रचना आसपास : डॉ. दीनदयाल दिल्लीवार : अनुवाद – दुर्गाप्रसाद पारकर
1 year ago
224
0
▪️
कविता मोला जनम देवत हे
बिक्कट दिन पहिली ले
एक ठन कविता
मोर मन म जनम लेवत हे ,
अभिव्यक्ति के अभाव म
अंतस म ही तड़फत हे |
अजगर कस अपन मुंह ले
मोर मन के सुखाए
डारा मन ल टोरत हे |
आह ! जेचकी के पीरा
तन – मन ल ब्याकुल कर दे हे
जइसे मँय कविता ल नही
कविता मोला जनम देवत हे …..
•संपर्क –
•79995 16642
🟪🟪🟪