कविता, प्रियतम- भूषण चिपड़े
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प्रियतम
प्रियतम प्रियतम कहते कहते,
प्रेमी मन मुस्काता है
देख तुम्हारी सूरत को फिर,
खाली मन भर जाता है
सागर जैसी गहरी गहरी,
आखों में क्या रखते हो
नदियों जैसी मीठी मीठी,
मीठी बातें करते हो
अधिर कलपना से हो कर जब,
मन ये और मचलता है
खाली खाली दिवारों पर,
चित्र तुम्हारा दिखता है ।
सूर्य देव की आभा से तुम,
खिलते और निखरते हो
और चान्दनी जैसा फिर तुम,
शीतल मन भी रखते हो
रात अमावस की होती है,
चंदा भी छुप जाता है
रूप तुम्हारा बन कर दीपक
मन रौशन कर जाता है
श्यामल श्यामल कुन्तल जैसे,
श्यामल रंग को गढते
अधरों पर मुस्कान समर में,
मधुर प्रणय से लगते हैं
और प्रणय की इच्छा से जब
मन व्याकुल हो जाता है
रूप तुम्हारा तनहाई में,
परछाई बन जाता है
प्रियतम प्रियतम कहते कहते
प्रेमी मन मुस्काता है
देख तुम्हारी सूरत को फिर
खाली मन भर जाता है
chhattisgarhaaspaas
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