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गीत : महेश राठौर ‘ मलय ‘
2 years ago
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▪️ गीत
आँसू हर पल पीता हूँ।
सुधियों के बल जीता हूँ।
चार पहर का जीवन होता,
किसी तरह कट जाता ही।
तारे-तारे, घड़ियाँ गिनकर,
दुख का घट, घट जाता ही।
युग-भर की पर साँसें हैं,
और तुम्हीं से रीता हूँ।
सुधियों के …..
फूल, वाटिका, झील, नदी;
अब तो नहीं लुभाते हैं।
पर्वत,सागर,बादल,बिजली;
सब मिल हमें सताते हैं।
सांध्यकाल के सूरज-सा,
पल-पल मैं भी बीता हूँ।
सुधियों के …..
उल्लासों का उत्पात यहाँ,
और नहीं सह पाऊँगा।
संग किसे लूँ अपने अब तो,
किसे व्यथा समझाऊँगा?
पीड़ा बोली-‘मुझको लो’
मैं तो परम पुनीता हूँ।
सुधियों के …..
एक अकेला मन होता है,
कहो कहाँ से अन्य मिले?
तुम्हीं बताओ कौन जगत में,
करने वाला धन्य मिले?
बार-बार ही इसीलिए,
दरके मन को सीता हूँ।
सुधियों के …..
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