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०बाल ग़ज़ल : डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘ नवरंग ‘
2 years ago
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०मन हे ओकर भींजे के
मिश्का धूम मचावत हे
हाँसत हे , बिजरावत हे
मन हे ओकर भींजे के
पानी मा इतरावत हे
गेंगरुआ ला देखेबर
घेरी बेरी जावत हे
दाई के लुगरा धरके
घर मा खूब लजावत हे
मनवाएबर बात अपन
मामी संग गोठियावत हे
०कवि सम्पर्क-
०7974850694
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