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प्रकाश पर्व देव दीपावली पर विशेष : स्नान दान पुण्य के महत्व का दिन कार्तिक पूर्णिमा – डॉ. नीलकंठ देवांगन
छत्तीसगढ़ के रहवासी स्नान, दान पुण्य को अधिक महत्व देते हैं। वे सरल स्वभाव वाले होते और सच्चे मन से धर्म कर्म करते हैं। कार्तिक महीना पुण्य कमाने का महीन होता है। हिंदू पंचांग में यह आठवां चंद्र महीना है और इसे सभी महीनों में सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने कार्तिक स्नान का बड़ा महत्व है, बड़ा लाभ है। इस महीने चंद्रमा की सीधी किरणें धरती पर पड़ती हैं। इससे भरपूर ऊर्जा मिलती है। सुबह जल में स्नान करने से कया निरोगी बनती है, शरीर स्वस्थ रहता है, चेहरे में चमक आती है और तंदुरुस्ती बढ़ती है। लोक जीवन में खुशहाली आती है। सूर्योदय से पहले कार्तिक स्नान और दीपदान की बड़ी अच्छी और अनोखी परंपरा है। कातिक पुन्नी के दिन तो प्रातः स्नान के बाद जलाशयों में या नदियों में जलते दीपक को पत्ते पर रख प्रवाहित किए जाने, ढीले जाने का अनोखा रस्म है। सैकड़ों, हजारों प्रवाहित जगमग दीपक अंजोर से विलक्षण विहंगम दृश्य दृष्टिगोचर होता है। ऐसा लगता है मानो झिलमिल सितारे जल में अठखेलियां कर रहे हैं। दीपदान की यह अनूठी प्रथा तन मन में प्रकाश भर देता है। लोग गंगा मां का आशीष पा ताजगी महसूस करते हैं, खासकर महिलाएं अति प्रसन्न दिखती हैं। तरोताजा हो अच्छे दिन की शुरुआत करने में कोई कमी, कोई कसर नहीं करतीं।
कार्तिक स्नान का महत्व –
कार्तिक पूर्णिमा पर भक्त पवित्र नदियों में डुबकी लगाने, दीप जलाने, भगवान विष्णु, भगवान शिव और चन्द्रमा की पूजा करने जैसे अनुष्ठान करते हैं। हिंदुओं का यह बड़ा महत्व का दिन माना गया है। कई लोग उपवास रखते और दान पुण्य करते हैं। सत्य नारायण के रूप में भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी देवता धरती पर उतरते हैं और लोगों को सुख समृद्धि का आशिर्वाद देते हैं।
देव दीपावली
देवताओं को भय त्रास देने वाले राक्षसराज त्रिपुरासुर का भगवान शंकर ने आज ही के दिन अंत किया था। तब देवताओं ने दीप जलाकर खूब खुशियां मनाई थी। इसे दीप दीपावली या दीप दिवाली कहते हैं।
आज ही के दिन वेदों की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था। । उसका भी यादगार दिन है।
आज प्रकाश पर्व है – गुरु नानक देव का जन्म दिवस। उनके जन्म दिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।
कार्तिकेय की पूजा –
यह कार्तिकेय की पूजा का भी दिन है। कार्तिकेय भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। श्री गणेशजी के बड़े भाई हैं। कार्तिक शक्ति, वीरता, दैवीय सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी पूजा और भक्ति सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं में गहराई से समाहित हैं। भगवान कार्तिकेय का सम्मान करके भक्त साहस, विजय और आध्यात्मिक विकास के लिए उनका आशीष मांगते हैं।
दामोदर मास –
कार्तिक मास को दामोदर मास कहते हैं क्योंकि बाल कृष्ण ने इसी महीने दीवाली के दिन अपनी प्रिय लीला दामोदर लीला की थी। सुबह मां यशोदा दही को मथ रही थीं और कृष्ण की लीलाओं को याद कर रही थीं, तभी बाल कृष्ण उनके सामने प्रकट हो गए थे |
कार्तिक महीने में माता यशोदा ने गोपियों की शिकायत पर कृष्ण के उदर को रस्सी से लपेट ऊखल से बांध दिया था। दाम रस्सी को कहते हैं। उदर का अर्थ पेट होता है। तब कृष्ण का एक नाम दामोदर पड़ा। कार्तिक मास को दामोदर मास कहते हैं।
उमस से राहत, ठंड का अहसास –
हिंदू महीनों के गणना क्रम में कार्तिक महीने की पूर्णिमा का महत्व कई रूपों में देखा गया है। इस महीने धर्म कर्म के संग दान पुण्य का बड़ा महत्व बताया गया है। एक बड़ा बदलाव इस महीने देखा जाता है। उमस भरे गर्मी से राहत मिलती है और ठंड जनाना शुरू हो जाता है। जहां खेत खार में धान की लहलहाती बालियां मन को मोह लेती हैं, वहीं बाग बगीचों में, पेड़ पौधों में फल फूल से लदी महकती डालियां को देखकर मन आनंद से विभोर हो जाता है। कृषक मजदूर से लेकर बड़े समुदाय के लोग मिट्टी में मिट्टी मिल के पसीना से तर होकर कमाए होते हैं, परिश्रम का मीठा फल पाने का उन्हें इंतजार रहता है। खुशहाली संग जगमग अंजोर से अन्न धन का बहार उन्हें दिखने लगता है।
इस महीने कई बड़े पर्व –
वर्षा ऋतु के बाद कार्तिक महीना आता है। इस महीने में लक्ष्मी पूजा, दीवाली, देव उठनी एकादशी, गौरा गौरी पूजा, मातर पूजा, भाई दूज जैसे पर्व से लोगों का मन आनंद से भरा होता है। भगवान विष्णु भी चातुर्मास के विश्राम के बाद जागते और सृष्टि का संचालन संभालते हैं। शुभ कार्य संपादित होने लगते। सभी त्यौहारों में घरों घर रंग बिरंगी रंगोलियों से सजा आंगन द्वार त्यौहारों में मजा में चार चांद लगा देते हैं। बच्चे भी उत्साहित नजर आते हों।
मेले मड़ई की शुरुआत –
मेले मड़ई की शुरुआत इस महीने हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा छत्तीसगढ़ के गांव गांव में त्यौहार जैसे मनाए जाते हैं। नदी किनारों के गांवों में एवं अन्य धार्मिक महत्व के स्थलों पर इस दिन मेला भरता है। दूर दूर से लोग आते और मेला का आनंद लेते हैं। रात्रि में सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजन होते हैं। शहर नगर वाले भी इस दिन पवित्र नदियों में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं, दान पुण्य करते हैं और अपने को धन्य मानते हैं। इस दिन जगह जगह मेला लगता है। लोग मेला मड़ई का लुत्फ उठाते हैं। इसी के साथ फाल्गुन महीने के अंत तक मेला मड़ई का दौर चलता रहता है।
कार्तिक पुन्नी पूजा घर पर –
कातिक पुन्नी पूजा घर पर भी कर सकते हैं। शुभता, शुचिता और समृद्धि के लिए भगवान गणेश, भगवान शिव, भगवान विष्णु या कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र घर पर स्थापित करें। तेल या घी का दीपक जलाएं। मूर्ति पर जल चढ़ाएं, हल्दी, चंदन, कुमकुम, अक्षत, मौली, जनेऊ, गंध, पुष्प, दुर्वा, दीप, धूप और नैवेद्य अर्पित करें। चन्द्रमा की भी पूजा करें। फिर आरती करें। परिवार के सभी लोग शुद्ध मन से पूजा और आरती में शामिल होवें, सहभागिता निभाएं।
• संपर्क: 8435552828
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