■छत्तीसगढ़ी गीत : •डॉ. पीसी लाल यादव.
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●बार देवव तुम आगी
-डॉ. पीसी लाल यादव
[ गंडई-छत्तीसगढ़ ]
कर सजोर कनिहा संगी,कस लेवव तुम पागी।
काँटा-खूँटी ल सकेल के,बार देवव तुम आगी।।
मतलब रहिथे तब तक, ओ आगू-आगू नवँथे ।
काम सधागे तहाँ ओ , निसदिन घातिया दवँथे
बार मसाल सभिमान के, मेट देवव तुम दागी ।
काँटा-खूँटी ल सकेल के,बार देवव तुम आगी।।
जेन ल अपन जानेस तेने,तोर हक ल नंगावत हे।
तोला सिधवा जान तोर,सुख-सपना भँजावत हे।
सुख -सुभिता छोड़ के,काबर बनेव तुम बैरागी?
काँटा-खूँटी ल सकेल के, बार देवव तुम आगी।।
जतका बहिरहा हवय तेमा, मनमाने बिख भरे हे।
लुड़हार के भुलियार के,तोर पेट ल चीख डरे हे।
बेसुरहा साज-बाज के कभू,झन बनव तुम रागी।
काँटा-खूँटी ल सकेल के, बार देवव तुम आगी।।
●कवि संपर्क-
●94241-13122
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