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रचना आसपास : दीप्ति श्रीवास्तव
अनकही ख़्वाहिश
– दीप्ति श्रीवास्तव
[ भिलाई, जिला – दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]
ख्वाहिशों का क्या वह तो सोते जागते मूलधन के साथ ब्याज लिए बढ़ती है । एक पूरी होती है तो दूसरी मुंह बांधे छुपकर कतार में खड़ी हो अपने को प्रकट करने का इंतजार करती हैं । वैसे ही जैसे नई नवेली दुल्हन पिया से मिलने उत्सुकता से एकांत की प्रतीक्षा करती है । ख्वाहिशें तो अनंत होती कब कौन-सी गुपचुप तरीके से मस्तिष्क को घेर बाहर खुले मुंह से उसांस भर निकल अपने को परिपूर्णता की ओर बढ़े ।
हमारी भी एक अदद ख्वाहिश मन में हिलोरे मारने लगी । पढ़ने में तो हमेशा पीछे से अव्वल रहे ऐसे में सरकारी नौकरी का सवाल ही नहीं उठता वैसे आजकल तो चतुर्थ श्रेणी के लिए भी पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री वाले कतार में खड़े होते हैं कतार इतनी लम्बी होती है कि आप की नजर नहीं दौड़ पायेगी उसे देख कर लगता है भैया अच्छा ही हुआ हम कक्षा में पाठ रटने रटाने के चक्कर से बरी रहे सजा जरूरी मिलती पर इस लाइन में धक्के खाने से बच गये और तो और हमको किसी विद्यार्थी ने कोई समस्या बताई नहीं कि उसके समाधान के लिए हम लाठी डंडा लैस हो निकल पड़ते और काम नहीं बना तो हड़ताल करने चार आदमी प्रस्तुत कर देते । जब लोग डर से सलाम ठोकते हमको लगता हमारी इज्जत कर रहे हैं। अरे आज के जमाने में कौन किसकी इज्जत करता है । इज्जत का फालूदा तो सोशल मीडिया के कमेंट्स यूं ही निकाल देते हैं तब औकात का दाम बाजार भाव तो क्या कूड़े का हो जाता है और स्वयं पर से भरोसा उठ जाता है। इन कमेंट्स से पहले बहुत प्रभावित होते थे भैया । हमारे गुरु नेताजी ने समझाया परेशान मत हो यह तो तुम्हारे फालोवर है इसलिए ऐसी ठेठ देशी भाषा लिखते हैं तुम्हारा कैरियर उज्जवल है । आगे जाकर सितारा बुलंदी का आसमान छुएगा और तुम्हारे ये पढ़ाकू दोस्त या सहपाठी बाद में कोई ट्रांसफर करवाने तो कोई मनचाही जगह पोस्टिंग करवाने अपनी बारी का इंतजार करेंगे अभी पास होने इनकी सहायता से नकल कर परीक्षा का पर्चा लिखते हो बाद में ये अपने पर्चे पर तुम्हारी दस्तखत चाहेंगे । पुराने फोटो मीडिया वालों को बेचकर पैसा बनायेंगे । हम सहपाठी थे फलां फलां कक्षा में हमारी बड़ी प्रगाढ़ दोस्ती थी । तुम्हारी दोस्ती के कशीदे पढ़ेंगे।
अब इस तरह की अनकही अव्यक्त अनेकों ख्वाहिश जन्म लेती है कुछ जिंदा रह जाती है तो कुछ जन्मते ही मर जाती है यानि टूट जाती है यथार्थ के धरातल से टकरा कर परिवर्तित होने के स्थान पर टकराकर चकनाचूर हो जाती है।
ख्वाहिशें पूरी करने मेहनतकश बनाना होता जमाना रिजल्ट देखता पीछे की मेहनत कोई नहीं जानता । तन-मन-धन से भिड़ने पर ही आपके ख्वाहिश की चादर पर फूल खिलते हैं । उस पर भाग्य साथ दे तभी काम बनता है वर्ना टिकट पाने की होड़ में बहुत से बड़ी-बड़ी सिफारिशों के साथ मैदान में हैं यह तो बाद में पता चलेगा कि मैदान किसने मारा । जिसका सितारा बुलंद होगा वही चमकेगा । अभी उम्मीद का दामन थामे चमचागिरी में भिड़े रहो भैया । जब घूरे के दिन फिर सकते हैं तब क्या पता कब हमारे दिन फिर जाय ?
अनकही ख्वाहिश धरातल पर यथार्थ बन हमारा जीवन संवार जाय और हमें पांच साल के राजा बनने का अवसर हाथ आ जाय । एक बार बने तो सात पुश्तों का इंतजाम हो ही जाता है । सबसे महत्वपूर्ण अनकही ख्वाहिश तो यही है है ऊपर वाले हमारी विनती की अर्जी गुपचुप रखना और मंजूरी देने में देर न करना अन्यथा हमारी पत्ते काटने दस लोग आ जायेंगे । कोई मुंह में राम बगल में छुरी रखेगा तो कोई धमकाने आ जायेगा तो कोई पैसा देकर चुपचाप बैठने कहेगा तो कोई और तरकीब भिड़ायेगा । दुनिया है तो दस तरह के लोग हैं । अपने अपनों से ईष्या द्वेष रखते हैं । आशाओं के दीप कभी टिमटिमाते नहीं , ख्वाहिशें पर लगा हौसला बुलंद करती,
जिंदगी यूं ही चलती रहती , सुख-दुख वह चिड़िया जो फुर्र फुर्र उड़ती और अनकही ख्वाहिश पूरी होने की उम्मीद पर भैया दुनिया कायम।
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