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- ♀ सजल-वर्षा ऋतु पर : गीता विश्वकर्मा ‘नेह’ [ बालको नगर,कोरबा,छत्तीसगढ़ ]
♀ सजल-वर्षा ऋतु पर : गीता विश्वकर्मा ‘नेह’ [ बालको नगर,कोरबा,छत्तीसगढ़ ]
घिरी घटाएँ उमड़-घुमड़कर,
शिखी पपीहा हरस रहे हैं ।
झरे निरंतर सलिल गगन से,
अनिल लहरकर परस रहे हैं ।।
किलोल कल-कल ध्वनित हुए हैं,
नदी नहर ताल पोखरों से ।
नमन किए जा रहे विटप दल,
हरीतिमा से लहस रहे हैं ।।
बिखर रहीं बूँद-बूँद छमछम,
नुपूर सम वह ध्वनित हुई हैं ।
लगे सुखद सुन सभी हृदय को,
मधुर-मधुर स्वर सरस रहे हैं ।।
विभिन्न जीवों समेत भू की,
तृषा मिटाती रही फुहारें ।
खिले दिखे मेघपुष्प तृण पर,
सभी दृगों के दरस रहे हैं ।।
पयोधरों के मृदंग घिड़के,
तड़क-तड़क बिजलियाँ चमकती ।
मदांध हैं आँधियाँ हवाएँ,
तुषार के कण बरस रहे हैं ।।
चली कजलियाँ मल्हार मनहर,
अनेक धुन लोक गीत सुनिए ।
विरहणियाँ कंत बिन तड़पती,
उधर सजन सब तरस रहे है ।।
कतार में मेघ जब घिरे तो,
नहीं दिखे सूर्य की प्रभाएँ ।
वहाँ अवनि पर कई दिनों तक,
घिरे हुए बस तमस रहे हैं ।।
पयोद बादल जलज धराधर,
घटा कभी मेह अभ्र अंबुद ।
सनेह पर्जन्य मेघ घन धर,
सुनाम सारे मनस रहे हैं ।।
●कवयित्री संपर्क-
●99266 23854
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