घोंसला- अंशुमन राय, प्रयागराज,इलाहाबाद. 4 years ago "अरे!यह क्या? गौरैया ने तो ए. सी. में भी अपना घोंसला बनाना शुरू कर दिया है।कुछ ही दिनों में तो ए. सी. चलाने की नौबत...
दो लघुकथा – महेश राजा 4 years ago ■आलोचक मित्र मित्र ने मेरी एक सामयिक रचना पर त्वरित टिप्पणी की,-"आजकल खूब अच्छा लिख रहे हो।कथ्य भी अच्छा है,पर संँस्मरण उस पर हावी हो...
लघुकथा, संघर्षशील- महेश राजा 4 years ago मित्र एक रोज मेरे घर पधारे।मैंनै दरवाजे पर उनका स्वागत किया।रिक्शेवाले को उन्होंने दस रूपये का नोट दिया। रिक्शे वाले ने कहा,-"साहबजी!महंँगाई बहुत बढ गयी...
लघुकथा, लेखक मित्र औऱ शाही भरवां- महेश राजा 4 years ago बहुतदिनो बाद पोस्ट आफिस में एक लेखक मित्र से मुलाकात हो गई।ढाई सौ रूपये का मनी आर्डर लेकर वे बाहर निकल रहे थे।मुझे देखकर मुस्कुराये,...
लघुकथा, व्यंजनों का मज़ा- महेश राजा 4 years ago शादी का सीजन चल रहा था। काफी दिनों से घर पर रहकर,घर का खाना खाकर लोग ऊब गये थे।वे एन्जॉय करना चाह रहे थे।फिर आज...
लघुकथा, दिसम्बर माह की एक सर्द सुबह -महेश राजा, महासमुंद-छत्तीसगढ़ 4 years ago मौसम ने एकाएक अपना मिजाज़ बदल लिया था।यह दिसंबर की अल्ल सुबह थी।वातावरण में कोहरा और नमी थी। शिव मंदिर के सामने बन रहे नये...
लघुकथा, कार्य कुशल -महेश राजा 4 years ago वे मूंछों मे मुस्कुराये,-"मैं किसी भी कार्य को पैन्डिंग नहीं रखता था।जो भी फाईल मेरी मेज तक आती थी,कोई न कोई आब्जेक्शन लगाकर दूसरे प्रभाग...
लघुकथा, समझौता- महेश राजा 4 years ago आफिस के सामने दो कुत्ते लड़ रहे थे।दोनों एक दूसरे पर झपटते तो लगता जैसे अपने प्रतिद्वंद्वी को नोच खायेंगे। एक सज्जन यह तमाशा देख...
लघुकथा, मैं तुलसी तेरे आँगन की- महेश राजा, महासमुंद-छत्तीसगढ़ 4 years ago फोन की घंटी बज उठी।रीमा समझ गयी,राज ही होगा। अपने हाथों से ब्रश को एक जगह रखकर हाथ पोंछे।उसका मन खिल उठा।राज को बहुत कुछ...
2 छोटी-छोटी लघुकथा, महेश राजा, महासमुंद-छत्तीसगढ़ 4 years ago ■चोर पुलिस पुलिस वाले के यहाँ चोरी हो गयी।उस मुहल्ले में यह बात आग की तरह फैल गयी कि आरक्षक के यहां से लोग नगदी...