आज़ पिता दिवस के उपलक्ष्य पर डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’, अपने पिता स्व.रामप्रसाद विश्वकर्मा को समर्पित 9 दोहे.
3 years ago
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●स्व.रामप्रसाद विश्वकर्मा.
● समझो उसको मिल गया ,जीवन का आधार
जिसकी क़िस्मत में रहा , रोज़ पिता का प्यार
● गूँजे ख़ुशियों से सदा, घर ,आँगन ,संसार
रहें पिता की छाँव में, हो ऐसा परिवार
● पिता हैं तो कुटुंब है , पिता हैं तो समाज
पिता बिना सूना लगे ,तख़्त मिले या ताज़
● सगे पराए हो गए ,बचा नहीं कुछ आज
छोड़ गए जब से पिता, उठती है आवाज़
● दुख सहते हैं उम्रभर , करते नहीं बखान
उनके बिन संभव नहीं ,जग में कन्यादान
● माँ ममता की छाँव है ,पिता छाँव की रीड़
ये होते हैं जिस जगह , बन जाता है नीड़
● मिली पिता से हर ख़ुशी , उन्हीं से मिला नाम
वरना इस संसार में , रह जाते गुमनाम
● करते हैं हर हाल में , पिता पुत्र को दक्ष
पड़ा पिता के नाम से ,दुनिया में पितृपक्ष
● लाख करे कोई जतन ,उतरता नहीं कर्ज़
पिता गुरु,देवतुल्य हैं, सदा निभाएं फर्ज़
●कवि संपर्क-
●79748 50694