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- विशेष [शैलेन्द की जन्मशती 30 अगस्त 2023 पर] : सेल्यूलाइड पर लिखी कविता ‘ तीसरी कसम ‘ : – आलेख कुबेर सिंह साहू
विशेष [शैलेन्द की जन्मशती 30 अगस्त 2023 पर] : सेल्यूलाइड पर लिखी कविता ‘ तीसरी कसम ‘ : – आलेख कुबेर सिंह साहू
1966 में प्रदर्शित होने वाली फिल्म ’तीसरी कसम’ महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ ’रेणु’ की ’तीसरी कसम’ उर्फ ’मारे गये गुलफाम’ नामक कहानी पर आधारित है। इसके निर्माता थे, सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र। फिल्म का निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने किया है। पटकथा नबेन्दु घोष की है, जबकि संवाद स्वयं फणीश्वर नाथ ’रेणु’ ने लिखे हैं। फिल्म के गीत शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखे हैं, जबकि संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने दिया है। इस फिल्म में भारतीय ग्राम्य जीवन का सांस्कृतिक चित्रण मात्र ही नहीं किया गया है बल्कि मानव हृदय के अंतरतम में स्थित, मानव जीवन को निर्देशित और नियमित करने वाले सबसे सुदर, पवित्र और महान अमूर्त प्रेम को मूर्त रूप में प्रस्तुत करने का एक सफल प्रयास भी किया गया है। इस फिल्म को देखते हुए आप अमूर्त प्रेम को मूर्त होते हुए देखते और महसूस करते है। यह सब संभव हुआ है अपने-अपने किरदारों को आत्मसात करके परदे पर पूरी तन्मयता के साथ जीने वाले फिल्म के नायक गाड़ीवान, हिरामन (राज कपूर) और फिल्म की नायिका, नाटक कंपनी की नृत्यांगना हीरा बाई (वहीदा रहमान) के सर्वोत्कृष्ठ भावप्रवण अभिनय से। सुप्रसिद्ध साहित्यकार और स्क्रिप्ट लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास ने इस फिल्म को ’सेल्युलाइड पर लिखी हुई कविता’ कहा था। इस क्लासिकल फिल्म के प्रदर्शन की आधी सदी गुजर जाने के बाद आज भी इसकी चर्चा होती है। लोकधुनों पर आधारित इसके कर्णप्रिय और भावप्रवण गीत आज भी गाये-गुनगुनाये जाते हैं, परंतु दुख की बात है कि फिल्मों की सफलता का पैमाना माने जाने वाले बाक्स आफिस पर यह कलात्मक और श्वेत-श्याम फिल्म, व्यावसायिक रूप से बुरी तरह असफल रही थी। कहते है कि फिल्म की इस असफलता से उत्पन्न अवसाद को शैलेन्द्र सह नहीं पाये और उसी साल (14 दिसंबर 1966 को) 43 वर्ष की अल्पायु में ’लीवर सिरोसिस’ नामक बीमारी से उनका निधन हो गया।
शैलेन्द्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में हुआ था जहाँ उनके पिता भारतीय रेल के कर्मचारी के रूप में पदस्थ थे। ये मूल रूप से बिहार के रहने वाले थे। कहते हैं, इस फिल्म की असफलता को लेकर शैलेन्द्र अक्सर कहा करते थे, ’मुझे इस बात का दुख नहीं हैं कि फिल्म सफल नहीं हुई, दुख मुझे इस बात की है कि भारतीय दर्शकों में कलाबोध का इतना अभाव क्यों है।’ व्यावसायिक असफलता के बाद भी इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्माण के लिए 1966 का राष्ट्रपति स्वर्ण पदक, 1967 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 1967 में ही ’मास्को अन्तर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव: ग्रां प्री’ का नामांकन प्राप्त हुआ था।
फिल्म का कथानक बिहार के ग्रामीण, लोक-जीवन की पृष्ठभूमि पर आधारित है। नायक गाड़ीवान हिरामन फिल्म में तीन बार कसमें खाता है। पहली बार, जब वह अपने साथी गाड़ीवानों के साथ रात के अंधेरे में बैलगाड़ी में चोर बाजार का नमक लादकर नेपाल से भारतीय सीमा में प्रवेश करते हुए पुलिस द्वारा पकड़ लिया जाता है। यद्यपि अपनी चतुराई के कारण वह गाड़ी को वहीं छोड़कर और अपने बैलों को छुड़ाकर पुलिस से बच निकलता है, परंतु इस घटना से सबक लेते हुए घर में भाभी के सामने कान पकड़कर कसम खाता है – “कसम खाता हूँ भाभी, अब फिर कभी चोर बाजारी का माल नहीं लादूँगा।” दूसरी कसम तब खाता है जब वह महाजन की गाड़ी में बांस लादकर जंगल से लौट रहा होता है और ढलान में उसकी गाड़ी अनियंत्रित होकर किसी रईस की घोड़ागाड़ी से टकरा जाती है, यद्यपि गलती उसकी कम थी परंतु मार तो उसे ही पड़नी थी। मार खाते हुए हाथ जोड़कर उसने दूसरी कसम खाई – “कसम खाता हूँ, अब बांस कभी नहीं लदूँगा”। और तीसरी कसम फिल्म के अंत में; हीराबाई के चले जाने बाद उदास मन से, स्टेशन के बाहर, जब वह अपने बैलगाड़ी में आकर बैठता है तो बैलों को झिड़की देते हुए कहता है – “पलट-पलट कर क्या देखते हो, खाओ कसम! फिर कभी कंपनी की बाई को गाड़ी में नहीं बिठायेंगे।”
और इसी के साथ फिल्म समाप्त हो जाती है।
फिल्म में शुरुआती दो कसमों तक हिरामन के परीश्रमी, सहज, सरल, भोले, निष्पाप, वचन के पक्के, परंतु, चतुर ग्रामीण युवक के चरित्र को स्थापित किया गया है। उसके गाँव हरिपुर, जिला पूर्णिया से बीस कोस दूर ’गढ़ बनेली’ के मेले की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। सर्कस कंपनी के बाघों की गाड़ी को मेले तक ढ़ोने के लिए कोई दूसरा गाड़ीवान तैयार नहीं होता। चतुर हिरामन ने इस स्थिति का फायदा उठाया। सौदा किया 150 रू में। तगड़े और हिम्मती बैल तो उसके पास थे ही। मजदूरी के रूप में मिले 150 रू से उसने सवारी ढोने के लिए टप्परवाली बैलगाड़ी खरीद लिया। और अब वह केवल सवारी ढोने का काम करता है।
फिल्म में मानवीय प्रेम को मूर्त रूप देने का काम यहीं से शुरू होता है। कानपुर की रहने वाली हीरा बाई नौटंकी की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना और अभिनेत्री है। यद्यपि गढ़ बनेली तक रेल से यात्रा करने की सुविधा है परंतु हीरा बाई ने अपने नौकर बिरजू (सी. एस दुबे) को रेलगाड़ी से भेजकर स्वयं हरिपुर से गढ़ बनेली तक के बीस कोस की दूरी को बैलगाड़ी से तय करने का निश्चय किया हुआ है। (इस तरह का अस्वाभाविक निश्चय उन्होंने क्यों किया, इसका स्पष्टीकरण न तो फिल्म में दिया गया है और ही न मूल कहानी में। एक बार हिरामन के पूछने पर हीरा बाई यह कहकर बात टाल देती है कि ’रेलगाड़ी से जाने पर तुमसे मुलाकात कैसे होती?’) हिरामन की गाड़ी से अच्छी गाड़ी भला और कहाँ मिलती। गाड़ी में परदा लगा हुआ है। बिरजू से सौदा तय होता है 30 रू में।
गाड़ी चल पड़ती है। सवारी को उन्हांेने देखा नहीं है। अंदर से आ रही ई़त्र की खुशबू से हिरामन का मन शंका से भर जाता है कि सवारी के नाम पर अंदर कोई जिन्न या चुड़ैल तो नहीं है। रास्ते में भोलेनाथ के मंदिर के सामने गाड़ी रोककर किसी अनिष्ट से बचने के लिए वह मनौती मनाता है – “सवा रूपये का प्रसाद चढ़ाऊँगा। रक्षा करो भोलेनाथ।” वापस आकर डरते, सकुचाते हुए हिरामन ने परदे के कोने से झांककर अंदर देखा और सहसा कह उठा कि “यह तो परी है।” जब वह तेज चलाने के लिए, बैलों को मारने के लिए लाठी उठाता है, तो भीतर से मीठी आवाज आती है – “मारो मत।” ऐसी मीठी आवाज परी के अलावा भला और किसकी हो सकती है? प्रश्न पूछा जाता है, “भइया! तुम्हारा नाम क्या?”
जवाब मिला – “हिरामन।”
हीरा बाई कहती है – “तब तो मैं भइया नहीं, मीता कहूँगी। मेरा नाम भी हीरा है, हुए न मीता।” और बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता है, घर-परिवार, शादी-ब्याह, व्यवसाय आदि के बारे में बातचीत करते हुए रात का सफर कट जाता है। और इधर सहृदय (दर्शक) के हृदय में प्रेम क्रमशः मूर्त रूप लेने लगता है।
सुबह कजरी नदी के महुआ घटवारिन के घाट पर गाड़ी रोकी जाती है। नदी के इस घाट से इसी गाँव की ऐतिहासिक युवती ’महुआ’ का मिथक जुड़ हुआ है, जिसे उसकी सौतेली माँ ने किसी परदेसी सौदागर को बेच दिया था। हीरा बाई को स्नान करना है। हिरामन उसे कहता है, “यह महुआ घटवारिन का घाट है, यहाँ कुँआरी लड़कियाँ नहीं नहाती।” हीरा बाई दूसरे घाट पर चली जाती है। गाड़ी के पास लौटकर आने पर हिरामन अपने बैलों को संबोधित करते हुए कहता है, “देखा, कुँआरी भी है।” और उसके मन के सूने, विरस आंगन में हीरा बाई की छवि आकार लेने लगती है। गाँव जाकर हिरामन जलपान ले आता है। हीरा बाई अकेले जलपान करने के लिए तैयार नहीं है। हिरामन को आग्रहपूर्वक जलपान कराकर ही वह मानती है। हीरा बाई के भी मन में हिरामन की ऐसी ही छवि आकार लेने लगती है। वह भूल जाती है कि रईसों और जमीदारों की अंकशायनी बनने वाली हीरा बाई हिरामन के योग्य नहीं है।
प्रेम में पात्र विवश होते हैं।
मेले में नाटक कंपनी के शो होते हैं। हीरा बाई अपने हाथों से भोजन पकाकर हीरामन को खिलाती है। दर्शकों के द्वारा हीरा बाई के लिए अभद्र टिप्पणी हीरामन भला कैसे बर्दास्त कर लेता। दर्शकों में जमीदार विक्रम सिंह (इफ्तखार) भी हैं जो हीरा बाई के यौवन का सुख भोगना चाहता है। हिरामन के पवित्र प्रेम की गंगा के अवगाहन से हीरा बाई का हृदय पवित्र हो चुका है। अब वह बिकाऊ नहीं है। आज ही नहीं, आजीवन अब वह बिकाऊ नहीं है। और भी बहुत सारे छोटे-छोटे, परंतु भावप्रवण दृश्य हैं, जिससे प्रेम की मूर्ति पूर्णता को प्राप्त करता चला जाता है।
हीरा बाई अब वास्तविकता की धरती पर लौट चुकी है। हिरामन के मन में हीरा बाई की पवित्रता को लेकर गलतफहमी है। हीरा बाई को वह पवित्र और कुँआरी समझ बैठा है। हीरा बाई इस बात को बखूबी जानती है। परंतु “इस गलतफहमी में जो आनंद है वह जमीदारों के ऐशगाहों में कहाँ?” लेकिन उसके जीवन की वास्तविकता से अनजान हिरामन के निश्छल मन को वह धोखा नहीं दे सकती। और वह यह भी नहीं चाहती कि हिरामन के मन में बनी उसकी पवित्र छबि खंडित हो जाय। अपनी वास्तविकता को जाहिर करके हीरामन के मन में बसे अपने पवित्र छवि को वह खंडित नहीं कर सकती। वह क्या करे?
अब तक वाचिक रूप से प्रेम निवेदन दोनों ही ओर से नहीं किया गया है। प्रेम निवेदन किया है केवल आँखों ने आँखों से, मन ने मन से, हृदय ने हृदय से। आँखों को, मन को और हृदय को धोखा दिया जा सकता है, विश्वास को नहीं। उसने निर्णय ले लिया है कि अब वह अपने देश लौट जायेगी। परंतु देश लौटने से पहले वह स्वयं को हिरामन की दुल्हन के रूप में देखना चाहती है। हीरा बाई हिरामन से मंदिर का दर्शन कराने ले चलने के लिए कहती है।
हिरामन हीरा बाई को बैलगाड़ी में बिठाकर मंदिर के दर्शन कराने लाया है। हीरा बाई जानती है, वास्तविक जीवन में वह कभी दुल्हन नहीं बन पायेगी, हीरामन की तो कभी नहीं। पर आज के दिन को तो वह हीरामन के साथ दुल्हन के वेश में बिता ही सकती है न? वह दुल्हन के वेश में है। गाड़ी में सकुचाती हुई बैठी है, जैसे कोई दूल्हा अपनी दुल्हन को गौना कराके ला रहा हो।
गाँव की परंपरा अनुसार गाँव के बच्चे गाड़ी के पीछे-पीछे चलते हुए नाच-गा रहे हैं, “लाली-लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया। पिया की पियारी भोली-भाली री दुल्हनिया।” पल भर का सच्चा सुख जीवन भर के दुख पर भारी होता है। दुल्हन के रूप में जीवन भर का सुख हीरा बाई इसी एक पल में हासिल कर लेती है। इस दृश्य के हृदयस्पर्शी संवाद और अत्यंत ही भावप्रवण अभिनय से दर्शकों के हृदय में प्रेम का मूर्त रूप पूर्ण हो जाता है।
लौटने पर जमींदर विक्रम सिंह (इफ्तखार) हीराबाई के तंबू में आ धमकता है और जबरदस्ती करने का प्रयास करता है। हीरा बाई कहती है. “मन की बात आप क्या समझोगे जमींदार साहब। आप तो सिर्फ रूप और यौवन के सौदाई हैं।”
जमीदार – “अच्छा! आजकल तुम्हें सती-सावित्री बनने का भूत सवार है? लेकिन सती-सावित्री बनाने से नहीं बनती हीरा बाई।”
हीरा बाई – “क्यों नहीं बनती। यदि आप जैसे कद्रदान किसी औरत को बाजारू औरत बना सकते हैं तो दुनिया में ऐसे भी कुछ लोग हैं जो बाजारू औरत को सती सावित्री बना सकते हैं।”
हिरामन के विश्वास और पवित्र प्रेम ने हीरा बाई को सती-सावित्री बना दिया है। अब वह कभी नहीं बिकेगी। हिरामन के विश्वास को टूटने नहीं देगी। एक ही रास्ता है, वह अपने देश लौट जाय, हिरामन की दुनिया से कोसों दूर।
पर हिरामन की अमानत को लौटाये बगैर वह कैसे जा सकती है। हिरामन गाँव गया हुआ है। वह स्टेशन पर हिरामन की प्रतीक्षा कर रही है। रेलगाड़ी स्टेशन पर आ चुकी है। पता चलने पर हिरामन भी किसी तरह आ जाता है। हीरा बाई कहती है – “मैं वापस जा रही हूँ मीता, अपने देश की कंपनी में ….. तुमने कहा था न …… महुआ, सौदागर के हाथों बिक जाती है ……. मैं बिक चुकी हूँ मीता।”
और रेलगाड़ी गति पकड़ लेती है। वह चली जाती है।
[ •कुबेर सिंह साहू शासकीय सेवा से निवृत होने के बाद निरंतर लेखन में सक्रिय हैं. •कुबेर की प्रकाशित कृतियाँ – भूखमापी यंत्र/उजाले की नीयत/भोलापुर के कहानी/कहा नहीं/कथाकंथली/माइक्रो कविता और दसवां रस/ढ़ाई आखर प्रेम के/कुत्तों के भूत/चेखव के दुनियां/कुछ समय की कुछ घटनाएं और सुरति अउ सुरता. •कुबेर की दो अनुवाद की संग्रह अतिशीघ्र आ रही है – 1.बाज के गीत अउ दूसर कहानी 2.पाब्लो नेरुदा के कविता संसार. •’ छत्तीसगढ़ आसपास में कुबेर सिंह साहू की पहली रचना… •संपर्क : 94076 85557 ]
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