नवरात्रि विशेष : संध्या श्रीवास्तव
🌸 माँ
– संध्या श्रीवास्तव
[भिलाई – दुर्ग, छत्तीसगढ़]
नव कल्पना नव रूप में माँ
छाँव तुम अति धूप में मॉ
भक्तिमय रहे हृदय गगन
मन नयन करे तुमको नमन मॉ
एकाग्र हो मन शुद्ध निर्मल
साधना से फलित हो पल
मन शैल सम होवे प्रबल
दयामयी हर रूप में मॉ
जो लालसा में लिप्त हो मन
कर रूप ब्रह्मचारिणी के दर्शन
मुक्त सतपथ बढ़े कदम
कृपसिंधु हर रूप में मॉ
जब तमस की ऊष्मा हो भीतर
रूप कुष्मांडा कि चित्त धर
माँ भावना हो शीतल विमल
अंतःकरण की की शुद्धि दो मॉ
रूप दो जय विजय देकर
यशगान दो सकंधमाता।
कल्याणमयी सौभाग्यदायनI व्याधिनाशिनी शत्रजयी मॉ
गृहक्लेश हो आक्षेप हो तो
आवहन हो मॉ कत्यायिनी का
हर कर विषाद कर सुरभित मन
हर लांछना से मुक्ति दो मॉ
भक्ति की अति शक्ति में तुम
रूप कालरात्रि प्रसीद में
काटो जनम मरण बंधन
संसार तारिणी मुक्ति दो मॉ
गान में अति ध्यान में तुम
सूक्ष्म तत्व के ज्ञान में तुम
हो सोम्यरूप गौरी स्वरूप
दो आत्मज्ञान ही स्वयंप्रभा मॉ
सायं प्रातम स्मरण में
निशीथे तुरीय संध्या जपन में
चिन्मयानन्द में सिद्धीदात्री तुम
नव सिद्धियों का वरन दो मॉ
नव कल्पना नव रूप में मॉ
छाँव तुम अति धूप में मॉ
भक्ति मय रहे हृदयगगन
मन नयन करे तुमको नमन मॉ
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