कविता, गम के सारे में दुनिया
मैंने दुनिया को बदलते देखा है
मैंने समय को बदलते देखा है
●प्रकाश चंद्र मण्डल
लोगों को चीखते चिल्लाते देखा है
अपने को अपनों से बिछुड़ते देखा है
मैंने दुनिया को बदलते देखा है
मैंने समय को बदलते देखा है।
पूराणों में लिखा है
उम्र युगों का, 5000 वर्ष भैया
कई पुरखें गुजर जाती है इसमें,
पर मैंने, इसे गुजरते देखा है
मैंने समय को बदलते देखा है,
कल जो मुंह छिपाकर घुम रहे थे
आज मजबूरन मुंह छिपाना पड़ रहा है
कोरोना ने ऐसा कहर ढाया है
कोई किसी को पहचान नही पा रहा है
हमने दुनिया को बदलते देखा है
मैंने समय को बदलते देखा है।
क्या समय है लोग अपनों से
न मिल पा रहा है
न हाथ मिला सकता है
न गले मिल सकता है
कोरोना ने रिश्तेदारों से
दूरी बना दिया है-
क्या जमाना आ गया है लोग
सीधे मुंह बात नहीं कर रहे हैं
एक दूसरे से नज़र फिरा रहा है
छुआछूत जैसे बर्ताव कर रहा है
ऐसा दुर्दिन भयंकर कोरोना लाया है
हमने दुनिया को बदलते देखा है
मैंने समय को बदलते देखा है।
यह कैसी बिमारी है जो
दिखता नहीं ,होता है
लोगों को अन्दर से खा जाता है
यह ला-इलाज लगता है
न इसका उपचार है न दवा है
दुनिया इसके लिए जद्दोजहद कर रहे हैं
मैंने समय को बदलते देखा है।
यह न लड़ाई है न युद्ध है
लोग बेमतलब जान गंवा रहा है
सारा विश्व त्रस्त हैं
वेक्सिन की होड़ मची है
पर सामने नहीं आ रहा है,
लगता है यह समय का परिवर्तन है
मैंने समय को बदलते देखा है।
भयावह कोरोना आया है
अपने को अपनों से दूर किया है
मां अपने बेटे को
देखने के लिए तरस रही है,
बेटा अपने मां से दूर हो रहा है
बहन भाई से बिछड़ रही है
और भाई बहन से,
यह सब कोरोना ने बदल दिया है
हमने दुनिया को बदलते देखा है
मैंने समय को बदलते देखा है।
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