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- ■नव वर्ष मनाऊं कैसे….? ■विजय पंडा.
■नव वर्ष मनाऊं कैसे….? ■विजय पंडा.
शीत ; बहते बयार के मध्य नव वर्ष की बेला धीरे – धीरे खिसकते आज आ गयी।सूर्य की रश्मियाँ मेरे घरों की छप्पर पर छा चुकी है जो यह बतला रही है कि मैं पुनः अपने कर्म पर उपस्थित हो गया हूँ तुम भी नियत समय मे जीवन रूपी मंच में संघर्ष के लिए कार्यक्षेत्र में निकल पड़ो। घरों में लगे पौधों की पत्तियाँ ; जिसमें विकास से निकली काली पर्त जमी हुई है एवं खिलते सुमन ; कल कारखानों के चिमनियों निकलती धुएँ से अपने हरे रंग – बिरंगे रंग की अस्तित्व को जो खो चुकी हैं वो भी अपनी वेदना को छिपाए मुस्कुराने का प्रयास कर रही है। अपने मित्रों को नववर्ष की शुभकामनाएँ देने में मुझे थोड़ी हिचकिचाहट सी महसूस हो रही है क्योंकि अब बढ़ते विकास- बढ़ते समय के साथ उनकी जिम्मेदारियाँ भले ही न बढ़ी हो लेकिन वो अपने को “एडवांस” समझते हुए आजकल के सबसे व्यस्त रखने वाली यंत्र मोबाईल के वाट्सअप से मुझे नववर्ष की शुभकामना भेज चुके हैं एवं उनके पास वात्सल्य स्नेह हास्य जैसे रसों को लुटाने के लिए समय भी नही है।ये सभी रस काव्य की बातें बन्द आलमारी में रखी पुस्तकों में सिमट गयी है व कक्षा के छात्रों में उचित अंक लाने का एक सिर्फ माध्यम बन गयी है।छात्र भी रस नामक व्याकरण पढ़ रहे हैं किंतु उस रस एवं विधा की जरूरत नही जिसको पढ़ कर राष्ट्र प्रेम का शरीर मे वीर रस का संचार हो।उसको बस्ते का बोझ सम्हालने में ही ठीक लगा रहा है।नववर्ष का बढ़ते समय ; समय के बढ़ते विकासरूपी पहिये के साथ – साथ दौड़ लगाना आवश्यक है किंतु उतना भी नही जो घर का नन्हा बालक प्रदेश का “अंश” जो अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की उम्र व क्षमता नही किन्तु प्रदेश के माननीय से पुरुस्कृत प्रोत्साहित “बसपन का प्यार ” वाली गीत सुनकर नाचने थिरकने लगा है। सँस्कृति को सहेज कर आने वाली पीढ़ियों को बाँटना , आज एक युवा पीढ़ी सहित समाज के अन्य लोगों के लिए आज आवश्यक जिम्मेदारी हो गयी है। फिलहाल नववर्ष का स्वागत करने ,उत्साहित होने का साहसिक निर्णय नही ले पाने का एक कारण राष्ट्र प्रहरियों पर जो विगत वर्ष हुए कायराना हमले जिससे कइयों के परिवार उजड़ गए उसको भूल जाना शायद संवेदनशील नागरिक के गरिमा के प्रतिकूल होगी या हमारी संवेदनाओं के विपरीत होगी।नववर्ष का आगमन हो चुका ; बच्चों में अंग्रेजी साहित्य के प्रति बढ़ते अनुराग ने ; जो पूछ बैठते हैं “दो हजार बाईस” मतलब पापा ! इंग्लिश में बोलो ना। असमंजस की स्थिति में हूँ मतलब 2020 -21 को याद कर , कैसे परिभाषित करूँ ? जब बिगत वर्ष हर्षोल्लास से नव वर्ष उनके साथ मनाया था और बोला था” मत आना हे!2020″क्या हुआ था सब जानते हैं दुनिया थम सी गयी थी।लोगों को भूलने की आदत ज्यादा है तब तो लोग भ्रष्टाचार आतंकवाद को भूल जाते है और पाँच साल फिर सील मोहर लगा के कुर्सी में बिठा दिए जाते हैं। मायने बदल गए कई मूल्यों के , बदल गए समय कैलेंडर के साथ , परिवर्तन प्रकृति का नियम है ।तब शायद सोचता हूँ कि अब नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाऊँगा और जब प्रकृति में चहुँओर हरियाली एवं नवपुष्प आम्र के बौर विकसित होते रहते हैं।सुंदर हरीतिमा , माँ भगवती का आगमन, जनमानस भक्ति श्रद्धा हर्ष से सराबोर रहता है।बहरहाल जो भी हो बिता हुआ अंग्रेजी नववर्ष लोगों के हर संवर्ग के लिए अनुकूल नही रहा। कई अच्छे शख्शियत को जहाँ हमने खोया तो ,कोरोना ने कोहराम मचाया। जिसने सबक दिया कि ब्रम्हाण्ड में मानव से भी बढ़ कर सर्वोच्च सत्ता है और मानव उसके नियंत्रण में है।फिर भी आज के भौतिकवादी युग में लोग अहंकार अधर्म अन्याय का साथ नही छोड़ पा रहे हैं।छोड़े भी क्यों माया मोह तो प्रकृति है इसलिए तो जनमानस से लेकर माननीय तक कुर्सी को पकड़ रखे है एवं सदैव कुर्सी का मोह मन मष्तिष्क में छाया हुआ है।समय के इस चक्र के साथ अपनों को सहेजते समेटते सम्हालते सँवारते राष्ट्र बोध को स्वीकारते धीमे स्वर में कहना पड़ेगा – स्वागत है ; हे! नववर्ष ।
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