■विश्व कविता दिवस पर विशेष : गीता विश्वकर्मा ‘नेह’ [कोरबा छत्तीसगढ़].
3 years ago
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♀ कुंडलियाँ
1. हे कविता रानी सखी, उर की हो आल्हाद।
चित्त कल्पना शब्द में,लिखती मन का नाद ।।
लिखती मन का नाद,लेखनी हर विचार को ।
करुणा पीड़ा हर्ष, भावना गंग धार को ।।
कहती गीता नेह,दिव्य हो मानस सविता ।
बहती हो स्वच्छंद, कभी छंदो में कविता ।।
2. ढल जाती हर रूप में, नव रस में निर्बंध ।
जीवन के सौ रंग में, घोले अद्भुत गंध ।।
घोले अद्भुत गंध,महक उठती हो कविता ।
नूतन तन श्रृंगार,नवोढ़ा लगती वनिता ।।
कहती गीता नेह, प्रेरणा देती हर पल ।
जीवन के संगीत,सुरों में जाती हो ढल ।।
3. कविता तेरी लेखनी,का है अनुपम धाक ।
दुनिया की हर बात को,कहती हो बेबाक।।
कहती हो बेबाक, बात से घायल करती ।
सत्य सदा निर्पेक्ष बोलते कभी न डरती ।।
कहती गीता नेह, नहीं होती हो द्रविता ।
रख देती झिंझोड़,सभी दोषों पर कविता ।।
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