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व्यक्तित्व विशेष : सीताराम येचुरी : साधारण व्यक्ति, असाधारण व्यक्तित्व – संजय पराते

1 month ago
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कॉमरेड सीताराम येचुरी को गुजरे एक माह हो चुके हैं। उनके निधन के बाद उनके चहेतों ने उनके व्यक्तित्व और वर्तमान राजनीति में उनकी प्रासंगिकता के बारे में बहुत कुछ कहा है, तो संघी गिरोह ने उन पर अपने नफरती हमले भी लिए हैं। सीताराम जिस वर्गीय राजनीति से ताल्लुक रखते थे, उसे देखते हुए इन हमलों में नया कुछ भी नहीं था। ये हमले वामपंथी राजनीति की जीवंतता का ही प्रतीक है।

सीताराम देश की आजादी के बाद की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे, जिनकी वामपंथी शिक्षा-दीक्षा ईएमएस नंबूदिरीपाद, हरकिशनसिंह सुरजीत, एम बासवपुनैया जैसे प्रख्यात कम्युनिस्ट नेताओं और स्वाधीनता संग्राम सेनानियों की देख-रेख में हुई थी। इनमें से प्रत्येक के साथ स्वतंत्रता आंदोलन के प्रेरक प्रसंग जुड़े हुए हैं। ईएमएस नंबूदिरीपाद को केरल का गांधी माना जाता है, जिनका रूपांतरण एक कांग्रेसी से कम्युनिस्ट में हुआ था। मानव विकास संकेतकों पर आज केरल जिस ऊंचे स्थान पर खड़ा है, उस आधुनिक केरल के निर्माण में उनका अविस्मरणीय योगदान है। सुरजीत के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई और एंटी बेटरमेंट लेवी आंदोलन का इतिहास जुड़ा था, तो बासवपुनैया सशस्त्र तेलंगाना आंदोलन के नायक थे। आजादी के पहले और आजादी के बाद आम जनता के हितों की लड़ाई लड़ने में कम्युनिस्टों की कोई सानी नहीं है। वर्तमान भारत को रूपाकार देने में वामपंथियों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

एक मेधावी छात्र के रूप में अपनी पढ़ाई के दौरान दिल्ली में आकर सीताराम स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के जरिए वामपंथी राजनीति से जुड़ते हैं। एसएफआई का नारा है — पढ़ाई और लड़ाई साथ-साथ। पढ़ाई — अपने शैक्षणिक पाठ्यक्रम सहित ज्ञान-विज्ञान की तमाम विषय वस्तुओं का, जो मानव समाज की उन्नति के लिए मनुष्य की चेतना को एक वैज्ञानिक चेतना में ढालने का काम करें। लड़ाई — सरकार की शिक्षा नीति और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष, जो वर्गीय शोषण से पीड़ित एक शोषित समाज को शोषणमुक्त समाज में बदलने के आंदोलन को तेज करे। अपने पूरे जीवन में सीताराम ने एसएफआई के इस नारे पर अमल किया। इस नारे पर अमल ने ही उन्हें छात्र समुदाय के बीच एक संघर्षशील नेता के रूप में स्थापित किया और वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के लगातार तीन बार अध्यक्ष चुने गए। जेएनयू के साथ उनका जुड़ाव अंत तक बना रहा। जेएनयू का कोई छात्र संघ चुनाव ऐसा नहीं था, जिसमें उन्हें छात्र समुदाय को संबोधित करने के लिए न बुलाया गया हो। जेएनयू के साथ उनका ऐसा प्रगाढ़ संबंध था कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी नश्वर देह ने इस विश्वविद्यालय के परिसर में कुछ क्षण विश्राम किया और समूचे छात्र समुदाय ने उनको अपनी अंतिम सलामी दी। उनके नेतृत्व में ही एसएफआई ने सबसे पहले ‘सबको शिक्षा, सबको काम’ का नारा दिया था, जो बाद में देश में छात्र-युवा आंदोलन को विकसित करने का हथियार बना।

1984 में एसएफआई का अखिल भारतीय सम्मेलन दमदम (प. बंगाल) में हुआ। इस सम्मेलन में वे एसएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। मैंने भी इस सम्मेलन में मध्यप्रदेश से (तब छत्तीसगढ़ बना नहीं था।) एक प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया था। उस सम्मेलन को उत्पल दत्त ने भी संबोधित किया था। उस समय हमारे लिए सिनेमा के पर्दे की छवि को प्रत्यक्ष जीवंत रूप में देखना/सुनना काफी रोमांचक था। इतना ही रोमांचक सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों का दमदम के बच्चों द्वारा फूल देकर स्वागत करना था। इस सम्मेलन ने वामपंथ के साथ मेरे जुड़ाव को स्थायी बनाया।

एसएफआई का मुखपत्र है ‘स्टूडेंट्स स्ट्रगल।’ अंग्रेजी में निकलता है और तब सीताराम इसके संपादक थे। हम हिंदी के छात्रों को तब अंग्रेजी नहीं आती थी, इसके बावजूद इसके अंकों का हमें इंतजार रहता था। कारण, इसका कलेवर (कवर पेज) काफी आकर्षक रहता था और इसकी सामग्री में विविधता होती थी। इस विविधता को हम लोग इसके चित्रों और आलेखों के शीर्षकों से महसूस करते थे। इसका क्रेज छात्र समुदाय से बाहर भी काफी था। इस पत्रिका में विज्ञान और खेल पर विशेष आलेख तो होते ही थे, सुप्रसिद्ध व्यक्तियों — फैज अहमद फैज से लेकर फिराक गोरखपुरी और प्रेमचंद तक, ब्रेटोल्ट ब्रेख्ट से लेकर पीटर ब्रुक तक और टैगोर से लेकर राहुल सांकृत्यायन तक लेख, साक्षात्कार और उनके साहित्यिक योगदान का जिक्र रहता था। इसलिए इस पत्रिका को हम लोग अध्यापकों और ट्रेड यूनियनों से जुड़े कर्मचारियों के बीच आसानी से बेच लेते थे। मुझे याद है कि उनके संपादन में स्टूडेंट्स स्ट्रगल के दो विशेष अंक निकले थे: एक, मार्क्स की मृत्यु शतवार्षिकी पर और दूसरा, सफदर हाशमी की शहादत पर। रायपुर में इन दोनों अंकों की सैकड़ों प्रतियां हमने हाथों हाथ बेची थी।

एसएफआई के नेता रहते हुए ही वे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के शीर्ष नेताओं में शामिल हो गए। बहुत कम उम्र में ही वे माकपा की केंद्रीय समिति, फिर केंद्रीय सचिव मंडल और फिर पोलिट ब्यूरो में शामिल कर लिए गए। इस दौरान उन्होंने कॉ. सुरजीत (तब वे माकपा के महासचिव थे।) के सान्निध्य में उनके निकट सहयोगी के रूप में काम किया। 19वीं सदी का आखिरी दौर भारत में गठबंधन की राजनीति का दौर था और सुरजीत गठबंधन की राजनीति को रूपाकर देने वाले कलाकार माने जाते थे।

लेनिन का कथन है “ठोस परिस्थितियों का ठोस विश्लेषण”। यह सीताराम की प्रिय उक्ति थी और प्रायः हर बैठकों और सभाओं में वे इसे दुहराते थे। वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों का उनका ठोस विश्लेषण ही था, जिसने उनको एक असाधारण राजनेता के रूप में स्थापित किया। भारत के मामले में उनका यह ठोस विश्लेषण ही था, जिसने उन्हें भारत की विविधता को पहचानने और अनेकता में एकता के विचार के प्रति प्रतिबद्ध किया और उन्होंने हिन्दुत्व की विचारधारा के खिलाफ संघर्ष के क्रम में ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ के विचार को पुष्ट किया। संघी गिरोह जहां भारतीय मिथकों को प्रमाणित इतिहास बताने में जुटा है, सीताराम की खासियत है कि उन्होंने बड़े पैमाने पर भारतीय मिथकों की भौतिकवादी व्याख्या की और इस व्याख्या को उन्होंने आम जनता के रोजमर्रा के संघर्षों से जोड़ा।

मार्क्स का प्रसिद्ध कथन है : “अभी तक दार्शनिकों ने भिन्न-भिन्न तरीकों से दुनिया की व्याख्या की है। लेकिन असली सवाल है उसे बदलने का।” 20वीं सदी का आखिरी दौर राजनैतिक उथल पुथल से भरा दौर था। सोवियत संघ का पतन हुआ। देश में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। इसी दौरान उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां लागू की गई। इन तमाम घटनाक्रमों ने भारतीय वामपंथ के सामने वैचारिक-राजनैतिक चुनौतियां पेश की। सीताराम ने न केवल इस बदलती दुनिया की व्याख्या की, बल्कि इसे बदलने के लिए दिशा-निर्देशन भी किया।

1980 के दशक में सोवियत संघ का पतन हुआ और समाजवादी खेमे का अंत हुआ। इसने पूरी दुनिया की संघर्षशील ताकतों को निराशा से भर दिया। राजनैतिक माहौल इतना निराशाजनक था कि कुछ कम्युनिस्ट पार्टियों ने तो अपने नाम ही बदल दिए थे। ऐसे समय सीताराम ने मार्क्सवाद की प्रासंगिकता और पूंजीवाद के संकट को रेखांकित किया। जब पूरी दुनिया में बुर्जुआ मीडिया “पूंजीवाद का कोई विकल्प नहीं (टीना –“देयर इज नो ऑल्टरनेटिव”) का प्रचार कर रहा था, सीताराम ने जवाब दिया — “(सीता) — सोशलिज्म इज द ऑल्टरनेटिव।” उन्होंने विस्तार से यह बताया कि सोवियत संघ का विखंडन मार्क्सवाद और समाजवाद के गलत होने को प्रमाणित नहीं करता, बल्कि उसकी सत्यता की ही पुष्टि करता है। सोवियत संघ का विखंडन समाजवाद के नियमों को गलत तरीके से लागू करने का अनिवार्य परिणाम था। बाद में, उनकी इस वैचारिक प्रस्थापना को अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन में स्वीकृति मिली।

1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस और 1998-2004 के बीच भाजपा की गठबंधन सरकार की कारगुजारियों ने राष्ट्रीय राजनीति में सांप्रदायिकता के वास्तविक खतरे को सामने ला दिया। इस खतरे से मुठभेड़ करते हुए 1993 में उन्होंने एक छोटी-सी पुस्तिका लिखी — “हिन्दू राष्ट्र क्या है?” यह पुस्तिका संघियों के गुरु गोलवरकर द्वारा 1939 में लिखित पुस्तिका “वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड” (हम या हमारे राष्ट्रीयत्व की परिभाषा) की मुकम्मल समालोचना थी। इस पुस्तिका में गोलवरकर ने भारत को एक “हिन्दू राष्ट्र” के रूप में प्रतिपादित किया है और कम्युनिस्टों, मुस्लिमों और ईसाईयों को देश के लिए मुख्य खतरा बताया है। संघी गिरोह के बीच गोलवरकर की यह पुस्तिका “गीता” का स्थान रखती है। अपनी सम्यक आलोचना के जरिए सीताराम ने हिन्दुत्व की विचारधारा के सांप्रदायिक, जातिवादी और फासीवादी स्रोतों को उजागर किया। बहुतों के लिए आज भी यह रहस्य है कि संघी गिरोह अल्पसंख्यकों से इतनी नफरत क्यों करता है, या कि स्वाधीनता संग्राम से अलग रहकर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान संघ ने अंग्रेजों को सैनिकों की आपूर्ति करने का काम क्यों किया, या कि स्वतंत्र भारत में संविधान के बुनियादी मूल्यों के प्रति आस्था रखने के बजाए आज भी वह मनुस्मृति की स्थापना क्यों करना चाहता है। सीताराम की इस पुस्तिका से संघी गिरोह के इन रहस्यों का पर्दाफाश होता है। सीताराम की इस पुस्तिका को पढ़ने से इस बात का जवाब भी मिल जाता है कि क्यों संघी गिरोह उनसे इतनी नफरत करता है।

सीताराम येचुरी भारत की विविधता के प्रति प्रतिबद्ध थे, क्योंकि उनका मानना था कि भारत एक बहुराष्ट्रीय देश है और इसकी विविधता की रक्षा किए बिना देश की एकता को कायम नहीं रखा जा सकता। उनके लिए यही “आइडिया ऑफ इंडिया” था। भारत की विविधता की रक्षा करनी है, तो बाबा साहेब द्वारा रचित संविधान में शामिल संप्रभुता, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और सामाजिक न्याय जैसे बुनियादी मूल्यों की रक्षा करनी होगी, इन मूल्यों को रोजमर्रा के आचरण में उतारना होगा। आज इस संविधान और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा किए बिना देश को समाजवाद के रास्ते पर भी नहीं ले जाया जा सकता। इसलिए जब कभी, चाहे जिस ओर से संविधान के बुनियादी मूल्यों पर हमला हुआ है, सीताराम की उपस्थिति यह आश्वस्ति देती थी कि इस हमले का कड़ा मुकाबला किया जाएगा।

संसद में सीताराम ने एक उत्कृष्ट सांसद की भूमिका निभाई, जैसी कि एक कम्युनिस्ट सांसद से अपेक्षा की जाती है। वर्ष 2016 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से नवाजा गया। भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ का अवसर पर उन्होंने संसद में भारतीय कम्युनिस्टों की स्वाधीनता आंदोलन में निभाई गई भूमिका और इस आंदोलन से संघी गिरोह की गद्दारी को उन्होंने तथ्यों के साथ शानदार ढंग से सामने रखा। संविधान दिवस के अवसर पर हुई बहस में भी उन्होंने संवैधानिक मूल्यों को सूत्रबद्ध किया। संसद के अंदर सीताराम जब बोलते थे, पूरा संसद ध्यान से सुनता था। संसद के बाहर भी जब वे बोलते थे, पूरे देश की जनता उसे तवज्जो देती थी।

2004-09 का समय वामपंथ का सुनहरा दौर था, जब संसद में माकपा के 43 सांसदों सहित वामपंथ के 61 सांसद थे। इसी संसदीय ताकत के दबाव में तब की संप्रग सरकार को मनरेगा, सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार, आदिवासी वनाधिकार जैसे कानून बनाने पड़े।इन कानूनों ने देश में लोकतंत्र के विस्तार और आम जनता के बुनियादी अधिकारों की रक्षा में नए आयाम जोड़े हैं। संप्रग की सरकार वामपंथ के समर्थन पर टिकी थी, जिसके काम करने का आधार बना न्यूनतम साझा कार्यक्रम। इस कार्यक्रम को बनाने और कुछ हद तक इसे लागू करवाने में सीताराम येचुरी की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रायः सभी राजनैतिक दलों ने स्वीकार किया है।

2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद संविधान के बुनियादी मूल्यों और आम जनता की रोजी-रोटी पर हमले तेज हुए हैं। इन हमलों का मुकाबला करने के लिए विपक्ष को एकजुट करने में सीताराम की भूमिका महत्वपूर्ण थी। चाहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने का मामला हो, या किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों और मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं के खिलाफ संघर्ष में किसानों और मजदूरों की वर्गीय एकता बनाने का मुद्दा हो, सीताराम की भूमिका महत्वपूर्ण रही। हमेशा उनका जोर जनसंघर्षों को वर्गीय संघर्षों में बदलने पर रहा। उनका मानना था कि यही संघर्ष वामपंथ को नई ताकत दे सकते हैं और राजनीति में वामपंथ को पुनः प्रतिष्ठित कर सकते हैं। इन जनसंघर्षों और वर्गीय संघर्षों की कोख से ही ‘इंडिया’ समूह का जन्म हुआ, जो आज भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को सीधे टक्कर दे रही है। अपने अंतिम समय में इस गठबंधन की राजनीति को विकसित करने में वे लगे हुए थे। 28 सितम्बर को दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के कार्यक्रम में इंडिया समूह के सभी दलों ने उनके इस योगदान को सराहा है और भाजपा-आरएसएस की सांप्रदायिक, फासीवादी राजनीति का एकजुट होकर मुकाबला करने का संकल्प लिया है। इस संकल्प को पूरा करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी, क्योंकि कॉमरेड सीताराम येचुरी का सपना ही था : सांप्रदायिक-फासीवादी राजनीति को परास्त करने का, संविधान के बुनियादी मूल्यों की रक्षा करने का, आम जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों के विस्तार का, अनेकता में एकता के लिए देश की विविधता को स्वीकार करने का।

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SITARAM YECHURY : An Ordinary person with an extraordinary personality : Article by Sanjay Parate

It has been a month since Comrade Sitaram Yechury passed away. After his death, his admirers have said a lot about his personality and his relevance in current politics, while the Sanghi gang has also launched its hate attacks on him. There was nothing new in these attacks considering the class politics to which Sitaram belonged. These attacks are a symbol of the liveliness of left politics.

Sitaram represented that generation after the independence of the country, whose left education was done under the guidance of eminent communist leaders and freedom fighters like EMS Namboodiripad, Harkishan Singh Surjeet and M Basavapunnaiya. Each of them has inspiring incidents associated with the freedom movement. EMS Namboodiripad is considered the Gandhi of Kerala, who was transformed from a Congressman to a communist. He has an unforgettable contribution in such a high position that the modern Kerala stands at today on human development indicators. Surjeet had a history of fighting against the British and the anti-betterment levy movement, while Basavapunnaiya was the hero of the armed Telangana movement. Communists have no equal in fighting for the interests of the common people before and after independence. The contribution of the left in shaping the present India can not be denied.

As a brilliant student, during his studies, Sitaram came to Delhi and joined left politics through the Students’ Federation of India (SFI). The slogan of SFI is — study and struggle together. Study — of all the subjects of knowledge and science including its academic curriculum, which work to mold the consciousness of man into a scientific consciousness for the progress of human society. Struggle — fight against the education policy and anti-people policies of the government, which accelerates the movement to transform an exploited society suffering from class exploitation into an exploitation-free society. Sitaram followed this slogan of SFI throughout his life. The implementation of this slogan established him as a struggling leader among the student community and he was elected President of Jawaharlal Nehru University (JNU) three times in a row. His association with JNU continued till the end. There was no student union election of JNU in which he was not invited to address the student community. He had such a strong bond with JNU that after his death, his mortal remains rested for a while in the campus of this university and the entire student community gave him its last salute. It was under his leadership that SFI first gave the slogan of ‘Education for all, employment for all’, which later became a weapon to develop the student-youth movement in the country.

In 1984, the All India Conference of SFI was held in Dum Dum (West Bengal). In this conference, he was elected the National President of SFI. I too had participated in this conference as a delegate from Madhya Pradesh (Chhattisgarh was not formed then). Utpal Dutt had also addressed that conference. At that time, it was quite exciting for us to see/hear the image on the cinema screen in a live form. Equally exciting was the welcome given to the delegates by the children of Dum Dum by giving them flowers. This conference made my association with the left permanent.

The mouthpiece of SFI is ‘Students’ Struggle’. It is published in English and Sitaram was its editor then. We, Hindi students, did not know English then, yet we used to wait for its issues. The reason was that its cover page was quite attractive and its content was diverse. We could feel this diversity from its pictures and the titles of the articles. Its craze was also quite outside the student community. This magazine had special articles on science and sports, articles, interviews and mention of literary contributions of famous people — from Faiz Ahmed Faiz to Firaq Gorakhpuri and Premchand, from Bretolt Brecht to Peter Brook and from Tagore to Rahul Sankrityayan. Therefore, we could easily sell this magazine among teachers and employees associated with trade unions. I remember that two special issues of Students’ Struggle were published under his editorship : one, on the centenary of Marx’s death and the other, on the martyrdom of Safdar Hashmi. We sold hundreds of copies of both these issues in Raipur.

While being a leader of SFI, he joined the top leadership of Communist Party of India (Marxist) – CPI(M). At a very young age, he was included in the Central Committee of CPI-M, then in the Central Secretariat and then in the Polit Bureau. During this period, he worked as a close associate of Comrade Surjeet (he was then the General Secretary of CPI-M). The last period of 19th century was the period of coalition politics in India and Surjeet was considered to be the artist who gave shape to coalition politics.

Lenin said, “Concrete analysis of concrete situations”. This was Sitaram’s favourite saying and he used to repeat it in almost every meeting and gathering. It was his concrete analysis of the current political situation that established him as an extraordinary statesman. In the case of India, it was his concrete analysis that made him recognize the diversity of India and committed him to the idea of ​​unity in diversity and he strengthened the ​​’Idea of ​​India’ in the course of fighting against the ideology of Hindutva. While the Sanghi gang is busy in presenting Indian myths as authentic history, Sitaram’s specialty is that he gave a materialistic interpretation of Indian myths on a large scale and he connected this interpretation to the everyday struggles of the common people

Marx’s famous statement is : “So far philosophers have interpreted the world in different ways. But the real question is to change it.” The last phase of the 20th century was a period of political turmoil. The Soviet Union collapsed. The Babri Masjid was demolished in the country. During this time, policies of liberalization, privatization and globalization were implemented. All these developments presented ideological-political challenges to the Indian left. Sitaram not only interpreted this changing world, but also gave directions to change it.

In the 1980s, the Soviet Union collapsed and the socialist camp came to an end. This filled the struggling forces of the whole world with despair. The political atmosphere was so depressing that some communist parties even changed their names. At such a time, Sitaram underlined the relevance of Marxism and the crisis of capitalism. When the bourgeois media all over the world was propagating “There is no alternative” (TINA) to capitalism, Sitaram replied – “(SITA) – Socialism is the alternative.” He explained in detail that the disintegration of the Soviet Union does not prove the incorrectness of Marxism and socialism, but rather confirms their truth. The disintegration of the Soviet Union was an inevitable result of the wrong implementation of the rules of socialism. Later, his ideological proposition received acceptance in the international communist movement.

The demolition of Babri Masjid in 1992 and the actions of the BJP coalition government between 1998-2004 brought the real danger of communalism in national politics to the fore. To counter this danger, in 1993 he wrote a small booklet — “What is Hindu Rashtra?” This booklet was a complete critique of the booklet “We or Our Nationhood Defined” written in 1939 by Sanghi guru Golwarkar. In this booklet, Golwarkar has propounded India as a “Hindu Rashtra” and has described communists, Muslims and Christians as the main threats to the country. This booklet of Golwarkar holds the place of “Gita” among the Sanghi gang. Through his thorough criticism, Sitaram exposed the communal, casteist and fascist sources of the ideology of Hindutva. It is still a mystery for many as to why the Sanghi gang hates minorities so much, or why the Sangh kept away from the freedom struggle and supplied soldiers to the British during the Second World War, or why it wants to establish Manusmriti even today instead of believing in the basic values ​​of the Constitution in independent India. This booklet by Sitaram exposes these secrets of the Sanghi gang. Reading of this booklet by Sitaram also gives the answer as to why the Sanghi gang hates him so much.

Sitaram Yechury was committed to the diversity of India because he believed that India is a multinational country and the unity of the country can not be maintained without protecting its diversity. For him, this was the “Idea of ​​India”. If India’s diversity has to be protected, then the basic values ​​like sovereignty, democracy, secularism, federalism and social justice included in the Constitution written by Baba Saheb will have to be protected, these values ​​will have to be incorporated in everyday conduct. Today, without protecting this Constitution and constitutional values, the country can not be taken on the path of socialism. Therefore, whenever, from whichever side, the basic values ​​of the Constitution have been attacked, Sitaram’s presence used to assure that this attack will be strongly countered.

In Parliament, Sitaram played the role of an excellent parliamentarian, as is expected of a communist MP. In the year 2016, he was awarded the Best Parliamentarian Award. On the occasion of the 75th anniversary of the Quit India Movement, he brilliantly presented the role played by the Indian communists in the freedom movement and the betrayal of the Sanghi gang in this movement with facts. He also formulated constitutional values in the debate held on the occasion of Constitution Day. When Sitaram spoke inside the Parliament, the entire Parliament listened attentively. Even outside the Parliament, when he spoke, the people of the entire country paid attention to him.

The period of 2004-09 was the golden period of the left, when there were 61 MPs of the left in the Parliament including 43 MPs of CPI-M. Under the pressure of this parliamentary power, the then UPA government had to make laws like MNREGA, Right to Information, Right to Food, Tribal Forest Rights etc. These laws have added new dimensions to the expansion of democracy in the country and protection of the basic rights of the common people. The UPA government was dependent on the support of the left, the basis of its work was the Common Minimum Programme. Almost all political parties have acknowledged the important role of Sitaram Yechury in making this programme and to some extent implementing it.

After the formation of the BJP government under the leadership of Modi in 2014, attacks on the basic values ​​of the Constitution and the livelihood of the common people have intensified. Sitaram’s role was important in unifying the opposition to counter these attacks. Whether it was a matter of unifying the opposition against the Land Acquisition Ordinance, or the issue of creating class unity of farmers and labourers in the struggle against the three anti-farmer agricultural laws and the four anti-labour labour codes, Sitaram’s role was important. His emphasis was always on transforming mass struggles into class struggles. He believed that these struggles can give new strength to the left and re-establish the left in politics. It was from the womb of these mass struggles and class struggles that the ‘India’ group was born, which is today giving a direct fight to the communal politics of the BJP. In his last days, he was engaged in developing the politics of this alliance. On 28 September, in a national level program to pay tribute to him in Delhi, all the parties of India Group have appreciated his contribution and have resolved to fight the communal, fascist politics of BJP-RSS unitedly. Fulfilling this resolution will be a true tribute to him, because Comrade Sitaram Yechury’s dream was: to defeat communal-fascist politics, to protect the basic values ​​of the Constitution, to expand the democratic rights of the common people and to accept the diversity of the country for unity in diversity.

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👉 { •लेखक संजय पराते ‘ अखिल भारतीय किसान सभा’ से संबद्ध ‘छत्तीसगढ़ किसान सभा’ के उपाध्यक्ष हैं. • The author is the Vice President of ‘Chhattisgarh Kisan Sabha’ affiliated to All India Kisan Sabha. ]

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‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के संपादक व कवि प्रदीप भट्टाचार्य के हिंदी प्रगतिशील कविता ‘दम्भ’ का बांग्ला रूपांतर देश की लोकप्रिय बांग्ला पत्रिका ‘मध्यबलय’ के अंक-56 में प्रकाशित : हिंदी से बांग्ला अनुवाद कवि गोविंद पाल ने किया : ‘मध्यबलय’ के संपादक हैं बांग्ला-हिंदी के साहित्यकार दुलाल समाद्दार

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कविता आसपास : पल्लव चटर्जी

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कविता आसपास : विद्या गुप्ता

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कविता आसपास : रंजना द्विवेदी

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कविता आसपास : श्रीमती रंजना द्विवेदी

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कविता आसपास : तेज नारायण राय

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कविता आसपास : आशीष गुप्ता ‘आशू’

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कविता आसपास : पल्लव चटर्जी

कहानी

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लघुकथा : डॉ. सोनाली चक्रवर्ती

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कहिनी : मया के बंधना – डॉ. दीक्षा चौबे

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🤣 होली विशेष :प्रो.अश्विनी केशरवानी

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चर्चित उपन्यासत्रयी उर्मिला शुक्ल ने रचा इतिहास…

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रचना आसपास : उर्मिला शुक्ल

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रचना आसपास : दीप्ति श्रीवास्तव

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कहानी : संतोष झांझी

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कहानी : ‘ पानी के लिए ‘ – उर्मिला शुक्ल

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व्यंग्य : ‘ घूमता ब्रम्हांड ‘ – श्रीमती दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]

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दुर्गाप्रसाद पारकर की कविता संग्रह ‘ सिधवा झन समझव ‘ : समीक्षा – डॉ. सत्यभामा आडिल

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लघुकथा : रौनक जमाल [दुर्ग छत्तीसगढ़]

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लघुकथा : डॉ. दीक्षा चौबे [दुर्ग छत्तीसगढ़]

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🌸 14 नवम्बर बाल दिवस पर विशेष : प्रभा के बालदिवस : प्रिया देवांगन ‘ प्रियू ‘

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💞 कहानी : अंशुमन रॉय

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■लघुकथा : ए सी श्रीवास्तव.

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■लघुकथा : तारक नाथ चौधुरी.

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■बाल कहानी : टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’.

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■होली आगमन पर दो लघु कथाएं : महेश राजा.

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■छत्तीसगढ़ी कहानी : चंद्रहास साहू.

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■कहानी : प्रेमलता यदु.

लेख

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तीन लघुकथा : रश्मि अमितेष पुरोहित

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व्यंग्य : देश की बदनामी चालू आहे ❗ – राजेंद्र शर्मा

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लघुकथा : डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय [केंद्रीय विद्यालय वेंकटगिरि, आंध्रप्रदेश]

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जोशीमठ की त्रासदी : राजेंद्र शर्मा

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18 दिसंबर को जयंती के अवसर पर गुरू घासीदास और सतनाम परम्परा

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जयंती : सतनाम पंथ के संस्थापक संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास जी

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व्यंग्य : नो हार, ओन्ली जीत ❗ – राजेंद्र शर्मा

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🟥 अब तेरा क्या होगा रे बुलडोजर ❗ – व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा.

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🟥 प्ररंपरा या कुटेव ❓ – व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

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▪️ न्यायपालिका के अपशकुनी के साथी : वैसे ही चलना दूभर था अंधियारे में…इनने और घुमाव ला दिया गलियारे में – आलेख बादल सरोज.

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▪️ मशहूर शायर गीतकार साहिर लुधियानवी : ‘ जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी ‘ : वो सुबह कभी तो आएगी – गणेश कछवाहा.

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▪️ व्यंग्य : दीवाली के कूंचे से यूँ लक्ष्मी जी निकलीं ❗ – राजेंद्र शर्मा

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25 सितंबर पितृ मोक्ष अमावस्या के उपलक्ष्य में… पितृ श्राद्ध – श्राद्ध का प्रतीक

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🟢 आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष : डॉ. अशोक आकाश.

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🟣 अमृत महोत्सव पर विशेष : डॉ. बलदाऊ राम साहू [दुर्ग]

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🟣 समसामयिक चिंतन : डॉ. अरविंद प्रेमचंद जैन [भोपाल].

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⏩ 12 अगस्त- भोजली पर्व पर विशेष

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■पर्यावरण दिवस पर चिंतन : संजय मिश्रा [ शिवनाथ बचाओ आंदोलन के संयोजक एवं जनसुनवाई फाउंडेशन के छत्तीसगढ़ प्रमुख ]

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■पर्यावरण दिवस पर विशेष लघुकथा : महेश राजा.

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■व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा.

राजनीति न्यूज़

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उदयपुर हत्याकांड को लेकर दिया बड़ा बयान

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■छत्तीसगढ़ :

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भारतीय जनता पार्टी,भिलाई-दुर्ग के वरिष्ठ कार्यकर्ता संजय जे.दानी,लल्लन मिश्रा, सुरेखा खटी,अमरजीत सिंह ‘चहल’,विजय शुक्ला, कुमुद द्विवेदी महेंद्र यादव,सूरज शर्मा,प्रभा साहू,संजय खर्चे,किशोर बहाड़े, प्रदीप बोबडे,पुरषोत्तम चौकसे,राहुल भोसले,रितेश सिंह,रश्मि अगतकर, सोनाली,भारती उइके,प्रीति अग्रवाल,सीमा कन्नौजे,तृप्ति कन्नौजे,महेश सिंह, राकेश शुक्ला, अशोक स्वाईन ओर नागेश्वर राव ‘बाबू’ ने सयुंक्त बयान में भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव से जवाब-तलब किया.

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भिलाई कांड, न्यायाधीश अवकाश पर, जाने कब होगी सुनवाई

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धमतरी आसपास

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स्मृति शेष- बाबू जी, मोतीलाल वोरा

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छत्तीसगढ़ कांग्रेस में हलचल

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राज्यसभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से कहा- मर्यादित भाषा में रखें अपनी बात

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मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने डाॅ. नरेन्द्र देव वर्मा पर केन्द्रित ‘ग्रामोदय’ पत्रिका और ‘बहुमत’ पत्रिका के 101वें अंक का किया विमोचन

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मरवाही उपचुनाव

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प्रमोद सिंह राजपूत कुम्हारी ब्लॉक के अध्यक्ष बने

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ओवैसी की पार्टी ने बदला सीमांचल का समीकरण! 11 सीटों पर NDA आगे

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, ग्वालियर में प्रेस वार्ता

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अमित और ऋचा जोगी का नामांकन खारिज होने पर बोले मंतूराम पवार- ‘जैसी करनी वैसी भरनी’

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, भूपेश बघेल बिहार चुनाव के स्टार प्रचारक बिहार में कांग्रेस 70 सीटों में चुनाव लड़ रही है

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सियासत- हाथरस सामूहिक दुष्कर्म

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पत्रकारों के साथ मारपीट की घटना के बाद, पीसीसी चीफ ने जांच समिति का किया गठन