▪️ रचना आसपास : दिलशाद सैफी [रायपुर, छत्तीसगढ़]
2 years ago
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▪️ आदमी और अलमारी
बंद आलमारियों को देखना
और सोचना कभी…,,??
सामने से कितने शांत खड़े
और अपने भीतर…,,
बहुत कुछ दबाये,समेटे,सहेजे
आदमी की तरह…!
हां जब बहुत उम्र दराज हो जाते
थोड़े चिड़चिड़ाते हैं…,,
भीतर से टूट न जाए इसलिए
आवाज़ करते हैं…!
फिर भी सम्हालें हुए है,सभी को
साड़िया,कमीज,टाॅप…,,
बड़मुडे़ं,छोटे,बडे़ टीसर्ट,कुर्तिया
और कोट के साथ टाई…!
ठीक उसी तरह,माता-पिता,पत्नी
भाई-बहन,बेटे-बेटियाँ
और बुढ़ापे में बहु,पोते-पोतियाँ को
एक सूत्र में बांध कर…,,
थोड़ा झुंझलाता,रिश्ते निभाता पिसता
शांत खड़ा अलमारी सा आदमी…,,।
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