■अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष :गणेश गंधर्व.
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♀ नारी
♀ गणेश गंधर्व
समझौता और सामंजस्य का दूसरा नाम है नारी
रण में चंडी होती विवशता में हो जाती है बेचारी
औलाद को जनने के खातिर पीड़ा उठाती है भारी
सहनशीलता का सदा से प्रतीक कहलाती है नारी
परिवार के सुखों के खातिर पीड़ा सहती है सारी
बांझ, कुलटा जैसे कई लांछन सहती है बेचारी
छोटे बड़े कामों की बखूबी निभाती है जिम्मेदारी
घर परिवार की लाज रखना उसकी है जिम्मेदारी
तीज त्योहार में सारे दिन खटती रहती है बेचारी
खुशी खुशी मेहमानो की करती वह है खातिरदारी
नारी रूप योगिनी,साध्वी, नन और है ब्रह्मकुमारी
स्वाभिमान को गिरवी रख जिंदगी काटती है सारी
सब कुछ कर कुर्बान समाज के उपेक्षा की है मारी
वर्ष में एक दिन गुणगान कर सब बनते है आभारी
■कवि संपर्क-
■96177 01232
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