बचपन आसपास -डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
4 years ago
315
0
●1.नानू मुझको भाते हैं
देख मुझे तुतलाते हैं
खेल नया सिखलाते हैं
थक जाते हैं खुद लेकिन
दिनभर ख़ूब खिलाते हैं
करते हैं म्याऊँ म्याऊँ
हँसते और हँसाते हैं
राशन वाले अंकर से
टॉफी रोज़ दिलाते हैं
इस्कूटर में बैठाकर
दूर तलक ले जाते हैं
दौड़ा करते हैं धीरे
तेज़ मुझे दौड़ाते हैं
सोने जब जाती हूँ मैं
तब वो सोने जाते हैं
पापा-मम्मी कहते है
नानू तुझको भाते हैं
●2.रूप नगर की हस्ती है
गुड़िया रानी जँचती है
रूप नगर की हस्ती है
लिखती है दीवारों पर
मन ही मन फिर हँसती है
भोलापन है आँखों में
चंचलता है मस्ती है
उसके आगे दुनिया की
सारी दौलत सस्ती है
राज़ सभी पर करती है
सबके दिल में बसती है
गोदी में आ जाती है
डर से माँ को कसती है
कुछ भी पाने की ख़ातिर
ढोंग नया फिर रचती है
गिरना होता है जब भी
अपने से वो बचती है
●लेखक संपर्क-
●7974850694
chhattisgarhaaspaas
Previous Post गीत
Next Post झारखंड आसपास