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हिंद की युक्तिका

4 years ago
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●नया वर्ष हूँ
●डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’

स्वागत सत्कार करो मेरा नया वर्ष हूँ
मैं ही आशा- निराशा, पीड़ा हूँ, हर्ष हूँ

बीत चुके हैं हज़ारों युग मेरे सामने
धारणा हूँ , धर्म – कर्म हूँ मैं निष्कर्ष हूँ

खोने न देना मुझे रखना तुम सँभालकर
कड़ुआ अनुभव हूँ मैं प्रेम का उत्कर्ष हूँ

सदियों से मेरे कई रूप कई रंग हैं
हूँ मैं कुबेर कहीं और कहीं संघर्ष हूँ

बनता बिगड़ता रहा मैं सभी के वास्ते
कहीं पे मैं अर्श रहा और कहीं फर्श हूँ

सालों से हाँक रहा हूँ समय को रात दिन
हूँ मैं उपहार किसी के लिए आदर्श हूँ

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