■छत्तीसगढ़ी रचना : •डॉ. बलदाऊ राम साहू.
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●बैरी ला पतियाना हे.
-डॉ. बलदाऊ राम साहू
[ दुर्ग-छत्तीसगढ़ ]
इक दिन इहाँ छोड़ के सब ला जाना हे
ये बात ह जी नो हे नवा पुराना हे।
बेरा हावै चला चली के जानत हन
नइ बनय रोये मा मन ल समझाना हे।
अटपट रद्दा हावै भैया दुनिया के
चलना कइसे, चल के थोरिक बताना हे।
बेरा – बेरा म सोचे परथे मनखे ला
बखत परे मा बैरी ल घलो पतियाना हे।
जब्भे होही मन हर भैया हमर हरियर
थोरिक-थोरिक हँसना अउ मुस्काना हे।
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