभामंडल की ऊर्जा है जो तत्काल दूसरे को और दूसरों से हमारे रिश्तों को प्रभावित करती है | हमारी वाइब्रेशंस ही हमारी खुशबू है| – ब्रह्मा कुमारी शिवानी दीदी
हमारा औरा, हमारी वाइब्रेशंस, हमारे कर्म हमेशा हमारे साथ साथ चलते हैं| वो ऊर्जा हमेशा हमारे आस पास है| हमारी वाइब्रेशंस परफ्यूम की तरह हैं जिसे चुनते तो हम हैं लेकिन सूंघते दूसरे हैं | वाइब्रेशंस दिखती नहीं पर महसूस होती हैं और वही हमारा संस्कार हैऔर हमारा लक्ष्य यही होना चाहिए की हम अपनी वाइब्रेशंस कोसकरातमक कैसे बनायें|कुछ ऐसे ही सटीक और भावविभोर करने वाले शब्द थे सबकी चहेती ब्रह्मा कुमारी शिवानी दीदी के |
उन्होंने कहा की आज जिस हॉल में हम सब बैठे हैं वहां की वाइब्रेशंस किसी अन्य जगह से बेहतर होंगी क्योंकि हम कुछ देर से यहाँ श्रेष्ठ संकल्पों की बात कर रहे हैं| लेकिन हो सकता है इसी हॉल में शाम को कुछ और माहौल हो तो यहाँ की वाइब्रेशंस एकदम बदल जाएँगी, हो सकता है लोग भी वही हों| इसका मतलब हमारे भीतर की स्थिति पर ही हमारे बाहर का संसार निर्भर करता है| हर जगह हर भूमि हर देश की अपनी वाइब्रेशंस होती हैं| अगर हमारा मन सशक्त है तो हम अपनी ऊर्जा के प्रभाव से जगह और इंसान की ऊर्जा को भी प्रभावित कर सकते हैं और यदि हमारी आत्मा कमज़ोर है तो हम एकदम दूसरे से प्रभावित हो जाते हैं|जैसा हमारा संकल्प होगा वैसी ही हमारी ऊर्जा होगी| जो हम देखते हैं जो हम खाते हैं जो हम सुनते हैं जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही हमारा संस्कार बनता जाता है | संस्कार से ही संस्कृति और संस्कृति से ही संसार निर्मित होता है|जैसे हम अपने खाने का, अपने शरीर का ध्यान रखते हैं वैसे ही सकारत्मक सोच हमारे मन की खुराक है| अच्छा मानसिक स्वास्थ्य भी होना उतना ही ज़रूरी है जितना शारीरिक स्वास्थ्य| खाने की कहें तो केवल मुंह के खाने की बात नहीं, हम आँखों से क्या खा रहे हैं, कानों से क्या खा रहे हैं सब हमारे विचारों और संस्कारों को प्रभावित करता है |
हम देखते हैं हमारे अपने ही हमारे आस पास अगर किसी दुःख से गुज़र रहे हैं, हमारे समझने पर भी उनकी स्थिति नहीं सुधरती| उसका एक कारण यह की हम उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं जो केवल शब्द मात्र ही हैं जबकि हमें जो संस्कार पैदा करना है अपने मन अपनी वाणी में, वह है प्रेम दयालुता व करुणा का| उस कमज़ोर आत्मा को समझ तो है, शक्ति नहीं है और शक्ति उसे हमारी करुणा से मिलेगी हमारी बुद्धिजीवी बातों से नहीं|
जब एक अनजान व्यक्ति हमारी वाइब्रेशंस से प्रभित हो सकता है तो वो क्यों नहीं जो हमारे सब से करीब है|आप देखते हो दो अलग अलग घरों में एक ही नस्ल के पालतू पशु विभिन्न व्यवहार करते हैं| ऐसे ही एक जैसे पौधे भी अलग तरह से खज़िलते मालूम होते हैं क्योंकि हर घर के लोगों का संस्कार भिन्न है, हर घर का वातावरण भिन्न है|
इसी तरह हमारी वाइब्रेशंस का सीधा प्रभाव हमारे अपने बच्चों पर पड़ता है| हमारे बच्चे जो हैं वो हमारी वाइब्रेशंस का नतीजा है|
हम न अपनी शारीरिक ताक़त न ही अपनी बुद्धि अपने बच्चों को दे सकते हैं लेकिन अगर हम भावनात्मक रूप से समर्थ और सशक्त हैं तो वो संस्कार हमारे बच्चों में अपने आप चला जायेगा जिससे वे अपने जीवन में और बेहतर इंसान बन पाएंगे|जिस भी चीज़ पर हम अपना समय और अपना ध्यान डाल देते हैं, वह हमारी ज़िन्दगी में मज़बूती पकड़ लेती है|हमें अपनी वाइब्रेशंस को इतना सशक्त बनाना है की हम किसी के भी संपर्क में आएं, बिना प्रभावित हुए हमारी ऊर्जा से उस आत्मा की वाइब्रेशंस को भी शक्ति मिले|
कुछ साल पहले ही हम देखें तोपाएंगे कि हमारे पूर्वक आज से ज्यादा स्वस्थ और मानसिक अशांति रहित जीवन यापन करते थे। उस समय ये बीमारियाँ और मनोविज्ञानी लोगों की कोई आवश्यकता ही नहीं होती थी। इसका मुख्य कारण था कि तब लोगों के दिमाग में, मन में इतनी आशांति, चिंता नहीं होती थी। इसी कारण से लोग खुद को स्वस्थ रखने में सफल होते थे। किसी भी काम को ठीक प्रकार से करने के लिए मन को स्थिर करना अनिवार्य होता है।मन की चंचलता स्थिर करने के लिए राजयोग ध्यान हीएक मात्र उपाय है जिससे रोज़ थोड़ा थोड़ा अभ्यास करने से मन को स्थिर रख सकते हैं|भागदौड़ भारी ज़िन्दगी में खुद के लिए थोड़ा सा वक़्त हम ज़रूर निकालें, अच्छे विचार से अच्छे संस्कार व अच्छा चिंतन मन में चलाएं, अपने पास बैठ अपने से बात करें|सुबह सुबह फ़ोन व्हाट्सएप्प फेसबुक ये बिलकुल नहीं करना है| उस समय अपने को केवल सकारात्मक विचारों की ऊर्जा से चार्ज करना है|अच्छे संस्कार से ही अच्छा परिवार व समाज बनेगा और मानव जीवन खुशहाल हो पायेगा|
शिवानी दीदी ने कुछ बातें सिखाईं जो जीवन में हमारा नज़रिया बदलने में सहायक होंगी|
मैं एक शक्तिशाली आत्मा हूँ| मैं सदा शांत और प्रसन्न हूँ|
मेरा हमेशा देने का संस्कार है, मांगने का नहीं|
मेरे पास पर्याप्त समय है, मेरा हर काम आराम से पूरा होता है|
जो हम देखते सुनते पढ़ते हैं, उसका चुनाव मेरे हाथ में है|
जो मेरे जीने का तरीका होगा, वही संस्कार बन जायेगा|
दूसरे पर राज करने से पहले अपने पर स्वराज्य ज़रूरी है|
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