वर्षा ऋतु विशेष : मिलन की रूत आ गई है… – एन एल मौर्य ‘ प्रीतम ‘ [भिलाई, छत्तीसगढ़ ]
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🌸 मिलन की रूत आ गई है…
जेठ की तपन से बाग बगीचे झुलसे
धरा बेचैन हो तड़फने लगी थी
फहराती हुई गेसुएं काली घटा बन
गगन पे छा गई हैं
पपीहा पीय -पीय पुकार रही
मयूर नृत्य में मगन है
न बदरा पे चमकी बिजलियां
न पवन सन -सन झकोरा इस बार है
वर्षा रानी अम्बर से उतर
दबे पांव चुपचाप
वसुंधरा से मिलने आ गई है
छम -छम पायल बजाती नाचती
दशो दिगंत में छा गई है
आओ प़ेम का बीज बो दें
तड़फते दिलों में —
ये विरह का नहीं/प़ीतम/
मिलन की रुत आ गई है.
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