■कविता आसपास : •विजय पंडा.
●आज़ वीरान है
-विजय पंडा
[ रायगढ़-छत्तीसगढ़ ]
वो चाय की दुकान
आज बन्द पड़ी है।
कई दिनों से
टूटे पड़े हैं बैंच ;
उस बैंच पर
जहाँ अक्सर दोस्त बैठ
चहकते – मचलते ; धीर – गम्भीर
राजनीति में सरकार बनाते
आत्ममुग्धता के गीत गाते
कभी दाँत कभी आँख दिखाते
सड़कों – पुल पर हुए दलाली
औरअपने द्वारा किए भलाई
के गुण गाते।
आज
वो चाय की दुकान वीरान है।
जहाँ साहब से अर्दली तक
पुलिस और गाँव के पंच तक
मिलते ; गुप्तगु होते
इशारों में बात करते
पॉकेट में हाथ डालते
गिलास की खनक से
चाय की जाम हिलाते
कंधे से कंधे मिलाकर
बाहर निकलते
वो चाय की दुकान
आज वीरान है।
दुकान में गर्द जमे हैं
मालिक के सिर कर्ज बढ़े हैं ;
सामने पेड़ में हरियाली है
महल अट्टालिकाओं में
दीवाली है ;
एक ओर
रंग से बेरंग होती दुकान
बुरे दिन में अकेले खड़े
अपनी विवशता की कहानी
स्वयं मौन बयाँ करती
वो चाय की दुकान
आज वीरान है।
●कवि संपर्क-
●98932 30736
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