कविता, नीरवता -दीप्ति श्रीवास्तव, रायपुर-छत्तीसगढ़
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नीरवता जब मन में आती
जग सूनाकर जाती
सखा बंधु सब पराये लगते
अपनी व्यथा न बोली जाती
हंसी खुशी सब साथ ले जाती
नीरवता जब समाज में छाई
कोरोना ने दहेज में अपने संग लाई
तिल तिल दिमाग में छाई
जरा सी तबियत क्या लहराई
मन में हाहाकार मचाई
नीरवता है अवगुणी
प्रसन्नता को समेट
अवसाद का बाना बुन
चेतन को जड़ कर जाती
बंधु …..
रिश्तों में न छाने दे नीरवता
जज्बातों का मलहम लगा
प्रेम की पट्टी लपेटे ।
【 दीप्ति श्रीवास्तव की कविताएं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन रायपुर में नियमित प्रसारित होते रहती है
प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों में रचनात्मक लेखन जारी है
‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में उनकी पहली रचना है
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-संपादक 】
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