कवि औऱ कविता
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■साईकिलों पर घर
-रमेश कुमार सोनी
कबीर नगर, रायपुर ,छत्तीसगढ़
अलग-अलग पगडंडियों से
गाँवों के मजदूर
अपनी जरूरतें
मुँह पर चस्पा किए
साइकिलों से खटते हुए
पहूँचते हैं शहर में ,
शहर में है –
उनके खून – पसीने को
पैसों में बदलने की मशीन ।
साइकिलों में टँगे होते हैं –
बासी, मिर्च और प्याज के साथ
परिवार की ताकत का स्वाद,
काम करता है मजदूर
अपने इसी मिर्च की भरभराहट खत्म होने तक , इनकी छुट्टियों को जरूरतों ने
हमेशा से खारिज कर रखा है,
वापसी साइकिलों में टँगे होते हैं –
घर की जरूरतें और उम्मीद
शहर उम्मीदों और
जरूरतों का विज्ञापनखोर है ।
इसी तरह टँगा होता है
साइकिलों पर घर
जहाँ डेरा डाला गाँव बना लिया
इन्हीं से बची है –
खूबसूरती संवारने की ताकत
एक स्वच्छ और सुंदर शहर
साइकिलों पर टिका हुआ है।
●कवि संपर्क-
●7049355476
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