■रचना आसपास : ■डॉ. शिल्पी समद्दार ‘सदाबहार’.
♀ मुहब्बत
♀ डॉ. शिल्पी समद्दार ‘सदाबहार’.
दिखे थे ख्वाब जो फलक वही नज़र से गिरा दिया।
हमें तो तूफां मिटा ना पाया वो आँधियों से डरा गया।
मुहब्बतों का यही सिला है कि जिसको चाहा वो दगा दे दिया ।
भुला के मेरी तमाम चाहत वो दिल से नफरत निभा गया।
अजीज था मेरा प्यार सदा बहारो को याद किया।
बाकी सब मोह माया है
नस देखी बीमार पता चल गया।
रोग था प्यार का दर्द ज़ख़्म का लिख दिया।
ऋणी रहूंगी में सदा उस वैध का,
जिसने दवा मे दोस्ती का जिन्दाबाद लिख दिया..!!
ऐ मुहब्बत आ जा आज सब कुछ भुला कर आ गले लगजा
मुबारक हो तुझको यह ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 🙏🏻💐🙏🏻
[ ●डॉ. शिल्पी समद्दार ‘सदाबहार’ ‘अंतरराष्ट्रीय बंगाली समाज़’ की फाउंडर हैं. ●समाज़ को एकजुट करने में निरन्तर प्रयासरत है. ●डॉ. शिल्पी समाजसेविका के साथ; साथ रचनात्मक लेखन में भी सक्रिय हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ की शुभचिंतक डॉ. शिल्पी की ये दूसरी रचना प्रकाशित हो रही है, कैसी लगी, लिखें.
-संपादक ]
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