■कविता आसपास : ■गोविंद पाल.
3 years ago
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●दिल
-गोविंद पाल
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
दिल आज बहुत ही चिंतित है
धमनी और शिराओं ने
बगावत जो कर दी है,
दिल अब चाहकर भी
अशुद्ध रक्तों को
शुद्ध नहीं कर पा रहा है,
दिल की मजबूरियां तो देखिये
चुपचाप निष्कृय होते देख रहा है
अपने ही देह के अंग प्रत्यंगो को,
उसने कभी सोचा ही नहीं था कि
उसके अपने ही शिरायें, उप-शिरायें
धमनियां और कोशिकाएं
विश्वासघाती निकलेंगे,।
किस पर करे भरोसा
सारे तंत्रिका तंत्र भी तो
भ्रष्ट हो चुके हैं,
दिल ने कभी कल्पना तक नहीं की थी
कि वुद्धिजीवी मस्तिष्क भी
इतने अहंकारी और कायर निकलेंगे,
दिल की अब विवशता ये है कि
तट पर खड़े होकर
तमाशबीनों की तरह
अपने ही देह को धीरे धीरे
मौत की ओर अग्रसर होते देख रहे हैं।
【 तंत्रिका तंत्र-सूचना प्रसारण या मीडिया. दिल-भारत माँ या देश अथवा कोई देश का ईमानदार मुखिया. 】
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