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23 अप्रैल हिंदी छत्तीसगढ़ के समर्थ साहित्यकार डॉ. देवधर महंत के 68वें जन्मदिन विशेष : आलेख, बसंत राघव
👉 डॉ. देवधर महंत
23 अप्रैल हिंदी और छत्तीसगढ़ी के समर्थ कवि ,लेखक ,आलोचक पूर्व राजस्व अधिकारी तथा विधि विशेषज्ञ डा.देवधर महंत का जन्म दिवस है ।
डॉ.देवधर महंत हिंदी , छत्तीसगढ़ी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि , लेखक हैं । उनकी रचनाओं में लोक संस्कृति, कृषक समाज की आत्मा समाई हुई है। उनकी अपनी माटी की गंध झरती रहती है।उन्होंने सन् 1975 में” अरपा नदिया ” जैसी लम्बी बिंबधर्मी ऐतिहासिक कविता लिखकर छत्तीसगढ़ी भाषा को समृद्ध किया है । छत्तीसगढ़ी साहित्य में उनका नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है । हिंदी और छत्तीसगढ़ी में समान रूप से कलम चलाने वाले देवधर महंत की अब तक कोई सोलह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदी में गीत ,गजल, मुक्तक, नयी कविता ,कहानी , निबंध , संस्मरण , व्यंग्य , समीक्षा विधा में अभिव्यक्त होने वाले डा. महंत जी का छत्तीसगढ़ी साहित्य में बडा नाम है। इनकी पहली कृति , ” बेलपान “(छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह )” सन् 1974 में प्रकाशित हुई थी । उल्लेखनीय है, उस समय तक छत्तीसगढ़ी के अनेक नामचीन हस्ताक्षरों की किताब नहीं आ पायी थी । उसी वर्ष अंतर्देशीय पत्र में मिनी कविता मासिकी ” प्रेरणा” का इन्होंने संपादन – प्रकाशन भी किया । तब वे बी. एस-सी. प्रारंभिक के छात्र थे । 1975 में संपादित छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन ” पुन्नी के पांखी “प्रकाशित हुआ । उन दिनों छत्तीसगढ़ी में कृति प्रकाशन बहुत बड़ी बात हुआ करती थी । 1977 में हिंदी काव्य संकलन ” रोशनी के पौधे ” का संपादन -प्रकाशन भी उन दिनों चर्चा के दायरे में रहा ।नदी काव्य परंपरा में उनकी लंबी छत्तीसगढ़ी कविता ” अरपा नदिया ” बेहद चर्चित सृजन है ,जो संप्रति रविशंकर विश्व विद्यालय के एम. ए. अंतिम ( छत्तीसगढ़ी) के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। सन् 1974 से ही ये आकाशवाणी रायपुर से निरंतर छत्तीसगढ़ी काव्यपाठ करने लगे। आकावाणी के रायपुर , ग्वालियर , अंबिकापुर , शहडोल , रायगढ़ और बिलासपुर आदि केन्द्रों से इनकी रचनाएँ प्रसारित होती रहीं हैं ।आकाशवाणी के साथ दूरदर्शन एवं मंचों के सशक्त हस्ताक्षर देवधर महंत ने ” करमा गीतों का लोकतात्विक अनुशीलन” पर दुर्लभ शोध कार्य किया है। सन् 1999 में हरिद्वार में पद्मविभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य की पावन उपस्थिति में कानपुर विश्व – विद्यालय के पूर्व कुलपति डा. विश्वंभरनाथ उपाध्याय के कर कमलों द्वारा इन्हें डी. लिट् की मानद् उपाधि भी प्राप्त हुई है । ग्राम सरहर ( बाराद्वार ) में 13 नवंबर 1977 के चंदैनी गोंदा के भव्य आयोजन में उनकी इस लेखनी का भव्य सारस्वत सम्मान किया गया । इसके अतिरिक्त अनेक सम्मान और पुरस्कार इनके खातें में दर्ज हुए हैं।यह सुखद सूचना है कि उनके कृतित्व पर पी-एच.डी. हेतु शोधकार्य प्रारंभ हुआ है।
वरिष्ठ साहित्यकार डा. देवधर महंत पर केन्द्रित कृति ” अपने- अपने देवधर ” का प्रकाशन यथाशीघ्र मेरे संपादन में होने जा रहा है। यह हम सबके लिए हर्ष और मेरे लिए गर्व का विषय है।
हम आपके 68 वें जन्मदिन पर आपको हार्दिक बधाई देते हुए आपके शतायु की कामना करते हैं।
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