• Chhattisgarh
  • भारी होती परेड, हल्का पड़ता गणतंत्र : राजेंद्र शर्मा

भारी होती परेड, हल्का पड़ता गणतंत्र : राजेंद्र शर्मा

2 years ago
173

भारतीय गणतंत्र अपने तिहत्तर साल पूरे करने के बाद आज वास्तव में किस दशा में है, इसकी तस्वीर पूरी करने के लिए, बस इमरजेंसी की याद दिलाया जाना ही बाकी रहता था। और उसकी भी याद चौहत्तरवें गणतंत्र दिवस की ऐन पूर्व-संध्या में बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी को भारत के लोगों तक पहुंचने से रोकने के लिए, मोदी सरकार द्वारा उठाए गए अन्यायी कदमों ने पूरी कर दी है।

2002 के आरंभ में, गोधरा ट्रेन आगजनी के बाद, जिसमें 59 लोगों की एक बोगी में जलकर मौत हो गई थी, नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व में गुजरात के बड़े हिस्से में, मुस्लिम अल्पसंख्यकों का जिस तरह का सुनियोजित तथा शासन-समर्थित नरसंहार हुआ था, उस पर बीबीसी द्वारा बनाई गई, दो-खंड की डॉक्यूमेेंटरी, ‘इंडिया: दि मोदी क्वेश्चन’ के अब तक प्रसारित पहले ही खंड को, भारतवासियों तक पहुंचने से रोकने के लिए मोदी सरकार ने, एक लोकसभा सदस्य का चर्चित जुमला उधार लें तो, ‘युद्घ स्तर पर कार्रवाई’ की है।

मोदी सरकार ने, सूचना-प्रौद्योगिकी कानूनों का सरासर दुरुपयोग करते हुए, यू-ट्यूब के उक्त डॉक्यूमेंटरी को अपने प्लेटफार्म पर दिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया। उसे यह पाबंदी भी पर्याप्त नहीं लगी तो, भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने उक्त डॉक्यूमेंटरी की विश्वसनीयता पर हमला बोलते हुए, भारत में प्रदर्शन के लिए पहले ही प्रतिबंधित इस डॉक्यूमेंटरी को झूठा, विद्वेषपूर्ण आदि-आदि करार देने से लेकर, भारत-विरोधी तथा बीबीसी के औपनिवेशिक सोच का नतीजा तक करार दे दिया। लेकिन, जब मोदी राज को इससे भी तसल्ली नहीं हुई तो, उसने दूसरे-दूसरे स्रोतों से, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि प्लेटफार्मों पर उक्त डॉक्यूमेंटरी के लिंक साझा करने वाली पोस्टों को, सोशल मीडिया से हटवाने के लिए बाकायदा पूर्णकालिक युद्घ छेड़ दिया। इसने इमरजेंसी का पर्याय माने जाने वाले एक और शब्द, प्रैस-मीडिया की ‘सेंसरशिप’ को, एक बार फिर चलन में ला दिया है। लेकिन, कल्पना के भरोसे कुछ भी बाकी नहीं रहने की दीदा-दिलेरी में विश्वास करने वाली मोदी सरकार, सीधे ‘इमरजेंसी’ शब्द का प्रयोग करने से भी नहीं चूकी। उसने सूचना-प्रौद्योगिकी कानून के अंतर्गत 2021 के नियमों से प्राप्त ‘इमरजेंसी’ शक्तियों का ही इस डॉक्यूमेंटरी के खिलाफ अपने युद्घ में इस्तेमाल किया है।

बेशक, किसी भी सरकार को ऐसी किसी डॉक्यूमेंटरी मेें दिखाए गए तथ्यों से लेकर, उन तथ्यों के आधार पर निकाले गए निष्कर्षों तक, सभी पर असहमति व विरोध जताने का, उन पर सवाल उठाने का, उनका खंडन करने का और अपने हिसाब से सही तथ्य प्रस्तुत करने का अधिकार है। लेकिन, वहीं तक जहां तक यह तथ्य का तथ्य से, तर्क का तर्क से, जवाब दिए जाने का मामला हो। किसी प्रस्तुति या दावे, के जवाब में वैकल्पिक प्रस्तुति या दावा पेश करना तो प्राकृतिक अधिकार की श्रेणी में आता है। लेकिन, किसी डॉक्यूमेंटरी या किसी भी अन्य प्रस्तुति को, गलत या झूठा मानने के आधार पर, उसे कुचलने की, उसे कानूनी या गैर-कानूनी तरीकों से लोगों तक पहुंचने से ही रोकने की कोशिश करना, उस पर पाबंदी लगाना; जनतंत्रविरोधी है, तानाशाही का ही लक्षण है। आखिरकार, इस तरह जनता के जानने के अधिकार और उसके जानकारीपूर्ण विवेक से निर्णय लेने के अधिकार को ही तो छीना जाता है।

गणतंत्र की 74वीं सालगिरह पर, मोदी राज ने इस तरह एक प्रकार से भारत में जनतंत्र की जगह, तानाशाही के और बढ़ाए जाने का ही ऐलान किया है। और यह तानाशाही, भारतीय संविधान के जरिए स्थापित जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए, इंदिरा गांधी की 1975-77 के दौर की तानाशाही से इस अर्थ में कहीं ज्यादा खतरनाक है कि उसे फिर भी एक ‘इमरजेंसी’ के कदम के तौर पर देखा तथा दिखाया जा रहा था, जबकि आज मोदी राज में जनतंत्र के इस तरह सिकोड़े जाने को, सामान्य या न्यू नॉर्मल की तरह दिखाया जा रहा है – यानी मोदी राज में तो यही चलेगा!

इस प्रसंग में चलते-चलाते एक बात और। बेशक, यह डॉक्यूमेंटरी भी 2002 के गुजरात के नरसंहार में गुजरात के तत्कालीन मोदी राज की संलिप्तता को निर्णायक तरीके से साबित नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट का पिछले साल का फैसला भी, कुल-मिलाकर इसी का ऐलान करता है। इसके बावजूद, यह डॉक्यूमेंटरी दो महत्वपूर्ण काम करती है। पहला, यह कि वह सत्ता के सामने आवाज उठाने की हिम्मत के साथ, जिसे कम से कम मोदी राज के पिछले साढ़े आठ साल में तो भारतीय मुख्यधारा के मीडिया में से विलुप्त ही कर दिया गया है (जिसका सूचक प्रेस की स्वतंत्रता के विश्व सूचकांक पर भारत का तेजी से रसातल में जा लगना है) एक बार फिर इस नरसंहार के सिलसिले में उन सवालों को उठाती है, जिन्हें बेशक पिछले बीस सालों में इससे पहले भी अलग-अलग तरीकों से उठाया गया है — यह हिंसा इतनी इकतरफा, इतनी संगठित कैसे थी? हिंसा करने वालों को इतनी खुली छूट कैसे थी? लगातार कई दिनों तक चली इस हिंसा में, शासन-प्रशासन कहां थे? इन सवालों के जवाब की तलाश एक ही ओर इशारा करती है — इस मुस्लिमविरोधी हिंसा को तत्कालीन शासन का सक्रिय समर्थन हासिल था।

दूसरे, यह रिपोर्ट इस सच्चाई को सामने लाती है कि इस हिंसा में गुजराती मूल के तीन ब्रिटिश नागरिकों के मारे जाने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने और यूरोपीय यूनियन ने भी, अपने राजनयिकों के जरिए इस नरसंहार की जांचें कराई थीं। और इन जांचों का दो-टूक नतीजा था कि यह कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं, गुजरात के बड़े हिस्से में, मुस्लिम अल्पसंख्यकों की इथनिक सफाई की कोशिश थी और इसके पीछे सीधे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तत्कालीन गुजरात शासन का हाथ था।

बेशक, ब्रिटिश व यूरोपीय यूनियन के प्रशासन द्वारा अपनी ही इन जांच रिपोर्टों को अब तक दबाकर रखा जाना, जब तक कि बीबीसी ने उनको सारी दुनिया के सामने लाकर नहीं रख दिया, मानवाधिकारों की चिंता के पश्चिमी जगत के खोखलेपन को भी उजागर करता है। फिर भी, यह कहे बिना नहीं रहा जा सकता है कि जिस तरह वर्तमान शासन, पश्चिमी ताकतों के मानवाधिकार के मामले में जरा सी चिंता दिखाने पर भी ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ की गाली से हमले कर रहे हैं, वह यही दिखाता है कि भारत, 1950 में स्वीकृत संविधान की मूल भावनाओं से कितनी दूर आ गया हैै; जहां मानवाधिकार के बर्बर हनन के आरोपों का जवाब यह धमकी है कि, ‘हमारे अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी करने वाले तुम कौन होते हो?’ यह तब है जबकि मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा पर भारत ने न सिर्फ हस्ताक्षर किए हैं बल्कि उसे स्वतंत्र भारत के संविधान में एक प्रकार से आधारभूमि ही बनाया गया है। संविधान के जानकारों के अनुसार, हमारे संविधान के तीसरे और चौथे खंडों में, मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का सीधे अक्स ही दिखाई देता है।

बेशक, बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी के बहाने से यह प्रसंग मूलभूत मानवाधिकार के रूप में सभी नागरिकों की कानून व शासन की नजरों में बराबरी को और इसलिए, संविधान के धर्मनिरपेेक्षता के आधार स्तंभ को और एक लंबी आजादी की लड़ाई से निकले संविधान में गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा उससे संबद्घ अन्य स्वतंत्रताओं को, मोदी निजाम द्वारा बड़ी हिकारत से नष्ट किए जाने को दिखाता है। लेकिन, यह मौजूदा शासन द्वारा भारतीय गणतंत्र के लिए पैदा कर दिए गए खतरे का, एक हिस्सा भर है। इस खतरे के पीछे काम कर रही सांप्रदायिक तानाशाही के विस्तार की भूख का एक और मोर्चा, मौजूदा शासन के प्रतिनिधियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर पिछले कुछ समय से लगातार किए जा रहे हमलों का है। इन्हीं हमलों की ताजातरीन कड़ी में, कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट पर उच्च ‘न्यायिक नियुक्तियों के अपहरण’ का आरोप जड़ दिया है।

याद रहे कि मसला सिर्फ यह नहीं है कि सारी सत्ता एक ही जगह केंद्रित करने की मुहिम में जुटी मौजूदा सरकार को, हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम व्यवस्था हजम नहीं हो रही है, जिसमें नियुक्तियों पर सामान्यत: उसका नियंत्रण नहीं है। हालांकि एक अर्थ में यह व्यवस्था, उच्च न्यायिक नियुक्तियां, न्यायिक सत्ता के परामर्श से ही किए जाने के संवैधानिक निर्देश का ही विस्तार हैं, फिर भी इसके न्यायिक नियुक्तियों के लिए एक पर्याप्त या सबसे उपयुक्त व्यवस्था होने में बेशक बहस हो सकती है। लेकिन, इस व्यवस्था में न्यायपालिका की स्वतंत्रता की अधिकतम गारंटी है, जिसके साथ समझौता नहीं किया जा सकता है, जबकि ठीक इसीलिए तो सारी संवैधानिक संस्थाओं को स्वतंत्र से शासन का कृपाकांक्षी बनाने में लगी मोदी सरकार की आंखों में, कॉलेजियम व्यवस्था बुरी तरह खटक रही है। जाहिर है कि मौजूदा शासन अपने ही प्रति ‘कमिटेड’ न्यायपालिका सुनिश्चित करना चाहता है।

फिर भी, यह सिर्फ तात्कालिक रूप से न्यायपालिका को अपने वफादारों से भरने तथा न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने तक ही सीमित रहने वाला मामला नहीं है। नव-निर्वाचित उपराष्ट्रपति के सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ छेड़े गए अभियान में, जिस तरह संविधान में संशोधन के संसद के अधिकार की सर्वोच्चता तथा संपूर्णता का दावा किया गया है और ऐसे संविधान संशोधनों की संवैधानिक वैधता की परीक्षा करने के, सर्वोच्च संवैधानिक अदालत के रूप में सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को ही खारिज किया जा रहा है, उसके संकेत और भी खतरनाक हैं। अगर, बुनियादी ढांचे के रूप में संविधान का कोई न्यूनतम सुरक्षित ढांचा ही नहीं है, जिसे संसदीय बहुमत भी नहीं बदल सकता है, तो संसदीय बहुमत के बल पर भारत को, एक धर्माधारित तानाशाही में बदलने से क्या रोकेगा? यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा के पितृ संगठन, आरएसएस के आधारभूत या कोर मुद्दों में से, एक प्रमुख मुद्दा धर्मनिरपेक्ष राज्य के प्रावधान समेत, पूरे संविधान की ही ”समीक्षा” तथा बदलाव का रहा है।

वाजपेयी की सरकार में इस दिशा में हिचकिचाहट भरी कोशिशें भी की गई थीं, लेकिन गठबंधन की मजबूरियों के चलते, उस कसरत में से कुछ खास निकला नहीं था। पर अब, जबकि भाजपा दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत भी जुगाड़ने में समर्थ है, संविधान की बुनियादों को ही खोदने के आरएसएस के मंसूबों में बाधक, संविधान के बुनियादी ढांचे की रक्षा करने के कर्तव्य की नजर से, संसदीय बहुमत के निर्णयों की समीक्षा करने के अधिकार से संपन्न, संवैधानिक अदालत ही तो है।

बेशक, गणतंत्र, अंतत: गण का शासन है। यह गणतंत्र भारतीय जनगण की ही रचना है और अपने शासन की हिफाजत भी उसे ही करनी होगी। हां! मोदी राज के साढ़े आठ साल ने, हमारे संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर की एक भविष्यवाणी जरूर सच साबित कर दी है कि अच्छे से अच्छा संविधान भी अगर खराब लोगों के हाथों में पड़ जाएगा, तो वे उसे खराब कर देंगे। भारतीय गणतंत्र अपने चौहत्तरवें साल में अपने अब तक के सबसे गंभीर खतरे का सामना कर रहा है।

•राजेंद्र शर्मा
[, लेखक ‘ लोकलहर ‘ के संपादक हैं ]

🟥🟥🟥

विज्ञापन (Advertisement)

ब्रेकिंग न्यूज़

breaking Chhattisgarh

साय कैबिनेट की बैठक संपन्न, किसानों के हित में लिए गए कई बड़े फैसले, देखें सभी महत्वपूर्ण निर्णय

breaking Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में अप्रैल 2019 से पूर्व पंजीकृत वाहनों पर HSRP लगवाना अनिवार्य, इतना आएगा खर्चा, जानिए पूरी डिटेल

breaking National

MP के इस जिले तक कैसे पहुंची भारतीय संविधान की मूल प्रति, राजेंद्र-नेहरू-आंबेडकर सहित 284 सदस्यों के हैं हस्ताक्षर

breaking Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में शुरू होगी 100 नई इलेक्ट्रिक बसें, यात्रियों की बढ़ेंगी सुविधाएं…

breaking Chhattisgarh

सर्व ब्राह्मण समाज युवक-युवती परिचय सम्मेलन 1 दिसम्बर को रायपुर में

breaking Chhattisgarh

भिलाई में पशु क्रूरता का मामला : कार चालक ने डॉग पर चढ़ाई गाड़ी, FIR दर्ज

breaking Chhattisgarh

ठिठुरने लगा छत्तीसगढ़, कई जिलों में सामान्य से दो डिग्री तक नीचे पहुंचा तापमान…

breaking Chhattisgarh

पीएससी घोटाला : सोनवानी और गोयल को कोर्ट में किया गया पेश, 14 दिनों की न्यायिक रिमांड पर भेजा जेल…

breaking Chhattisgarh

10000 महीना कमा कर सेल्समैन कैसे बना करोड़पति? राज खुला तो दंग रह गए लोग

breaking Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ सीएम को ट्रेन में देख भौचक्के रह गए पैसेंजर, कल आपको भी अपने बगल में बैठे मिल सकते हैं मुख्यमंत्री!

breaking Chhattisgarh

दो बेटों ने पिता को पीट-पीटकर मार डाला, मां की शिकायत पर पकड़े गए हैवान, वजह जानकर खून सूख जाएगा

breaking Chhattisgarh

देवांगन समाज के जिला स्तरीय विशाल सामाजिक एवं युवक- युवती परिचय सम्मेलन में 275 युवकों व 160 युवतियों ने अपने जीवन साथी चुनने परिचय दिया : 32 तलाक़शुदा, विधवा एवं विधुर ने भी अपना परिचय दिया

breaking Chhattisgarh

पटवारी के पद पर चार आवेदकों को मिली अनुकम्पा नियुक्ति

breaking Chhattisgarh

रायपुर दक्षिण पर भाजपा की ऐतिहासिक जीत पर मुख्यमंत्री साय ने दी बधाई, कहा – हमारी सरकार और पीएम मोदी पर भरोसा करने के लिए धन्यवाद

breaking Chhattisgarh

बृजमोहन के गढ़ में सालों से बना रिकॉर्ड बरकरार, सुनील सोनी ने भाजपा को दिलाई ऐतिहासिक जीत, सुनिए सांसद अग्रवाल ने क्या कहा ?

breaking Chhattisgarh

महाराष्ट्र में प्रचंड जीत के बीच सीएम एकनाथ शिंदे की आई प्रतिक्रिया, CM चेहरे पर BJP को दे डाली नसीहत

breaking Chhattisgarh

रायपुर दक्षिण सीट पर सुनील सोनी जीते, कांग्रेस के आकाश शर्मा को मिली करारी मात

breaking Chhattisgarh

घोटाले को लेकर CBI के हाथ लगे अहम सबूत, अधिकारी समेत उद्योगपति को किया गया गिरफ्तार

breaking Chhattisgarh

इस देश में पाकिस्तानी भिखारियों की बाढ़; फटकार के बाद पाकिस्तान ने भिखारियों को रोकने लिए उठाया कदम

breaking Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में धान खरीदी पर मंडराया खतरा! क्यों राइस मिलरों ने कस्टम मिलिंग न करने की दी चेतावनी?

कविता

poetry

इस माह के ग़ज़लकार : रियाज खान गौहर

poetry

कविता आसपास : रंजना द्विवेदी

poetry

रचना आसपास : पूनम पाठक ‘बदायूं’

poetry

ग़ज़ल आसपास : सुशील यादव

poetry

गाँधी जयंती पर विशेष : जन कवि कोदूराम ‘दलित’ के काव्य मा गाँधी बबा : आलेख, अरुण कुमार निगम

poetry

रचना आसपास : ओमवीर करन

poetry

कवि और कविता : डॉ. सतीश ‘बब्बा’

poetry

ग़ज़ल आसपास : नूरुस्सबाह खान ‘सबा’

poetry

स्मृति शेष : स्व. ओमप्रकाश शर्मा : काव्यात्मक दो विशेष कविता – गोविंद पाल और पल्लव चटर्जी

poetry

हरेली विशेष कविता : डॉ. दीक्षा चौबे

poetry

कविता आसपास : तारकनाथ चौधुरी

poetry

कविता आसपास : अनीता करडेकर

poetry

‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के संपादक व कवि प्रदीप भट्टाचार्य के हिंदी प्रगतिशील कविता ‘दम्भ’ का बांग्ला रूपांतर देश की लोकप्रिय बांग्ला पत्रिका ‘मध्यबलय’ के अंक-56 में प्रकाशित : हिंदी से बांग्ला अनुवाद कवि गोविंद पाल ने किया : ‘मध्यबलय’ के संपादक हैं बांग्ला-हिंदी के साहित्यकार दुलाल समाद्दार

poetry

कविता आसपास : पल्लव चटर्जी

poetry

कविता आसपास : विद्या गुप्ता

poetry

कविता आसपास : रंजना द्विवेदी

poetry

कविता आसपास : श्रीमती रंजना द्विवेदी

poetry

कविता आसपास : तेज नारायण राय

poetry

कविता आसपास : आशीष गुप्ता ‘आशू’

poetry

कविता आसपास : पल्लव चटर्जी

कहानी

story

लघुकथा : डॉ. सोनाली चक्रवर्ती

story

कहिनी : मया के बंधना – डॉ. दीक्षा चौबे

story

🤣 होली विशेष :प्रो.अश्विनी केशरवानी

story

चर्चित उपन्यासत्रयी उर्मिला शुक्ल ने रचा इतिहास…

story

रचना आसपास : उर्मिला शुक्ल

story

रचना आसपास : दीप्ति श्रीवास्तव

story

कहानी : संतोष झांझी

story

कहानी : ‘ पानी के लिए ‘ – उर्मिला शुक्ल

story

व्यंग्य : ‘ घूमता ब्रम्हांड ‘ – श्रीमती दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]

story

दुर्गाप्रसाद पारकर की कविता संग्रह ‘ सिधवा झन समझव ‘ : समीक्षा – डॉ. सत्यभामा आडिल

story

लघुकथा : रौनक जमाल [दुर्ग छत्तीसगढ़]

story

लघुकथा : डॉ. दीक्षा चौबे [दुर्ग छत्तीसगढ़]

story

🌸 14 नवम्बर बाल दिवस पर विशेष : प्रभा के बालदिवस : प्रिया देवांगन ‘ प्रियू ‘

story

💞 कहानी : अंशुमन रॉय

story

■लघुकथा : ए सी श्रीवास्तव.

story

■लघुकथा : तारक नाथ चौधुरी.

story

■बाल कहानी : टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’.

story

■होली आगमन पर दो लघु कथाएं : महेश राजा.

story

■छत्तीसगढ़ी कहानी : चंद्रहास साहू.

story

■कहानी : प्रेमलता यदु.

लेख

Article

तीन लघुकथा : रश्मि अमितेष पुरोहित

Article

व्यंग्य : देश की बदनामी चालू आहे ❗ – राजेंद्र शर्मा

Article

लघुकथा : डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय [केंद्रीय विद्यालय वेंकटगिरि, आंध्रप्रदेश]

Article

जोशीमठ की त्रासदी : राजेंद्र शर्मा

Article

18 दिसंबर को जयंती के अवसर पर गुरू घासीदास और सतनाम परम्परा

Article

जयंती : सतनाम पंथ के संस्थापक संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास जी

Article

व्यंग्य : नो हार, ओन्ली जीत ❗ – राजेंद्र शर्मा

Article

🟥 अब तेरा क्या होगा रे बुलडोजर ❗ – व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा.

Article

🟥 प्ररंपरा या कुटेव ❓ – व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

Article

▪️ न्यायपालिका के अपशकुनी के साथी : वैसे ही चलना दूभर था अंधियारे में…इनने और घुमाव ला दिया गलियारे में – आलेख बादल सरोज.

Article

▪️ मशहूर शायर गीतकार साहिर लुधियानवी : ‘ जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी ‘ : वो सुबह कभी तो आएगी – गणेश कछवाहा.

Article

▪️ व्यंग्य : दीवाली के कूंचे से यूँ लक्ष्मी जी निकलीं ❗ – राजेंद्र शर्मा

Article

25 सितंबर पितृ मोक्ष अमावस्या के उपलक्ष्य में… पितृ श्राद्ध – श्राद्ध का प्रतीक

Article

🟢 आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष : डॉ. अशोक आकाश.

Article

🟣 अमृत महोत्सव पर विशेष : डॉ. बलदाऊ राम साहू [दुर्ग]

Article

🟣 समसामयिक चिंतन : डॉ. अरविंद प्रेमचंद जैन [भोपाल].

Article

⏩ 12 अगस्त- भोजली पर्व पर विशेष

Article

■पर्यावरण दिवस पर चिंतन : संजय मिश्रा [ शिवनाथ बचाओ आंदोलन के संयोजक एवं जनसुनवाई फाउंडेशन के छत्तीसगढ़ प्रमुख ]

Article

■पर्यावरण दिवस पर विशेष लघुकथा : महेश राजा.

Article

■व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा.

राजनीति न्यूज़

breaking Politics

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उदयपुर हत्याकांड को लेकर दिया बड़ा बयान

Politics

■छत्तीसगढ़ :

Politics

भारतीय जनता पार्टी,भिलाई-दुर्ग के वरिष्ठ कार्यकर्ता संजय जे.दानी,लल्लन मिश्रा, सुरेखा खटी,अमरजीत सिंह ‘चहल’,विजय शुक्ला, कुमुद द्विवेदी महेंद्र यादव,सूरज शर्मा,प्रभा साहू,संजय खर्चे,किशोर बहाड़े, प्रदीप बोबडे,पुरषोत्तम चौकसे,राहुल भोसले,रितेश सिंह,रश्मि अगतकर, सोनाली,भारती उइके,प्रीति अग्रवाल,सीमा कन्नौजे,तृप्ति कन्नौजे,महेश सिंह, राकेश शुक्ला, अशोक स्वाईन ओर नागेश्वर राव ‘बाबू’ ने सयुंक्त बयान में भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव से जवाब-तलब किया.

breaking Politics

भिलाई कांड, न्यायाधीश अवकाश पर, जाने कब होगी सुनवाई

Politics

धमतरी आसपास

Politics

स्मृति शेष- बाबू जी, मोतीलाल वोरा

Politics

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में हलचल

breaking Politics

राज्यसभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से कहा- मर्यादित भाषा में रखें अपनी बात

Politics

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने डाॅ. नरेन्द्र देव वर्मा पर केन्द्रित ‘ग्रामोदय’ पत्रिका और ‘बहुमत’ पत्रिका के 101वें अंक का किया विमोचन

Politics

मरवाही उपचुनाव

Politics

प्रमोद सिंह राजपूत कुम्हारी ब्लॉक के अध्यक्ष बने

Politics

ओवैसी की पार्टी ने बदला सीमांचल का समीकरण! 11 सीटों पर NDA आगे

breaking Politics

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, ग्वालियर में प्रेस वार्ता

breaking Politics

अमित और ऋचा जोगी का नामांकन खारिज होने पर बोले मंतूराम पवार- ‘जैसी करनी वैसी भरनी’

breaking Politics

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, भूपेश बघेल बिहार चुनाव के स्टार प्रचारक बिहार में कांग्रेस 70 सीटों में चुनाव लड़ रही है

breaking National Politics

सियासत- हाथरस सामूहिक दुष्कर्म

breaking Politics

हाथरस गैंगरेप के घटना पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने क्या कहा, पढ़िए पूरी खबर

breaking Politics

पत्रकारों के साथ मारपीट की घटना के बाद, पीसीसी चीफ ने जांच समिति का किया गठन