ग़ज़ल
●एक ग़ज़ल दिल से
-लतीफ़ खान ‘लतीफ़’
मैं रहा ग़मों से यूँ आशना, कि कभी ख़ुशी से न निभ सकी !!
यूँ ही सारी उम्र गुज़र गई, मेरी ज़िन्दगी से न निभ सकी !!
न तो मेरा कोई हबीब है, न तो कोई मेरा रक़ीब है ,,
मुझे किसने दी है ये बद्दुआ, कि कभी किसी से न निभ सकी !!
मैं ने मरना चाहा कई दफ़ा, जो ज़हर पिया बे-असर रहा ,,
ये किया-धरा है नसीब का, मेरी ख़ुदकुशी से न निभ सकी !!
मैं अड़ा था बस इसी बात पर, कि झुकाऊँ सर दरे – यार पर ,,
वो जो बन सका न मेरा ख़ुदा, मेरी बन्दगी से न निभ सकी !!
कहाँ खो गईं वो मुहब्बतें, वो ख़ुलूस-ओ-प्यार की दौलतें ,,
ये अजीब शहर है दोस्तों, यहाँ दोस्ती से न निभ सकी !!
न हों बे-चिराग़ ये महफ़िलें, हम उजालों में ही सदा मिलें ,,
इसी एक ज़िद की बिना पे ही, मेरी तीरगी से न निभ सकी !!
करूँ आह भी मैं ‘लतीफ़’ तर, मेरे ग़म की हो न उन्हें ख़बर ,,
मैं मरीज़-ए-इश्क़ हूँ इसलिए, कभी बेकली से न निभ सकी !!
आशना = आसक्त , परिचित ,,,, हबीब = मित्र , दोस्त ,,,,
रक़ीब = शत्रु , दुश्मन ,,,, ख़ुदकुशी = आत्महत्या ,,,, दरे – यार = प्रेमी की चौखट ,,,, बे-चिराग़ = प्रकाशहीन ,,,, तीरगी = अंधकार ,,,, लतीफ़ तर = आनन्द दायक , मज़ेदार ,,,, मरीज़ – ए – इश्क़ = प्रेम रोगी
[ ●हिंदी,उर्दू एवं छत्तीसगढ़ी में गीत, ग़ज़ल, नज़्म,दोहा,आदि विधाओं में निरंतर रचनात्मक लेखन. ●दल्लीराजहरा, जिला-बालोद निवासी लतीफ़ खान ‘लतीफ़’,उर्दू एकेडमी छत्तीसगढ़ शासन एवं छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा सम्मानित हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ वेबसाइट वेब पोर्टल के लिए उनकी पहली रचना हमारे पाठकों के लिए प्रकाशित कर रहे हैं, अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करायें. -संपादक ]
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