कहानी, बाबूजी- डॉ. नलिनी श्रीवास्तव, भिलाई-छत्तीसगढ़
4 years ago
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शौर्य को अपने ऑफिस में असिस्टेंट मैनेजर का आर्डर मिला। उस आर्डर को शौर्य बार-बार पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते उसके आँखों मे आंसू आ गया।
उसे लगा काश् आज बाबूजी रहते तो कितना अधिक खुश होते। शौर्य को उस दिन की याद आई, जब वह केमिकल इंजीनियर बनकर घर आया था। बाबूजी ने संतोष की सांस लेते हुए कहा था, बेटा अब तुम्हारे जीवन की रेलगाड़ी सही पटरी में दौड़ने लगेगी। बस आवश्यकता है कि तुम ईमानदारी और परिश्रम से अपना काम करते रहना। निश्चित ही तुम्हें प्रमोशन मिलते जायेगा।
बाबू जी का यह विश्वास कितना सही था। आज बाबूजी नहीं है पर उनकी बातों में कितना वजन था। यह बात शौर्य उस समय समझ नहीं सका।
अस्पताल से धैर्य का अचानक फोन आया भैया अम्मा आपको याद कर रही है तुरंत चले आओ। उस दिन अम्मा ने दोनों बेटों से कहा अब शायद मै ज्यादा दिन जीवित नहीं रहूँगी। शौर्य ने हँसते हुए कहा- अम्मा अभी आपको कुछ नहीं होगा। आप एकदम ठीक हो जाओगी। आपकी हर बात को हम दोनों भाई पत्थर की लकीर मानते हैं। इस संबंध में आप चिन्ता न करें। वैसे आपकी इच्छा क्या है?
देखो बेटा-तुम्हारे बाबूजी के ना रहने पर तुम दोनो ने जैसे कहा मैं हमेशा हर बात को मानती चली आयी। गाँव में अकेली कैसे रहोगी। चलो हम लोग सब साथ-साथ रहेंगे। मैं चुपचाप तुम लोगो के साथ चली आई।
आज बार-बार मेरे मन में यह इच्छा हो रही है कि जिस घर मे मै दुल्हन बनकर आयी। तुम्हारे बाबूजी के साथ सुख के दिन बिताए थे। उसी घर से मेरा भी अंत्येष्टि होना चाहिए। बस मेरी और कोई इच्छा नहीं है। तुम लोग सदैव सुखी रहो, कभी भी मेरे परिवार में दुःख की काली छाया न पड़े।
शौर्य ने हँसते हुए कहा अम्मा डाॅ. साहब कह रहे थे कल तुम्हें डिस्चार्ज कर देंगे।
यह सुन अम्मा ने कहा रात बहुत हो गयी है। तुम लोग भी आराम करो, मुझे भी नींद आ रही है।
शौर्य सोचने लगा। अम्मा कभी बीमार नहीं पड़ी थी; पर एक महीने पहले अचानक बाथरूम में गिर पड़ी। इसीलिए कमर में सूजन आ गई थी। उन्हें हास्पिटल ले जाना पड़ा। कमर की हड्डी फ्रेक्चर हो गया था। डाॅक्टर साहब ने कहा- दो चार दिन बाद उनका आपरेशन कर देंगे। वैसे आपकी माताजी काफी स्वस्थ है। सिर्फ उम्र के तकाजे से शरीर कमजोर हो गया है। आपरेशन के बाद एकदम ठीक हो जायेगी।…….
आठ बज गए है। अम्मा अभी तक कैसे नहीं उठी है, धैर्य ने अम्मा को हिलाया तो वह अचेत ही पड़ी रह गई। उनका शरीर ठंडा हो गया था। तुरंत डाक्टर साहब को बुलाया गया। डाॅक्टर साहब ने अम्मा को देखा तो कहा इनकी मृत्यु तो सुबह पांच बजे के आसपास हो गयी है। अभी तो तीन घंटे हो गए हैं इसीलिए शरीर ठंडा हो गया है। इसे ‘‘साईलेंट हार्ट अटैक’’ कहते है।
यह सुन शौर्य और धैर्य अवाक हो गए। कुछ घंटे तक दोनों भाई विधि के विधान के सामने नतमस्तक हो दुःखी हो गए। दोनों भाईयों ने यह तय किया कि अम्मा की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए अपने पुरखौती गाँव वाले मकान में जाने की तैयारी में जुट गए। नाते रिश्तेदारों को छोटा भाई धैर्य अम्मा की मृत्यु का सूचना देने में व्यस्त हो गया कि गाँव में ही अम्मा की अंत्येष्टि होगी।
दूसरे दिन गाँव में अम्मा की अंतिम यात्रा में बड़े छोटे, बुजुर्ग सभी लोगों की भींड़ देखते ही बन रही थी। गाँव वालों ने उस दिन शोक दिवस मनाते हुए अपनी अपनी दुकाने भी बंद कर दी थी।…..
दूसरे दिन शौर्य की पत्नी रेवती ने झल्लाते हुए कहा ये मैं क्या सुन रही हूँ? क्या हम लोगों को पंद्रह दिनों तक गाँव के इस माहौल में ही रहना होगा।
क्यों ? तुम्हें यहाँ रहने में क्या तकलीफ है ?
इसे तुम कभी नहीं समझ सकते ?
तभी धैर्य ने कहा – भैया रामदुलारे को कल शहर भेज रहा हूँ। आपको भी कुछ समान मंगाना हो तो बता दें। तुम्हारी भाभी से पूछ लो अभी 15 – 20 दिनों तक यहीं रहना है। कल तक बड़ी दीदी भी आ जायेगी।…..
तभी हीरालाल ने कहा – मालिक गाँव के कुछ लोग आपसे मिलने आए है ठीक है कह शौर्य बाहर बैठक में चला गया।
गाँव के बुजुर्ग तिलकचंद ने कहा… बेटा घर वर्षों से बंद पड़ा था। कोई भी चीज की जरूरत पड़े तो बेहिचक हीरालाल या किसी को भेजकर मंगा लेना। तभी सुखराम कहता है मैं अपनी बहु ‘गजरा‘ को आज से ही भेज दूँगा, वह खाना वगैरह बनाने, साफ सफाई करने में बहुओं की इच्छानुसार काम कर देगी। ठीक है गजरा बहू को भेज देना कुछ तो बहुओं को सहारा हो जायेगा।
घर का चक्कर लगाते हुए शौर्य अपने बचपन के यादों में खो गया।
बाबू जी ने कितना सोच समझ कर यह मकान बनवाया था। एक तरफ कोने में नीम का पेड़ जिसकी सरसराती हवा ए.सी. से भी बढ़िया काम करती है? दूसरी ओर कुंए के पास नीबू और आम का पेड़। तुलसी चैरे के पास बगल में पारिजात का पेड़, दूसरी तरफ अमलतास का पेड़ और कुल्हड़ के रंग बिरंगे फूल कितना सुन्दर लग रहा है। आंगन के बीचोबीच कितना सुन्दर छोटा सा मंदिर बना हुआ है। हर दीवाली घर में सत्यनारायण की पूजा होती थी। गाँव भर के लोगों का जमघट लगा रहता था।
कुंए का पानी कितना मीठा है ? फिर भी हमारे ही घर में सबसे पहले नल और बिजली आया था।
बाबूजी मिडिल स्कूल में मास्टर थे। हाई स्कूल खुला तो बाबूजी नवमी, दसवीं की कक्षा भी पढ़ाने लगे। घीरे-धीरे उनकी तरक्की होती चली गई। एक दिन उसी स्कूल के हेडमास्टर हो गए।
बाबूजी केमेस्ट्री पढ़ाते थे। किसी भी बच्चे को कोई तकलीफ होती तो घर में बुलाकर उसे प्रेम से समझाते। निराश कभी नहीं होना। कभी भी ट्यूशन कर बाबू जी पैसा कमाने की बात नहीं सोचते थे। बाबूजी के मानवीय गुणों व उनकी सज्जनता से गाँव के लोग बहुत प्रभावित थे। कभी भी किसी को तकलीफ होती तो तुरंत बाबूजी से सलाह मशविरा करने पहुँच जाते। पढ़ने वाले बच्चों को सदा सही दिशा निर्देश देते। कभी कभी किसी बच्चे की जरूरत पड़ती तो फीस भी जमा कर देते।
धैर्य ने इलेक्ट्रीशिन को बुलाकर घर के कमरों में सी.एफ.एल. बल्ब मंगाकर लगवा दिया।
गाँव की सम्पद सब्जी बेचने वाली चार पाँच तरोई और दो लौकी लेकर आई। दोनों बहुओं ने तरोई और लौकी को देखकर कहा- कितना ताजा लग रहा है। हाँ बहुरानी बाड़ी (बखरी) से अभी तोड़कर लायी हूँ।
कितना रूपया दूँ रेवती ने पूछा-अरे बहुरानी आप से क्या मोल भाव करूँगी जो मर्जी हो दे दो। यह सुन सुषमा सोचने लगी-यही तो गाँव की विशेषता है। मौके का फायदा उठाना उन्हें नहीं आता है।
एक एक दिन कर दस ग्यारह दिन कैसे निकल गया ? पता ही नहीं चला। कुछ सम्भ्रांत घर की महिलाएं बहुओं के पास बैठने आ जाती है। वे लोग अम्माजी को मास्टरनी बाई कहती थी। एक शुक्लाईन बताती है मैं तो अक्सर मास्टरनी बाई के पापड़ बड़ी बनाने में उनका मदद करती थी उनकी बड़ी बेटी की षादी गाँव से हुई थी। हम लोग भी उस समय घर के जैसे हर काम में मास्टर जी बाई की सहायता किए थे।…….
मास्टर साहब की उम्र अभी जाने लायक नहीं थी। एक दिन सायकिल से बाजार जा रहे थे तभी उन्हें बाइक वाले ने ऐसी टक्कर दी कि मास्टर साहब गिर गए। उन्हें सिर में काफी चोट लगी थी। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। वहाँ डाक्टर साहब ने बतलाया कि खून काफी बह गया है। फिर भी कोशिश कर रहे हैं पर बचाना मुश्किल लगता है। शौर्य ने कहा-हम दोनों भाईयों का भी खून आप ले सकते है पर बाबू जी को आप ठीक करने की कोशिश कीजिए। लाख कोशिशों के बावजूद डाक्टर साहब बाबू जी को नहीं बचा सके।
सुषमा और रेवती दोनों बहुओं ने उनकी बातों को सुनकर यह अनुभव किया।
इन लोगों के पास रूपय पैसा नहीं रहता है पर इनकी इंसानियत का जवाब नहीं है।
मेट्रो सिटी में रहने वालों के पास बैंक बैलेन्स तो रहता है; पर दूसरों को सहायता बिना किसी स्वार्थ के कभी नहीं करते। सुख दुःख में मात्र औपचारिता दिखाने कुछ समय के लिए आकर बैठ जाते हैं यही उनका बहुत बड़ा योगदान रहता है।
नाते रिश्तेदार भी सुख-दुःख में षहर के फ्लैट को कबूतरखाना कहकर कुछ देर में लौट जाते हंै।
गाँव वालों के ब्यवहार को देखकर सुशमा और रेवती दोनों बहुरानी विशेष प्रभावित हुई।
इलाहाबाद से शौर्य और उनके जीजा आने वाले थे। उनकी अगवानी करने कुछ लोग गाँव के मोटर स्टैड में पहुँच गए।
अम्मा का अंतिम संस्कार का कार्य, ‘गरूण पुराण का समापन’ ‘गंगा पूजन’, ‘ब्राम्हण भोज’ और ‘शांति भोज‘ सभी कार्यक्रम निर्विध्न सम्पन्न हो गया। अम्मा की तस्वीर देखने से यही लग रहा था मानों उन्हें शांति की सुखद अनुभूति हो रही है।
सुषमा ने अपनी रेवती दीदी से कहा- क्यों ना हम लोग बाबूजी की इच्छानुसार प्रतिवर्ष दीवाली गाँव में ही मनाएँ ? यही तो मैं भी सोच रही थी। जब दोनों बहुओं ने अपनी इच्छा शौर्य और धैर्य के सामने रखा तो दोनों भाईयों ने उसे स्वीकार करने में एक पल की भी देर नहीं किया। अम्मा की मुस्कुराती तस्वीर मानो कह रही है। मेरे बच्चों, तुमने मेरी और तुम्हारे बाबूजी की इच्छा का मान रख लिया।
【 डॉ. नलिनी श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ की जानी-पहचानी वरिष्ठ कथाकारा हैं.
‘छत्तीसगढ़ आसपास’ मासिक प्रिंट पत्रिका में डॉ. नलिनी श्रीवास्तव जी की कहानी ‘नई दिशा’ नाम से नियमित प्रकाशित हो रही है, इस स्तम्भ में अब तक उनकी 26 कहानी प्रकाशित हो चुकी है.
‘छत्तीसगढ़ आसपास वेब पोर्टल’ में पढ़िए नई मौलिक कहानी-‘बाबूजी’ । इसी कहानी को ‘छत्तीसगढ़ आसपास प्रिंट मासिक पत्रिका’ के दिसम्बर-2020 में पढ़ सकेंगे.
-संपादक
लेखिका संपर्क-
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