■लघु कथा : दीप्ति श्रीवास्तव.
3 years ago
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♀ बदलाव
♀ दीप्ति श्रीवास्तव
बदलाव
“अम्मा……”
“कहां है ”
“कब से ढूंढ रही हूं और यहां गोबर के उपले थोप रही है ”
“आ तू भी हाथ बंटाने ”
“मैं न करूंगी ये सब ”
बिटिया लड़की जात है करना तो पड़ेगा
“मैं न करूंगी”
समय पंख लगा उड़ गया
बिटिया भी मां बन गई
जंगल पहाड़ों से घिरे उनके गांव में उनकी जाति वालों की सोच में आज भी ज्यादा अंतर न आया ।
पर वह अब उपला , लकड़ी से नहीं बिना धुंए के गैस चूल्हे पर खाना बनाती है । उसकी बिटिया पाठशाला जाती है उसको दस्तखत करना सीखा दी है । यही बदलाव की बयार उसके जीवन में खुशियों की कलियां बन फूलों में बदल रही है।
■लेखिका संपर्क-
■94062 41497
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