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■छत्तीसगढ़ी रचना आसपास : ■दुर्गा प्रसाद पारकर.
●मोर गँवई गंगा ए
-दुर्गा प्रसाद पारकर
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
मंगलू ह
सहरिया मन के
रहन सहन ल देख के
अपन संगवारी
खोरबाहरा ल कथे –
चल सहर जातेन रे भाई
गाँव ल छोड़ के सहर जातेन
खोरबाहरा कथे –
गाँव ल छोड़ के
सहर चल देबे मंगलू त
खेती किसानी ल कोन करही ?
खेती किसानी नइ करबो त
खाय बर
अन्न कहाँ ले मिलही ?
जब खाय बर नइ मिलही
त सहर काबर जाबे ?
मँय जानत हवँ मंगलू
भूख मरबे ताहन
एक दिन तँय
गाँव लहूट के जरूर आबे
गाँव अउ सहर वाले मन के
पेट म चारा डारे बर
तँय धरती मइया के सेवा कर
ताहन तो तोला खुदे
छत्तीसगढ़ महतारी ह
असीस दिही –
जइसे के मंगलू लेबे देबे ,
तइसे के पाबे असीसे
अन्न धन्न भण्डार भरे
जुग जीबे लाख बरिसे |
मंगलू कथे –
बने काहत हस भइया
सहर के जम्मो
सुख सुविधा ल गाँव म लाहूं
बढ़िया शिक्षा, स्वास्थ्य के
संगे संग
रोजगार के अवसर लान के
हमर गाँव ल
निर्मल गाँव बनाहूँ
खोरबाहरा कथे –
ए होइस न बात
तिही पाय के कथँव
गाँव ल छोड़ के सहर डाहर
झन जा, झन जा, झन जा रे
मोर गँवई गंगा ए
मोर गँवई गंगा ए |
●कवि संपर्क-
●79995 16642
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