होली पर विशेष- तारकनाथ चौधुरी
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●ढोल-नगाड़े नहीं बजेंगे,
●अबकी बार होली में.
-तारकनाथ चौधुरी
[ चरोदा,भिलाई, छत्तीसगढ़ ]
ढोल-नगाडे़ नहीं बजेंगे,
अबकी बार होली में,
रंग-फव्वारे नहीं उडे़ंगे,
अबकी बार होली में।
प्रिय से आलिंगन के जितने
स्वप्न सजे थे आँखों में,
टूटेंगे,बन अश्रु बहेंगे,
अबकी बार होली में।।
सोचा था मतभेद मिटेंगे,
अबकी बार होली में,
कुछ नये अनुच्छेद जुडे़ंगे,
अबकी बार होली में।
मिलकर गले क्षमा-विनिमय के,
अवसर से होंगे वंचित,
रिश्ते कैसे नये जुडे़ंगे,
अबकी बार होली में।।
होंगे विवश,उदास सभी जन,
अबकी बार होली में,
पिचकारी में होगा क्रन्दन,
अबकी बार होली में।
देख प्रकृति भी विस्मित होगी,
मानव की ऐसी प्रकृति,
दो-दो गज़ सब दूर रहेंगे,
अबकी बार होली में।
●तारकनाथ चौधुरी
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