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सीजी ब्रेकिंग- छत्तीसगढ़ में किराएदार और मकान मालिकों को लेकर नया नियम हुआ लागू, पढ़े पूरी खबर
छत्तीसगढ़ प्रदेश में किराएदार और मकान मालिकों को लेकर नए नियम लागू हो गए हैं। छोटे शहरों और गांवों के मकान मालिक और किराएदारों के विवाद निपटाने के लिए अब लोगों को नगर निगम तक नहीं जाना होगा। वे नगर पालिका या नगर पंचायतों में जाकर विवाद निपटा सकेंगे। इससे उनकी समस्या जल्द सुलझ जाएगी।
अब डिप्टी कलेक्टर भी भाड़ा नियंत्रक अधिकारी होंगे और पीठासीन अधिकारी के रूप में विवादों का निपटारा करेंगे। मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में मकान मालिकों ने मकान किराए पर दे रखे हैं जिनकी संख्या करीब 10 लाख है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और आवास एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर की सहमति के बाद अधिसूचना भी लागू कर दी गई है। राज्य शासन द्वारा लिए गए इस महत्वपूर्ण निर्णय से भू-स्वामी और किरायेदार को अब बड़ी राहत मिलेगी। वे अपने-अपने हक को सुरक्षित रख सकेंगे।
नए छत्तीसगढ़ भाड़ा नियंत्रण अधिनियम के अनुसार अब नगर पालिका परिषद एवं नगर पंचायतें जिस भी जिले के अंतर्गत होंगी, उस जिले के डिप्टी कलेक्टर जो निम्न श्रेणी का नहीं होगा, भाड़ा नियंत्रक बनाया जा सकेगा। उनका कार्यक्षेत्र कलेक्टर तय करेंगे। यह अधिनियम राज्य शासन ने बनाया है।
अधिकतर मकान मालिक और किराएदारों के बीच विवाद के मुख्य कारण-
मकान मालिक द्वारा करार का उल्लंघन
किराएदार द्वारा करार का उल्लंघन
किराएदार द्वारा मकान खाली नहीं करना
मकान मालिक द्वारा बिजली काट देने की शिकायत पर
मकान मालिक द्वारा बिजली का एक्टेंशन नहीं देने पर
मकान मालिक द्वारा पानी की सप्लाई रोक देने पर
किराएदार के किराया नहीं देने पर
विवादों का होगा ऐसे निराकरण
निकायों में सुनवाई
ट्रिब्यूनल में सुनवाई
हाईकोर्ट में सुनवाई
ऐसे निपटेंगे मामले
मकान मालिक और किराएदार के बीच करारनामा नहीं है, तो पहले 6 नहीने का नोटिस मकान खाली कराने के लिए दिया जाता है। ऐसे में किराएदार का बेजा कब्जा माना जाता है।
करारनामा है तो भाड़ा नियंत्रक अधिकारी देखते हैं कि दोनों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। रेंट एग्रीमेंट नहीं होने पर किराएदार लंबे समय से कब्जे का दावा करता है, तो फिर मामला सिविल में चला जाता है।
मकान मालिक और किराएदार के विवाद की स्थिति में 3 स्तर पर सुनवाई होती है। इसके बीच और कोई कोर्ट नहीं है।
मकान मालिक और किराएदार के बीच करारनामा नहीं है, तो पहले 6 नहीने का नोटिस मकान खाली कराने के लिए दिया जाता है। ऐसे में किराएदार का बेजा कब्जा माना जाता है। करारनामा है तो भाड़ा नियंत्रक अधिकारी देखते हैं कि दोनों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है। रेंट एग्रीमेंट नहीं होने पर किराएदार लंबे समय से कब्जे का दावा करता है, तो फिर मामला सिविल में चला जाता है। मकान मालिक और किराएदार के विवाद की स्थिति में 3 स्तर पर सुनवाई होती है। इसके बीच और कोई कोर्ट नहीं है।
[ ‘ छत्तीसगढ़ आसपास ‘ न्यूज़ रूम से संवाददाता ]