■ग़ज़ल : डॉ. बलदाऊ राम साहू.
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गिर-गिर कर तू उठता जा
आगे-आगे बढ़ता जा
-बलदाऊ राम साहू
गिर-गिर कर तू उठता जा,
आगे – आगे बढ़ता जा।
असफलता जीवन कुंजी,
कोशिश बस तू करता जा।
जीवन एक पहेली है,
हल कर और बूझता जा।
रोक न पाएगा कोई ,
बाधाओं से लड़ता जा।
बदली – बदली दुनिया है,
राही बन कर चलता जा।
परिवर्तन गर लाना है
भावों को तू गढ़ता जा।
पीर प्रबल हो यदि मन में
आँसू जैसे झरता जा।
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