नवगीत- •गीता विश्वकर्मा ‘नेह’
4 years ago
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●धीरज कब तक धरे ह्रदय अब
●किस पर हो विश्वास
-गीता विश्वकर्मा ‘नेह’
[ बालको नगर,कोरबा, छ. ग. ]
धीरज कब तक धरे हृदय अब
किस पर हो विश्वास ।
दुख की चिलबिल धूप देखकर,
धड़कन होती तेज,
आँखों के खारे आँसू को
कितना रखूँ सहेज,
बदलेगा मौसम जीवन का
रखी अभी तक आस ।
भीषण ताण्डव कर कोरोना
बिछा रहा है लाश,
हाहाकार मचा जनजीवन
को करता है नाश,
भरता जाता हृदय चेतना
पर अतिरेक कुहास ।
ढूँठ हुआ जाता संवेदन
बिगड़े सारे काज,
काल झपट्टा मार रहा है
बना हुआ है बाज,
नहीं मिला ईश्वर का हमको
थोड़ा सा आभास ।
जग से पारी खेल गया है
मृत्यु ओढ़ इंसान,
बिखरे सूखे पत्रक सम ही
पड़ा हुआ शमशान,
कालकूट के चेहरे पर है
एक कुटिल परिहास ।
बाँच रहे हैं धर्म परायण
पुनर्जन्म का तोष,
टूटे बिखरे हृदय समेटो
छोड़ो कहता रोष ,
फिर करवट लेगा पतझर के
आँगन में मधुमास ।