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  • ■कहिनी : डॉ. दीक्षा चौबे.

■कहिनी : डॉ. दीक्षा चौबे.

3 years ago
865

♀ फेर आबे बेटी
♀ डॉ. दीक्षा चौबे
[ दुर्ग-छत्तीसगढ़ ]

पूस पुन्नी के जुड़ तेमा सुरुजदेव तको रिसियाये रिहिस , चार दिन होगे निकरे के नामेच नई लेवत हवय । ओनहा तको जुडाय सही लागथे । नहाय के बातेच झन कर , हाथ गोड़ धोए के तको मन नई लागय । अंगना म घर-परिवार के लोगन खमखमाय रहीन । सौम्या ल सबके आघु म ओखर ससुर ह किहिस – “अब तोर इहाँ का काम हे , जेखर पाछू म आये रहे तेन ह तो रेंग दिस । जा तहुँ अपन जिनगी अपन हिसाब ले बसर कर । अपन मइके जाके छुछिंदा रहिबे । हमर दुनों डोकरी-डोकरा तीर तोला का मिलही ।
संजीव अउ सौम्या इस्कूल के दिन ले संघरे पढ़त आवत रिहिन । दोस्ती के कली ह कब मया के आरुग फूल बनगे ए बात के गम तको नई पाइन । पढ़-लिख के दुनों अपन गोड़ म खड़े होगे त बिहाव के गोठ ल अपन घर म बताइन । संजीव ह अपन दाई ददा के आँखी के पुतरी बरोबर दुलरुवा रहीस । अब्बड़ हुसियार , ओखर बर दाई ददा अपन मन म कतना सपना सजा के रखे रहिन । खूब धूमधाम करके ओखर बिहाव करतेन ऐसनहा दुनों परानी सोचके रखे राहय । ओखर प्रेम बिहाव के बात ल सुनके आगी सही भभक के ओखर ददा ह । तें आ न जात के टुरी ल बिहाव करथस त ओहा हमर संग नई रहे सकय । ओला लेके तेहर आ न जगह रहे बर जा । ऐसनहा अब्बड़ करू-करू बोले लगिस फेर संजीव ह ऐसनहा हो न नई दिस । बाप-महतारी ल छोड़ के हमन क इसे निकर जई कइके बिहाव के पाछू उहे घर के ऊपर म एक ठन कुरिया म दुनो प रानी अपन गिरहस्थी ल जमाईन । सौम्या ल तको बने नई लागय बिहाव होतेच ले बेटा ल ओखर मा बाप ले अलग करा दिस कइके सब्बो मोहि ल दोष दिही ऐसनहा बिचार के ओहर अब्बड़ दुखी होवय । फेर मन म ए सोचे रिहिस के किसनहो कर के सास ससुर ल मना लुहु । मीठ बोली ब्यवहार ले जानवर तको ह मया करे लगथे त दाई ददा कइसे नई पिघलही । अपन मया ह नई छूटय कइके ओहर उँकर तीर बोले के कोशिश करय फेर बाबूजी के गुस्सा हर कमती नई होइस । सास हर मयारू कई पित चुपेचाप दुनों झन ल निहारत राहय । बेटा संग बोलय तको फेर बहु संग आदमी बोलन नई दय । गोसइया रिसा जाहि कइके बपरी दुरिहा राहय । बेटा बहु अपन नौकरी म जाय बर नीचे उतरैं तव लुका के ओमन ल निहार के निहाल हो जाय , कतेक सुघ्घर राम सीता सही जोड़ी हवय । फोकट जात पात के बखेड़ा धर के रोशियाय हे । नता रिश्ता कोन काम आही आखरी म अपनेच खून ह संग दिही । लइका हर आघु म हे अउ बने सही बोल बता नई संकव ।
के दिन बिन बोले रहितिस , लुका-लुका बहु बाई संग बतियाय लगिस । ममता ऊपर कोन लगाम लगाय स कही , बड़े-बड़े नदिया म बाँध बन जथे फेर माँ के मया ल कामे बाँधे । सौम्या के जिसनहे नांव तइसनहे गुन रिहिस , अब्बड़ शांत सुभाव के अउ गुड़ पागे सही मीठ बोली । संजीव के बाबूजी ह जनम के जिद्दी फेर उहू लइका मन ऊपर नजर डारे राहय । ऑफिस ले आये म थोरकुन देरी होतिस त अंगना म आघु-पीछू करे लागय । मुंह म फिकर दिखे लगय के कइसे नई आएँ हें । ओखर बेचैनी ल देख के महतारी मुच्च ले हाँस परय । अइसनहे बेरा निकलत गिस । धीरे-धीरे गुस्सा के बरफ हर पिघले लगिस , महतारी के मन ह नई मानय के लइका आघु म रही अउ ओहर उमन ल कुछु खवा पिया नई सकय ।
तिहार बार म लुके छिपे ठेठरी खुर्मी , बरा सोंहारी आय लगिस । संजीव के ददा हर सबो जिनिस ल देख सुन के अपन आँखी ल तोप लिस । के साल मा बपरी ह अपन मन ल मार के रिहि कइके टोके बर छोड़ दिस ।
आदमी अपन करम ल बना बिगाड़ सकत हे फेर ओ बिधाता के बिगाड़े ल कइसे बनावय । ओ दिन संझा होगे ,रतिहा होय लगिस संजीव ह घर नई पहुंचिस त सौम्या घबरा के दाई ददा ल आरो दे लगिस – मा आज मोर जी घबरावत हावय कइसे एमन अभी ले पहुंचे नई हे । थोरको देरी होथे त संजीव ह तुरते फोन कर देथे फेर आज कइसे भुला गे हे ,कुछु समझ नई आवत हे । महुँ फोन लगावत हव त उठावत नई हे । तुरते सास हर आके सौम्या के पीठ म हाथ थपथपा के ओला धीर बंधाय लगिस । तेहर फिकर झन कर बेटी ओहर आवत होही । ओखर ददा हर जाथे पता करे बर । थोरकुन समय बाद ओखर बचपन के संगवारी सुधीर हर आके ददा तीर लिपट के गोहार पार के रोये लगिस । ओहा हमन ल छोड़ के चल दिस कका….सौम्या हर मूर्छा खाके गिर परिस । देखो देखो होगे । जौन घर म कल तक हंसी-ठठ्ठा गुंजत रिहिस तिहां आज शमसान सही उदासी हर पसर गे । उन सबके जिनगी के धुरी संजीव के सड़क दुर्घटना म मौत होगे रिहिस । तीनो परानी अधर म होगे रिहिन । रिस्ता के जौ न कड़ी उमन ल जोड़ के राखे रिहिस उही आज टूट गे रिहिस ।
धरम समाज के बनाय नियम मन दुख म तको आदमी ल जिनगी म आघु बढ़े के रद्दा देखाथे । एक परकार ले ए सब शोक के क्रियाकरम विधान मन अपन जम्मो दुख ल भुला के अपन मया के आत्मा के शांति के खातिर फेर उठ के खड़े होय के ताकत देथे । किसनहो कर के अपन मन ल मना के ओहर सब्बो संस्कार ल निभाथे अउ ओखर दुख ह अपन रिस्ता नता अउ संगी मन संग ए सब म थोरकिन कम होथे । आज संजीव के तेरही होय के बाद सौम्या ल ओखर ससुर ह अपन मइके जाय बर कहत रिहिस अउ सौम्या के मन हर अपन अतीत म
घूमे चल दे रिहिस । बिहनिया ले ओखर भाई बहिनी ओखर कपड़ा लत्ता ल धरत रिहिन फेर सौम्या हर कठवा असन चुप
बइठे रिहिस जइसे अब भीतर कुछु जान बचे नइहे । संजीव के मरे के बाद तेरा दिन तक ओहर कुछु नई बोले रिहिस ,जेन बुता ल करे बर लोगन कहय ओहर करत जाय मानो अब ओखर मन हर मर गे । अब ओखर भीतर जिये के कुछु आस नई बाँचे रिहिस , कोनो संग कुछु नई बोलय ,टुकुर टुकुर दीवाल ल देखत बइठे रहय । ओखर दशा ल देखइया मन रो डारय । अतका कम उमर म गोसइया के जाय के दुख हर पहाड़ ल जादा बड़े अउ भारी होथे । संजीव अउ सौम्या त बचपन के संगी रिहिन , हर चीज म ओखर याद बसे रिहिस , जेती देखय संजीव हर मुच्च ले हाँसत दिख जाय । कभू सौम्या ल धीरज बंधावत , कभू ओखर मुँह म आये केश ल अपन अंग्री ले उठावत.. आँखी मुंद के सौम्या ओखर मया ल सुमिरै लगय । कइसे जिनगी पहाही मोर संगवारी , सात जनम संग रहे के किरिया खाके इही जनम म अकेल्ला कर देस…ओहर फफक-फफक के रो डारिस ।
सास-ससुर कभू अपनाइस नहीं , जेखर पाछू ए घर म आय रेहे बेटी ओहर तो चल दिस । मा-बाप अउ मइके सही दुलार कहाँ पाबे ,चल तोर सबो जिनिस ल सकेल देथव । सौम्या के बहिनी अऊ दाई जुरमिल के ओखर ओनहा मन ल बांधे लागिन । सौम्या कठौती सही चुप बइठे रिहिस , न हाले के न डुले के । कोन ओखर बाही ल धर के तिरिस तेखरो होश नहीं फेर ओखर गोड़ हर मन भर के होगे रहिस । उठाये लें नई उठय ।दुआरी के पहुँचत ले मन म आस लगे रिहिस कोनो रोक लेतिस त जिनगी भर इहें रुक जातेव ,इहाँ मोर परान ह छूटत जाथ हे बाहिर त सोझे मोर शरीर ह जाहि । मुँहटा म पहुँचे रहिस के माँ के धीमा आवाज सुनाई दिस ” फेर आबे
बेटी ” ए तीन ठन शब्द ह सौम्या के अंतस ल करुणा ले भर दिस । नदी के दुनों छोर ल पुलिया हर जोड़थे वैसनहे संजीव हर सौम्या ल ए घर ले जोड़े रिहिस । पुलिया के टूटे ले करुणा के जल हर दुनों झन ल भिनजो दे रहिस अउ सौम्या हर दउड़
के महतारी संग लिपट गे, दुनों के गोहार म जम्मो झन के आँखि ले आँसू बोहाय लागिस । अपन मया के पीरा हर आज सब भेदभाव ल भुला दिस । मया म अब्बड़ ताकत रहिथे ,ओहर रँग, रूप जाति धरम कुछु ले बाँधे नई बंधावय ए बात ल सब्बो झन जान डारिन । माँ ल अपन छाती ल लगाके सौम्या हर संजीव के फोटो कती देखिस त अईसे लगिस के ओखर मुंह म मुस्कान आ गे हे । माँ-बाप के गुस्सा दूध के उफने जइसन होथे ,उफनही तह ले दूधे म गिरही ,संजीव के गोठ हर सुरता आत रिहिस । संजीव के सुरता अउ ए अंगना ल छोड़ के मैं कहूँच नई जांव , सौम्या हर अपन फैसला ल जम्मो झन ल सुना दिस अउ माँ के आँसू ल पोंछे लागीस ।

 

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