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अबूझमाड़ एनकाउंटर में घायल हैं 4 बच्चे, एक की गर्दन में फंसी गोली, सुरक्षाबल या नक्सली… कौन है जिम्मेदार?
रायपुर: अबूझमाड़ में 12 दिसंबर को सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच मुठभेड़ हुई। इसमें कथित सात माओवादी मारे गए और कम से कम चार बच्चे घायल हुए। ग्रामीणों का कहना है कि वे फसल काट रहे थे, तभी गोलीबारी शुरू हो गई। माओवादियों का आरोप है कि मारे गए लोगों में पांच निर्दोष ग्रामीण थे।
फसल काट रहे थे ग्रामीण
घटना उस समय हुई जब ग्रामीण खेतों में बाजरा की फसल काट रहे थे। अचानक गोलीबारी शुरू हो गई। माओवादियों का आरोप है कि मारे गए सात लोगों में से पांच निर्दोष ग्रामीण थे। सुरक्षाबलों का कहना है कि माओवादियों ने बच्चों और ग्रामीणों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया, जिसकी वजह से बच्चे घायल हुए। इस घटना के बाद सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने घायल बच्चों को अस्पताल पहुंचाया। उन्होंने सुरक्षाबलों पर सवाल उठाए कि सुरक्षा बल मृतकों को तो ले गए, लेकिन घायल बच्चों को क्यों नहीं? इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनके जवाब सुरक्षाबलों को देने होंगे।
आईजी ने घायलों को बताया ‘नक्सली हिंसा’ का शिकार
कई ग्रामीणों ने बताया कि वे कोसरा बाजरे की फसल काट रहे थे, तभी उन पर गोलीबारी शुरू हो गई। 17 साल का एक लड़का अपनी कमर के बल पर फसल काट रहा था, तभी उसके हाथ और पैर में गोली लगी। बस्तर सुरक्षाबलों ने घटना के छह दिन बाद एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि माओवादियों ने एक वरिष्ठ नक्सल कमांडर कार्तिक को बचाने के लिए बच्चों और ग्रामीणों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया। बस्तर रेंज के IG पी सुंदरराज ने घायल बच्चों को ‘नक्सली हिंसा का शिकार’ बताया।
सामाजिक कार्यकर्ता ने घायलों को पहुंचाया अस्पताल
जनजातीय अधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी ने स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ घायल बच्चों को अस्पताल पहुंचाया। वे शनिवार को सुदूर गांव गईं और तीन बच्चों को नाव से भैरमगढ़ ले आईं। वहां से उन्हें दंतेवाड़ा और जगदलपुर के अस्पतालों में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने उनकी हालत स्थिर बताई है, लेकिन गर्दन में गोली लगी लड़की की हालत गंभीर है। सोरी को बाद में चौथे घायल बच्चे के बारे में पता चला और उन्होंने उसे भी अस्पताल में भर्ती कराने की व्यवस्था की।
सुरक्षाबलों पर उठ रहे सवाल
सोनी सोरी ने सुरक्षाबलों पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘जब सुरक्षा बल शवों को बेस तक ले जा सकते हैं, तो वे घायल बच्चों को अस्पताल क्यों नहीं ले गए? क्योंकि शवों की गिनती से उन्हें पुरस्कार मिलेगा लेकिन घायल बच्चों को नहीं। जब सुरक्षा बलों ने घटनास्थल की तलाशी ली, तो उन्हें केवल शव मिले और कोई घायल नहीं मिला?’
सुरक्षाबलों ने दी सफाई
सुरक्षाबलों ने अपने बयान में कहा कि उन्हें 12 दिसंबर को कल्हाजा-डोंडरबेड़ा मुठभेड़ में ‘कुछ बच्चों के घायल होने’ की सूचना मिली थी। सुरक्षाबलों ने कहा, ‘प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, हमें पता चला है कि नक्सलियों ने अपना सामान ढोने के लिए ग्रामीणों का इस्तेमाल किया। जब मुठभेड़ शुरू हुई, तो माओवादियों ने इन ग्रामीणों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया, जिससे चार लोग घायल हो गए। घायलों का प्राथमिक उपचार किया जा रहा है और अधिक जानकारी जुटाई जा रही है।’
आदिवासी ने फोन पर दी जानकारी
सोनी सोरी ने बताया कि उन्हें इस घटना के बारे में तब पता चला जब बीजापुर के ताड़ोवाड़ा गांव के एक आदिवासी ने उन्हें फोन किया। उसने बताया कि सुरक्षा बलों ने दो साल के एक बच्चे को उसे सौंप दिया है, जिसके माता-पिता मुठभेड़ में मारे गए हैं। सोरी ने कहा, ‘वह बहुत परेशान था और उसने मुझसे पूछा कि दो साल के बच्चे का क्या किया जाए, जिसे सुरक्षा बलों ने दूसरे गांव से उठाकर उसे सौंप दिया था। उसने कहा कि बच्चा लगातार रो रहा था और दूध नहीं पी पा रहा था। उसे डर था कि बच्चा बच नहीं पाएगा। मैंने गांव जाने का फैसला किया और मुठभेड़ के बाद जो भयावह नजारा देखने को मिला।’
महिला ने सोरी को दी जानकारी
महिला ने सोरी को बताया कि कम से कम तीन बच्चे गोली लगने से घायल हुए थे और उन्हें कोई इलाज नहीं मिला था। मैं हैरान थी। कोमम गांव काफी दूर था और मुश्किल इलाके में था। वहां कोई सड़क नहीं थी और इंद्रावती नदी को पार करना पड़ता था, इसलिए एंबुलेंस नहीं पहुंच सकती थी। हमने गांव वालों को संदेश भेजा कि वे घायल बच्चों को नदी के किनारे ले जाएं। वे एक बच्चे को अस्थायी स्ट्रेचर पर लेकर आए और बाकी दो हमारे पास पैदल आए। उनके घाव गहरे थे और उनमें संक्रमण हो रहा था। हमने एक नाव किराए पर ली और उन्हें भैरमगढ़ अस्पताल पहुंचाया। गर्दन में गोली लगी लड़की को जगदलपुर डिमरापाल अस्पताल ले जाया गया। यह चमत्कार है कि वह जीवित है। वह इतनी सदमे में है कि अपना दर्द भी बयां नहीं कर पा रही है।’
सुरक्षाबलों के पास अपनी कहानी
बस्तर रेंज के IG पी सुंदरराज ने कहा, ‘माओवादी संगठन को गंभीर झटका लगा है। नक्सलियों की सुरक्षा टीमों ने हाल ही में हुई मुठभेड़ों के दौरान जोगन्ना, विनय, कार्तिक, शंकर राव और सागर जैसे राज्य समिति स्तर के कमांडरों को छोड़ दिया। वे मारे गए। अब माओवादी अपने पुराने क्रूर तरीकों पर लौट आए हैं, जिसमें वे वरिष्ठ कैडरों की रक्षा के लिए बच्चों और ग्रामीणों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल करते हैं। प्रथम दृष्टया, ऐसा लगता है कि माओवादियों ने ओडिशा राज्य समिति के कैडर कार्तिक को बचाने के लिए बच्चों को ढाल के रूप में इस्तेमाल किया है। हम इस घटना के बारे में और जानकारी जुटा रहे हैं। चूंकि वे नक्सली हिंसा के शिकार हैं, इसलिए सरकार पीड़ित मुआवजा नीति के प्रावधानों के अनुसार उनके उपचार और पुनर्वास का ध्यान रखेगी।’
कांग्रेस ने साधा निशाना
कांग्रेस ने राज्य सरकार पर निशाना साधा। पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा, ‘लक्ष्य निर्धारित करने से ऐसे खतरे पैदा होते हैं। नक्सल समस्या का समाधान जरूरी है, लेकिन आम नागरिकों की जान की कीमत पर नहीं। इस क्षेत्र में रहने वाले गरीब निर्दोष आदिवासी और अन्य नागरिक हताहत नहीं हो सकते क्योंकि कुछ लोगों द्वारा लक्ष्य निर्धारित किए जा रहे हैं। निर्दोष नागरिकों को नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। मुझे उम्मीद है कि इन बच्चों की अच्छी देखभाल की जाएगी और सरकार द्वारा उन्हें उपलब्ध सर्वोत्तम उपचार प्रदान किया जाएगा।’