विशेष : 11 अगस्त को खुदीराम बोस के बलिदान दिवस पर विशेष – जयदेव गुप्ता ‘ मनोज ‘
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वयं को झोंक देने वाले युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस
– जयदेव गुप्ता ‘ मनोज ‘
[ धनबाद झारखंड ]
खुदीराम बोस! भारत के सबसे युवा क्रांतिकारी के रूप में पहचाने जाने वाला वीर। हिंदुस्तान पर अत्याचार करके सत्ता स्थापित करने वाले ब्रिटिश साम्राज्य पर जिन्होंने अत्यंत धैर्य से पहला बम फेंका, पाठशाला जीवन में ही वंदे मातरम, पवित्र मंत्र से प्रेरित होकर जिन्होंने भारत भूमि के स्वतंत्रता संग्राम में स्वयं को झोंक दिया उस खुदीराम बोस का 11 अगस्त के दिन बलिदान दिन मनाया जाता है । 11 अगस्त 1908 को उम्र के केवल 18 वें वर्ष में हाथ में भगवत गीता लेकर खुदीराम बोस ने फांसी के फंदे का आलिंगन किया।
खुदीराम बोस द्वारा सशस्त्र क्रांति का मार्ग स्वीकार करना – 1903 का काल था । बंगाल प्रांत का विभाजन करने का निश्चय ब्रिटिश सरकार ने किया। इससे सर्व सामान्य जनता में क्रोध की तीव्र लहर दौड गई। खुदीराम को भी बंगाल के विभाजन का निर्णय अन्यायपूर्ण लगा। देश के लिए कुछ करना चाहिए ऐसा सतत लगने लगा, तब मेदिनीपुर में थोड़ी बहुत शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने सशस्त्र क्रांति का मार्ग चुना । सरकार के विरुद्ध आंदोलन करने वालों को पकड़कर कठोर सजा दी जाने लगी।
राजद्रोह के आरोप से निर्दोष छूटना – फरवरी 1906 में मिदनापुर में एक औद्योगिक एवं कृषि प्रदर्शनी लगी थी। इस प्रदर्शनी को देखने के लिए आस पास के गांव से सैकड़ों लोग आये थे । बंगाल के एक क्रांतिकारी सत्येंद्र नाथ द्वारा लिखित सोनार बांग्ला इस पत्रक की प्रतियां खुदीराम ने इस प्रदर्शनी में बांटीं। पुलिसकर्मी उन्हें पकड़ने के लिए दौड़े । खुदीराम ने सिपाही के मुंह पर घूंसे मारे एवं बचे हुए पत्रक उठाकर वे पुलिस से बच निकले । इस प्रकरण में राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर मुकदमा चलाया परंतु खुदीराम उसमें से निर्दोष छूट गए।
न्यायाधीश किंग्सफोर्ड को जान से मारने की योजना की जिम्मेदारी मिलना – मिदनापुर की युगांतर नामक क्रांतिकारियों की गुप्त संस्था के माध्यम से खुदीराम क्रांति के कार्यों में शामिल हो गए। वर्ष 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया। इस विभाजन का विरोध करने वाले अनेक लोगों को कोलकाता के तत्कालीन मजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने कठोर सजा सुनाई थी ।अन्य प्रकरणों में भी उसने क्रांतिकारियों को बहुत कष्ट दिए थे । इसी समय किंग्जफोर्ड मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायाधीश बने। युगांतर समिति की एक गुप्त बैठक में किंग्जफोर्ड को ही जान से मारने का निश्चय किया गया। इसके लिए खुदीराम एवं प्रफुल्ल कुमार चाकी का चुनाव किया गया। खुदीराम को एक बम एवं पिस्तौल दी गई । प्रफुल्ल कुमार को भी एक पिस्तौल दी गई ।मुजफ्फरपुर आने पर दोनों ने किंग्जफोर्ड के बंगले की रेकी की। उनकी बग्गी एवं उसके घोड़ों का रंग देख लिया। खुदीराम तो उनके कार्यालय जाकर उन्हें ठीक से देख कर भी आए । 30 अप्रैल 1908 के दिन ये दोनों नियोजित कार्य के लिए बाहर निकले एवं किंग्जफोर्ड के बंगले के बाहर घोड़ा गाड़ी से उनके आने की राह देखने लगे। बंगले पर चौकीदारी के लिए नियुक्त दो चौकीदारों ने उन्हें टोका भी परंतु उन्हें संतोषजनक उत्तर देकर वे वहीं रुके रहे।
हिंदुस्तान में पहला बम फेंकने का मान प्राप्त होना – रात में 8:30 बजे क्लब की ओर से किंग्जफोर्ड की गाड़ी के समान गाड़ी आती दिखते ही खुदीराम गाड़ी के पीछे दौड़ने लगे । रास्ते में बहुत अंधेरा था । गाड़ी किंग्जफोर्ड बंगले के सामने आते ही उन्होंने दोनों हाथों से बम ऊपर उठाया और निशाना साध कर अंधेरे में ही सामने की घोड़ा गाड़ी पर जोर से फेंका। हिंदुस्तान के पहले बम विस्फोट की आवाज उस रात को 3 मील तक सुनाई दी एवं कुछ ही दिनों में उसकी आवाज इंग्लैंड, यूरोप में भी सुनाई दी । खुदीराम ने किंग्जफोर्ड की गाड़ी समझकर बम फेंका था। परंतु उस दिन थोड़ी देर से क्लब से निकलने के कारण किंग्जफोर्ड बच गया । संयोग से गाड़ियों की समानता के कारण दो यूरोपीय महिलाओं को अपने प्राण गंवाने पड़े । खुदीराम एवं प्रफुल्ल कुमार दोनों 24 मील दूर वैनी रेलवे स्टेशन तक नंगे पांव दौड़ते गए ।
धैर्य एवं आनंद पूर्वक फांसी चढना – दूसरे दिन संदेह के आधार पर प्रफुल्ल कुमार चाकी को पुलिस पकड़ने गई, तब उन्होंने स्वयं को गोली मारकर अपने प्राणार्पण किए । खुदीराम को पुलिस ने पकड़ कर कैद किया । इस कैद का अंत निश्चित ही था। 11 अगस्त 1908 के दिन भगवत गीता हाथ में लेकर खुदीराम धैर्य एवं आनंद पूर्वक फांसी चढ़ गए। किंग्जफोर्ड ने डर कर नौकरी छोड़ दी एवं जिन क्रांतिकारियों को उसने कष्ट दिए थे उनके डर से शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई। उसका नामोनिशान भी नहीं बचा किन्तु खुदीराम मरकर भी अमर हो गएl
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