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- ‘मनु प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित साझा कविता संग्रह ‘परिन्दे अब उड़ेंगे’ में बांग्ला-हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि पं. वासुदेव भट्टाचार्य की कविता ‘दुश्मन आगे भी पीछे भी’ और ‘माँ को बेटी की तसल्ली’ प्रकाशित हुई है : साझा संग्रह के संपादक हैं अशोक सिंहासने ‘असीम’
‘मनु प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित साझा कविता संग्रह ‘परिन्दे अब उड़ेंगे’ में बांग्ला-हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि पं. वासुदेव भट्टाचार्य की कविता ‘दुश्मन आगे भी पीछे भी’ और ‘माँ को बेटी की तसल्ली’ प्रकाशित हुई है : साझा संग्रह के संपादक हैं अशोक सिंहासने ‘असीम’
बालाघाट मध्यप्रदेश की साहित्यिक संस्था ‘मनु प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित साझा संग्रह ‘परिंदे अब उड़ेंगे’ में देश के 96 रचनाकारों की कविता प्रकाशित हुई है. इस संग्रह में छत्तीसगढ़ भिलाई के उर्जावान कवि वासुदेव भट्टाचार्य की भी पृष्ठ-94 में 2 कविता ‘दुश्मन आगे भी पीछे भी’ और ‘माँ को बेटी की तसल्ली’ प्रकाशित हुई है.
‘परिंदे अब उड़ेंगे’ साझा कविता संग्रह का संपादन अशोक सिहांसने और संपादन सहयोग राकेश सिहांसने एवं कु. रानी नगपूरे ‘ आरजू’ ने किया है.
पं. वासुदेव भट्टाचार्य ‘भारत सेवा श्रम संघ’ द्वारा संचालित ‘हिंदू मिलन मंदिर’ के पुरोहित हैं और इनकी शिक्षा शास्त्रीय डिग्री में बीए है. बांग्ला व हिंदी दोनों भाषाओं में आप कविता सृजन करते हैं.
‘परिंदे अब उड़ेंगे’ में प्रकाशित वासुदेव भट्टाचार्य की दोनों कविता का मूल पाठ-
• कवि वासुदेव भट्टाचार्य
• दुश्मन आगे भी पीछे भी
आजकल/दुश्मन तो आगे भी है पीछे भी/दुश्मन पड़ोस में भी, घरों में भी/दुश्मन समाज में भी, देश में भी/दुश्मन राजनीति में भी/दुश्मन धर्म क्षेत्रों में भी/दुश्मन मित्रों में भी/दुश्मन गुरुजनों में भी/मरना तो है सबको एक दिन/इसलिए मत डरो दुश्मनों से/तुम मित्र बनाना जारी रखो/पर सावधान! क्योंकि दुश्मन हर जगह पर है/आगे भी पीछे भी.
• माँ को बेटी की तसल्ली
मैं काली हूँ, कौन मुझसे शादी करेगा/इतना फिक्र है तो मुझे बचपन ही में/क्यों नहीं मार डाली माँ? अगर मैं अभी खुदकुशी कर लूँ/तू तो दहाड़े मार मार कर रोयेगी! फिर तेरा देखभाल कौन करेगा?
आसपास तो रिश्तेदार भी तो कोई नहीं है/भाई है वो भी तो तुझे पूछता भी नहीं है/जेठ और देवर तो तेरा मुंह भी देखना नहीं चाहते हैं/इससे अच्छा एक बात कहती हूँ माँ! मैं काली हूँ, मेरी शादी का फ़िक्र क्यों कर रही है?
ट्यूशन पढ़ाकर गुजारा कर लूंगी तेरी भी सेवा करूँगी/किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा/आँख दिखाने वालों को आँखें निकाल लूंगी/हाथ बढ़ाने वालों का हाथ तोड़ दूंगी, सब याद रखेंगे.
आजा हम दोनों मिलकर खाना पकाते हैं/और मजे ले लेकर खाते हैं, दामाद दामाद मत कर! जो आना होगा वो ठीक ही आयेगा/सात पांच मत सोच माँ! मैं तो तेरी अच्छी लड़की हूँ माँ/कोई अच्छा सा लड़का एक दिन/जरूर मुझे ब्याह कर ले जायेगा/समाज कितना भी बुरा क्यों न हो/अच्छे का कद्र हमेशा होता है/ज्यादा फिक्र मत कर, ओ मेरी अच्छी माँ!
• कवि संपर्क-
• 92299 91290
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